प्रिय पापा,
सबसे पहले तो मुझे क्षमा करें मैने आपके लिए आदरणीय के स्थान पर प्रिय शब्द का इस्तेमाल किया।
दरअसल कई बातें थी जिन्हे कहने के लिए मुझे इस चिट्ठी का सहारा लेना पड़ा। नहीं तो खुद कई बार आपके समक्ष आकर भी बोल पाने की हिम्मत न जुटा पाया।
सबसे पहले जो बात मुझे कहनी है वो है, पापा I LOVE YOU. बचपन से आजतक जो जिंदगी आपने मुझे दी, जो सुख–सुविधा मुहैया कराया, ताउम्र मैं आपका ऋण नहीं चुका सकता। सीमित पैसे होते हुए भी जिस शानो शौकत से आपने मुझे बड़ा किया, मेरी हर ख्वाईश पूरी की। आज हरेक भौतिक साधनों से घिरे होने के बावजूद भी कभी वो वाली खुशी महसूस नहीं हुआ पापा, जो आपने मुझे दिया।
याद है मुझे, मेरी उम्र यही कोई आठ–दस साल की रही होगी जब आपने शहर से बाहर जाकर कोई अच्छी नौकरी करने की बात कही थी और मैं फूट–फूटकर रोया था। अंततः आपको मेरी जिद्द के आगे घुटने टेकने पड़े थे जब मैं भूख हड़ताल पर बैठ गया।
आज भी वो दिन मेरी आंखों के सामने घूमता है जब मेरी नौकरी लगी, उस वक्त आप थे मेरे साथ। पर कहां मालूम था वही नौकरी मुझे मेरे परिवार से दूर कर देगा। हाल तक जब आप फोन पर मुझसे घर आने के बारे में पूछते थे और अपनी दिनभर की व्यस्ततम दिनचर्या की वजह से मैं झुंझलाकर कह दिया करता था कि अभी फुरसत नहीं। फिर आप बिलकुल शांत हो जाया करते थे और दबे शब्दों में ही सही पर यह बोलकर फोन रख दिया करते थे कि देखना, कोशिश करना। बता नहीं सकता पापा, आज वो सब सोचकर मुझे खुद पर कितनी ग्लानि होती है। काश मैं आपकी बात मान लेता और चला आता आपके पास।
मुझे याद है वो पल, जब पिछली बार आप मुझसे मिलने आए थे तो हमसब ने कितनी मस्तियां की थी। पर अब तो वो बिलकुल सपना–सा लगता है, पापा।
सबसे बड़ी माफी, जिसके वजह से यह चिट्ठी लिखने को मुझे मजबूर होना पड़ा। आजतक आपने मेरी सही–गलत हरेक फर्माइश पूरी की, लेकिन मैं कैसे भूल सकता हूं जब आपने मुझे फोन करके अपनी तबीयत ठीक न होने की बात बताई थी।
आप जहां कहीं भी हो, मुझे माफ कर देना पापा! आपका यह लाडला बेटा आपके जान बचाने की आपकी आखिरी ख्वाइश तक पूरी न कर पाया।
मुझे याद है, हॉस्पिटल के आई सी यू वार्ड में जब आपके आंखों में अपनो से दूर जाने का गम देखा था तो मुझे अपने वो आंसू याद आए जो मैंने बचपन में आपके दूर जाने के गम में बहाए थे।
आपके अंतिम क्षण में मैं आपके करीब तो न था क्यूंकि आई सी यू वार्ड में जाने की मनाही थी। डॉक्टर के बुलाने पर जब मैं वहां पहुंचा तबतक शायद बहुत देर हो चुकी थी और डॉक्टर–नर्स अपने अंतिम प्रयास में लगे थे। अंततः उन्होंने भी हार मान ली।
पता है पापा, आपके जाने के गम ने मां के चेहरे से वो पहली वाली हंसी छीन ली है। अब तो वह हंसती भी है तो केवल इसी वजह से कि कहीं हमसब उदास न हो जाए। मां के अधिकांश बातों में पापा, केवल आपकी ही चर्चा होती है। पापा होते तो ये करते, पापा होते तो वो करते और न जाने कितना कुछ होता है उसके पास बताने को। लेकिन अचानक फिर बोलते–बोलते वो चुप होकर कहीं खो सी जाती है।
मुझे माफ कर देना पापा, आपने अपने कठिन परिश्रम से मुझे मेरे पैरों पर खड़ा तो कर दिया। मगर मैं तो ऐसा नालायक निकला कि सारे प्रयासो के बावजूद भी मां के चेहरे की उदासी दूर न कर पाया।
कभी जब सोचता हूं तो बड़ा अजीब लगता है कि अब इस जन्म में आपसे फिर कभी मुलाकात नहीं होगी। जी करता है फिर वही बचपन जैसे अनशन पर बैठ जाऊं, खूब रोऊं जिससे आपको दूर जाने का ख्याल फिर से मन से त्यागना पड़े। पर तभी याद आता है कि आप तो है नहीं जो मेरी हरेक जिद्द मानते। ….और फिर भगवान कहां मेरी सुनने वाले!
खैर…..अब भगवान को दोष देने से भी क्या फायदा! आखिर यह सब उसी की मर्जी से तो हो रहा है।
पर वो ऊपर वाला कम से कम इतना तो कर ही सकता है कि मेरी यह चिट्ठी मेरे पापा तक पहुंचा दे।
आपका लाडला
श्वेत कुमार सिन्हा