बहू कल मेरा नाश्ता भी नितिन के साथ ही बना देना। मैं भी उसके साथ दुकान पर जाऊँगा। बहुत दिन हो गए घर में आराम करते हुए। घर से बाहर जाऊँगा तो सबसे मिलना-जुलना भी हो जाएगा। जी पापा जी ठीक है, उनकी बहू मिताली ने कहा। रात को जब सारा काम निपटाकर वह कमरे में गई तो उसने नितिन से कहा सुनो कल पापा जी भी तुम्हारे साथ दुकान जाएंगे।
क्या….लेकिन क्यों ?अच्छे भले घर में आराम से नहीं रहा जा रहा। वहाँ जाएंगे, फिर वही पहले की तरह टोकाटाकी और सत्तर सलाहें अलग से देते रहेंगें।
ये है नवीन जी का इकलौता बेटा नितिन। वैसे तो वह एक अच्छा बेटा ही है। लेकिन जब से नवीन जी ने अपना घर और कारोबार उसके नाम कर दिया है उसके तो जैसे तेवर ही बदल गए हैं। एक आज्ञाकारी बेटा अब मालिक बन गया था। सुबह ही नवीन जी समय से उठकर दुकान जाने के लिए तैयार हुए तो नितिन बोला, पापा मुझे पहले एक जगह काम है।
मैं वहाँ जाऊँगा। आप मेरे साथ दोपहर को चलना। लेकिन दोपहर को नितिन समय न होने का बहाना बनाते हुए खाना खाने भी नहीं आया। जब एक-दो दिन नितिन ने ऐसे ही टाला तो एक दिन नवीन जी ने सोचा, चलो आज मैं रिक्शा से स्वयं ही दुकान चला जाता हूंँ। दुकान पर पापा को आया देखकर एकबारगी को तो नितिन सकपका गया। क्योंकि नितिन ने अपने पापा के पुराने और वफादार नौकर को हटाकर नया लड़का रख लिया था।
नवीन जी ने नितिन से पूछा। बेटा वह शंभु दिखाई नहीं दे रहा आज। छुट्टी पर है क्या? नहीं पापा मैंने उन्हें नौकरी से निकाल दिया है। उनकी अब उम्र हो गई है। अपने घर पर आराम करें। लेकिन बेटा उसे इसी काम का सहारा था। पूरे घर की जिम्मेदारी अभी उस पर है। क्या पापा आप भी। हम यहॉं समाज सेवा के लिए नहीं, कमाने के लिए बैठे हैं।
लेकिन बेटा एक बार मुझसे पूछ तो लेता। इसमें पूछना क्या है पापा। अब ये दुकान मेरी जिम्मेदारी है। आप भी यहाँ आकर परेशान मत हुआ करिए। घर पर आराम कीजिए। मुझे मेरा काम मेरे हिसाब से करने दीजिए। नितिन जी को इस अपमान की उम्मीद अपने बेटे से नहीं थी। उन्होंने देखा की नितिन ने जो लड़का दुकान पर रखा था। वह भी नितिन की बातें सुनकर मुस्कुरा रहा था।
नवीन जी का मन बहुत दुखी था। उनके कदम स्वत: ही अपने दोस्त रमाकांत जी के घर की तरफ उठ गए। वे इस हालत में घर जाकर अपनी पत्नी सुधा को भी परेशान नहीं करना चाहते थे। अरे यार, आज तो बहुत दिनों बाद दर्शन दिए। आजा अंदर, आज बैठकर खूब गप्पे मारेंगे।
लेकिन कुछ देर बात करते ही रमाकांत जी भाँप गए कि उनका दोस्त कुछ परेशान सा है। क्या बात है नवीन? कुछ बात है क्या? तबीयत ठीक नहीं है क्या? नहीं यार तबीयत तो ठीक है। लेकिन मन दुखी है। और उन्होंने सारी बात रमाकांत जी से बता दी। तो यह बात है लेकिन यह स्थिति तूने ही तो पैदा की है। मैंने तुझे पहले ही समझाया था कि अपने जीवित रहते तू सब कुछ अपने बेटे के नाम पर मत कर। लेकिन तूने मेरी एक नहीं सुनी।
मैंने तुझे यह सलाह ऐसे ही नहीं दी थी। भाई मैं तो खुद सब कुछ भुगत चुका था। पर अब मैं क्या करूँ? इस तरह तो मेरे बाद यह तेरी भाभी सुधा का जीवन नर्क बना देगा। जो बेटा मेरे जीते जी संपत्ति हाथ आते ही गिरगिट की तरह रंग बदल गया, वह अपनी मां का कैसा ख्याल रखेगा। अभी भी देर नहीं हुई है। तू अभी मेरे साथ वकील के पास चल। वे दोनों वकील के पास गए और नवीन जी ने अपनी वसीयत बदलने की इच्छा जाहिर की।
वकील ने कहा इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। आप अपनी वसीयत बदल सकते हैं। तब नवीन जी ने कहा कि मेरी सारी जायदाद मेरे नाम ही वापस कर दो। और अगर मुझे कुछ हो जाता है उसके बाद मेरी संपत्ति मेरी पत्नी सुधा के नाम रहेगी। उनके मन से एक बोझ हट गया था। वह घर आए तो घर पर सब उनका इंतजार कर रहे थे। क्योंकि उन्हें दुकान से गए बहुत देर हो गई थी। पापा आप कहाँ चले गए थे?
उनकी बहू ने पूछा।तो उन्होंने नितिन की ओर देखा जो बैठा हुआ अपना दुकान का हिसाब देख रहा था। उन्होंने वसीयत नितिन के हाथों में रख दी। यह क्या मजाक है पापा। मजाक नहीं बेटा दूरदर्शिता है। यह एक फैसला अपने आत्मसम्मान के लिए मुझे लेना ही पड़ा। उन्होंने पूरे हक से शंभु को फोन मिलाकर अगले दिन से दुकान पर आने के लिए कहा। नितिन ने तो कभी सपने में मैं नहीं सोचा था कि पासा ऐसे भी पलट सकता है। वह हक्का-बक्का अपने पापा को देखता रह गया।
नाम: नीलम शर्मा
मुजफ्फरनगर उत्तरप्रदेश,