अब आगे ••••••
वह व्यक्ति थे संदलपुर के राज ज्योतिषी। राज ज्योतिषी के मुख मंडल पर चिन्ता और व्यथा की रेखायें गहरी होती जा रही थीं। सारे राग – रंग और उत्सवों से दूर वह अपने आवास में राजकुमार की कुण्डली बना रहे थे।
” क्या बात है स्वामी? आपको बहुत चिन्तित और व्यग्र देख रही हूॅ ? क्या राजकुमार की कुण्डली में कोई ••••••। राज ज्योतिषी की पत्नी सुनंदा का चिन्तित स्वर।
” हॉ प्रिये, इसीलिये तो बार बार गणना कर रहा हूॅ कि शायद निवारण का कोई उपाय पता चल सके और भावी विपत्ति को मिटाया जा सके परन्तु ……।”
” ऐसा क्या है स्वामी। महाराज और महारानी की सन्तान में माता पिता दोनों के गुणों का समावेश हुआ होगा और जीवन में कुछ संघर्ष तो व्यक्तित्व को निखारने का ही कार्य करते हैं। आप इतना व्यग्र मत होइये।”
” मेरी बात को गम्भीरता से समझने का प्रयत्न कीजिये सुनन्दा। महाराज और महारानी के गुणों का सम्मिलित परिणाम हैं राजकुमार। दोनों के गुण हैं राजकुमार में। सभी गुणों के सहित विनम्रता और भावुक हृदय राजकुमार कला एवं संगीत अनुरागी भी है।”
” फिर आप इतने चिन्तित क्यों हैं ? ” सुनन्दा को अब भी अपने पति की चिन्ता समझ में नहीं आ रही थी।
” इस बालक के जीवन पर बाल्यावस्था की समाप्ति होते ही दुर्भाग्य की ऐसी कालिमा छा जायेगी कि इसका सम्पूर्ण जीवन कुण्ठित हो जायेगा। राजकुमार की कुण्डली में अनेक दुष्ट ग्रह जहरीले नागों के समान फन फैलाये बैठे हैं। ” राज ज्योतिषी का संतप्त स्वर – ” सबसे भयंकर बात है कि इस बालक की कुंडली में आत्मघात का योग है।”
” नहीं स्वामी, ऐसा मत कहिये। ” सुनन्दा का चीत्कार करता रुदन स्वर – ” आप पुन: गणना कीजिये, कहीं कोई त्रुटि न रह गई हो। कोई उपाय, कोई समाधान, कोई निवारण तो होगा। ईश्वर महाराज और महारानी के साथ ही इस राज्य के प्रति इतना अन्याय नहीं कर सकते।”
” मैं अनेकों बार भली प्रकार गणना कर चुका हूॅ। अब तो राजकुमार की कुण्डली की ओर देखने से भी भय होने लगा है, ऐसा लगता है कि कुण्डली में बैठे अनिष्ट और दुष्ट ग्रहों के विषैले नाग मुझे घूर रहे हैं। मैं विवश हूॅ। अपने महाराज के लिए ही कुछ नहीं कर सकता। विधि का विधान लिखा जा चुका है। इस ध्रुव सत्य को कोई भी मिटा नहीं सकता।” राज ज्योतिषी का गहन संतप्त स्वर।
कुछ देर तक कक्ष में राज ज्योतिषी की पत्नी सुनन्दा की सिसकियां नीरवता को भंग करती रहीं। पति – पत्नी शोक में डूब गये।
” एक बात और है सुनन्दा।”
” मैं समझती हूॅ स्वामी,यह रहस्य मेरे प्राणों के साथ ही जायेगा परन्तु महाराज और महारानी को क्या बतायेंगे आप? पुत्रीवत स्नेह करती हूॅ मैं महारानी से।”
” यही तो समझ नहीं पा रहा हूॅ।” दोनों गहन चिन्ता में डूब गये।
” मुझे एक उपाय समझ में आ रहा है लेकिन उसमें असत्य का समिश्रण करना पड़ेगा।” राज ज्योतिषी की पत्नी सुनन्दा का स्वर।
” कई बार असत्य सत्य से अधिक कल्याणकारी होता है। आप नि:संकोच बताइये।”
” आप महाराज और महारानी से कह दीजियेगा कि राजकुमार के यज्ञोपवीत के पहले उनकी कुण्डली का लिखा किया जाना कल्याणकारी नहीं होगा। इतने दिनों बाद पुत्र को प्राप्त करके महाराज और महारानी कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे राजकुमार का अमंगल हो।”
” यही उपाय पूर्णत,: उचित है क्योंकि विधि के विधान को मिटाने की क्षमता तो स्वयं ईश्वर में भी नहीं है।”
” परन्तु स्वामी, महाराज और महारानी कैसे सहन कर पायेंगे, उनका हृदय तो टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा।”
” सब कुछ कालचक्र के अधीन है, नियति का रचयिता तो कोई और है।” राज ज्योतिषी ने एक ठंडी आह भरी।
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एक भूल …(भाग-5) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर