अब आगे •••••••••
राजकुमार मणिपुष्पक की प्रत्येक वर्षगांठ पर कभी महाराज देवकुमार और महारानी यशोधरा के साथ तो कभी महाराज देवकुमार के साथ अकेले ही राजकुमारी मोहना सन्दलपुर आती रहीं।
प्रणय, विवाह, संयोग, वियोग के सम्बन्ध में जानने की न दोनों की अवस्था थी और न ही बुद्धि लेकिन दोनों को ही एक दूसरे का सामीप्य सुखद लगता था
और दोनों ही प्रतिवर्ष इस समय की आतुरता से प्रतीक्षा करते रहते।
शायद महारानी यशोधरा का कथन सत्य था। अनजाने ही दोनों के मन की कच्ची मिट्टी पर एक दूसरे का चित्र उभरने लगा था। हिरनी सी चंचल, तितलियों सी चपल, सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति राजकुमारी मोहना राजकुमार के अन्त:करण में शनै: शनै: प्रवेश करती जा रही थीं।
समय और उम्र दोनों ही आगे बढ रहे थे। राजकुमार मणिपुष्पक और राजकुमारी मोहना को भी एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों और वाग्दान का ज्ञान हो गया था। इसीलिये पिता के साथ सन्दलपुर आने में अब वह लज्जा और संकोच का अनुभव करने लगी थीं
परन्तु महाराज और महारानी का विशेष स्नेह आग्रह और राजकुमार के सामीप्य और दर्शन का लोभ राजकुमारी को सन्दलपुर ले आता। वह लजाते हुये भी कभी वर्षगांठ के निमन्त्रण को अस्वीकार न कर पातीं।
राजकुमार की ग्यारहवीं वर्षगांठ के पश्चात राजमहल पर आपदाओं के बादल मंडराने लगे। राजकुमार को भयंकर व्याधि ने अपने क्रूर पंजों में जकड़ लिया। विषम और भीषण ज्वर के साथ ही उनकी सुंदर काया पर छाले पड़ने लगे।
पूरे शरीर और पलकों पर पड़े छालों के कारण उनके नेत्र खुलना बन्द हो गये। ज्वर और पीड़ा के कारण राजकुमार जल बिन मछली की तरह तड़पते रहते और सभी उन्हें विवश से देखते रहते। राजवैद्य की कोई की भी औषधि प्रभावी न हुई।
दूर दूर के राज्यों से वैद्य और हकीम आने लगे। पीड़ा से व्याकुल राजकुमार का मस्तक अंक में रखकर महारानी अनुराधा ऑसुओं की धार लिये रात दिन बैठी रहतीं और राजकुमार के अधर मॉ…… मॉ ….. पुकारते रहते। महाराज के दु:ख का पारावार न था। संतप्त प्रजा ने भी अपने प्रिय राजकुमार के लिये ब्रत, जप, यज्ञ और अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिये।
महाराज देवकुमार को राजकुमार की भयंकर व्याधि के सम्बन्ध में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने राज्य के राजवैद्य को राजकुमार के उपचार के लिये भेजा परन्तु उनके राज्य के राजवैद्य भी निराश होकर लौट गये।
राजकुमारी अभी बालिका ही थीं परन्तु राजकुमार की व्याधि के सम्बन्ध में ज्ञात होने पर व्याकुल रहने लगीं। चिन्तातुर महारानी यशोधरा ने पुत्री के हाथ में रामलला की मूर्ति देकर कहा –
” अपनी पूरी निष्ठा से इनकी आराधना करो। समझ लेना कि यह ही राजकुमार मणि पुष्पक हैं। मुझे विश्वास है कि तुम्हारी आराधना राजकुमार को व्याधि मुक्त करेगी।”
राजकुमारी ने माता की आज्ञा शिरोधार्य करके रामलला को ही प्रियतम मानकर उनकी आराधना प्रारम्भ कर दी। नौ वर्ष की राजकुमारी पूरी लगन से रामलला को समर्पित हो गई। उन्होंने एक समय फलाहारी भोजन प्रारम्भ कर दिया। एक साधिका योगिनी के समान वह रामलला से राजकुमार मणिपुष्पक के व्याधि मुक्ति और जीवन दान की याचना करती रहतीं।
पता नहीं किस ब्रत, उपवास, प्रार्थना या औषधि का प्रभाव हुआ कि राजकुमार के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। राजकुमार की जीवनरक्षा हो गई और वह धीरे धीरे स्वस्थ होने लगे।
यह सूचना पाकर देव कुमार और यशोधरा सहित राजकुमारी मोहना भी प्रसन्नता से झूम उठे। सर्वत्र हर्ष की लहरें हिलोरे लेने लगीं।
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एक भूल …(भाग-7) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर