रातभर गर्नज-तर्जन के साथ मूसलाधार बारिश होती रही। नमन सुबह दूध लेने निकल ही नहीं सका… क्योंकि सड़क पर घुटने तक पानी था।
मीनू चाय बनाने गई… दूध के साथ गैस भी खतम, “हे भगवान… इस बरसात में कहाँ से लाऊं दूध और गैस सिलेंडर… आज भूखा ही रहना होगा। आज गैस एजेंसी भी बंद रहता है… यह गैस भी न जब चाहे समाप्त हो जाता है। “
हाथ में मोबाइल ले परिचितों को फोन लगाने लगी,”एक गैस सिलेंडर मिल जाता” सभी ने टाल दिया।
रेस्टोरेन्ट वाले ने भी सड़क पर पानी भरे होने का हवाला दे हाथ खडी़ कर ली।
ऐसे ही समय बीतता रहा। जीवन है तब समस्या भी रहेगी। लेकिन नमन और मीनू की कहानी अलग थी।दरअसल दोनों एक ही कम्यूनिटी में रहते थे। नई-नई नौकरी थी। मीनू किसी आफिस में काम करती थी और नमन साफ्टवेयर इंजीनियर था।
एक ही कम्यूनिटी में रहने से अक्सर दोनों में भेंट होने लगी। जान-पहचान बढी़ तो आपस में बातें भी होने लगी… नजदीकियां बढी़…घटने बढने पर एक-दूसरे की सहायता भी होने लगी।
काम की व्यस्तता से मीनू अपने में उलझी रही।
“आजकल नमन दिखाई नहीं दे रहा है… फोन भी स्वीच आफ है। “
वह शाम में नमन के फ्लैट पहुंची। ताला लगा था।
“कहीं गया होगा “मीनू ने सिर झटक दिया।
दूसरे दिन लिफ्ट में दोनों की भेंट हुई, नमन कमजोर बीमार लग रहा था, हाथ में दवा, पुर्जा, एक्सरे का लिफाफा देख मीनू चौंकी, “यह क्या? बीमार हो। “
“कुछ खास नहीं, ऐसे ही “नमन ने बहलाने की कोशिश की।
मीनू उसके साथ कमरे में आ गई। अस्तव्यस्त, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य, सिंक में जूठे बर्तन… “बैठो चाय बनाती हूं “!
“मैं बाहर से पीकर आया हूं”!
“कहाँ, अस्पताल से, डाॅक्टर ने पिलाई”मीनू खीझ उठी।
दुसरे का घर, सामान, गंदगी… फिर भी मीनू ने अपनी ओर से साफ-सफाई कर दी। थोड़ी सब्जी,दो फुल्के ,चाय बनाकर लाई।
“खा लो”!
“तुम मेरी चिंता मत करो, जब मेरे अपनों को मेरे बीमार पडने से कोई फर्क नहीं पड़ता तब तुम पराई होकर “!
“मतलब… मैं पराई नहीं, तुम्हारी पडोसन हूं… समझे जनाब “मीनू ने माहौल को हल्का करना चाहा।
“तुम्हारा रिपोर्ट देखूं “जबतक नमन मना करता मीनू ने रिपोर्ट देखना शुरू किया।
लाइलाज बिमारी, फेफड़े का कैंसर… काफी बढ गया था।
“तुम्हारे माता-पिता, घरवाले”आंसुओं को रोक मीनू ने पूछा।
“माता-पिता है नहीं, एक भाई है सपरिवार विदेश बस गया… न कभी फोन न संदेश… मेरे मरने पर कोई रोनेवाला भी नहीं है… इसीलिए कहा मेरे बीमार होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। “
“पडता है फर्क…मेरा भी कोई नहीं… एक रिश्ते के निःसंतान मामा-मामी ने पाला, पढाया जब अपने पैरों पर खडी़ हुई… दोनों एकसाथ कोरोना में चल बसे। मैं यहाँ थी… लाॅकडाऊन के कारण अंतिम दर्शन भी नहीं हुआ। सब ठीक होने पर जब वहाँ गई उनके रिश्तेदारों ने मुझे घर में घुसने नहीं दिया… सिर्फ उनदोनों का फोटो लेकर आ गई। ऐसे तुम्हें निराश नहीं होने दूंगी…किसी को फर्क न पड़े… मुझे पडता है… अब कैंसर लाइलाज नहीं है… तुम्हारा इलाज करवाऊंगी। “
मीनू नमन के फ्लैट में ही शिफ्ट हो गई, “लोग क्या कहेंगे “नमन ने दलील दी।
“लोगों का मुँह उसदिन बंद हो जायेगा… जब तुम स्वस्थ होकर मेरे मांग में सिंदूर भर दोगे। “
“ऐसा, चलो आज ही मंदिर में विवाह कर लेते हैं। “
लाल सिंदूर ,नवविवाहित दंपति… नमन में जीने की ललक जाग उठी… मीनू की तीमारदारी और कुशल चिकित्सकों का इलाज…संसार से उपेक्षित …लेकिन एक दूसरे के पूरक बने दोनों… प्रभु की इच्छा।
उनके मंगलमय भविष्य की कामना।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®