एक भूल …(भाग-20) एवं अन्तिम – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

अब आगे •••••••

रामलला घर में आये तो शिवाकान्त शुक्ल के परिवार की समृद्धि के द्वार खुलते गये। वह टूटा फूटा मकान धीरे धीरे हवेली में बदल गया लेकिन घर के पूजा वाले कमरे का फर्श सदैव वैसा ही ईंटों वाला ही रहा। आधुनिकता के  सारे साधन घर में आते गये लेकिन घर के मुखिया का कमरा वही ईंटों की फर्श वाला पूजा का कमरा ही रहा।

सत्ताओं का क्रूर चक्र चलता रहा और रामलला उसी तरह चुपचाप गढ्ढे में बैठे रहे। केवल घर का मुखिया प्रति वर्ष रामनवमी के दिन मौन रहकर बन्द कमरे में रामलला को गड्ढे से निकालकर उनकी पूजा अर्चना करता । इसके बाद उसी तरह पुन: उन्हें नये लाल रेशमी वस्त्र में लपेटकर गड्ढे में रख दिया जाता और उस पर ईटें और भारी सन्दूक रख दिये जाते

मुगल सल्तनत समाप्त हो गई, देश पर अंग्रेजों का राज्य हो गया लेकिन रामलला वैसे ही छुपे बैठे रहे।

अन्त में  वृद्ध जानकी रमण ने एक लम्बी सॉस ली और अपने बेटे कमलाक्ष से कहा -” हमारे पूर्वज मरने से पहले अपनी दो इच्छायें भी विरासत में दे जाते हैं, उनमें से एक पूर्ण हो गई है। हमारा देश गुलामी की जंजीरों से स्वतन्त्र हो गया। अब यदि हो सके तो मेरे बाद मेरी दूसरी इच्छा पूरी कर देना।”

” आप ऐसे मत कहिये पिताजी, आप मुझे अपनी इच्छा बताइये, मैं आपके सामने आपकी इच्छा पूरी करूॅगा।”

वृद्ध ने कमलाक्ष के सिर पर हाथ रख दिया और कहा –

” मरने के पहले मैं और मेरे पूर्वज अपने देश को स्वतंत्र देखना चाहते थे। ईश्वर ने मेरे जीवन काल में मेरी वह इच्छा पूरी कर दी। बस दूसरी इच्छा भी पूरी हो जाये तो मैं अपने पूर्वज शिवाकान्त के ऋण से मुक्त हो जाऊॅ।”

” आप निसंकोच बताइये। “

” मैं चाहता हूॅ कि रामलला गड्ढे से निकलकर अपने मन्दिर में उसी स्थान पर प्रतिष्ठित हो जायें। हमारे पूर्वज ने रामलला को वचन दिया था कि जब परिस्थितियॉ अनुकूल होंगी तब उनका कोई वंशधर उनको मन्दिर में प्रतिष्ठित करायेगा। “

” मैं निश्चित ही आपके जीवन काल में ही यह कार्य करवाऊंगा, आप निश्चिन्त रहें लेकिन मेरे मन में एक उत्सुकता है। क्या उसका समाधान करेंगे?”

” कहो, क्या जानना है?”

” यदि किसी कारणवश पुत्र प्राप्त न हो तो क्या बेटियों को यह अधिकार था यह रहस्य जानने का?”

” नहीं, पुत्रियॉ विवाह पश्चात हमारा घर ऑगन छोड़ कर चली जाती हैं और उन्हें किसी दूसरे के वंश की परम्पराओं का पालन करना होता है। इसलिये पुत्र न होने पर किसी बच्चे को दत्तक बनाने की परम्परा है हमारे वंश में। “

” क्या अपने वंश में कोई ऐसा नहीं हुआ है जो इस गोपनीयता को बनाये रखने में असमर्थ रहा हो और उसने••••।”

” यदि ऐसा हुआ होता तो रामलला आजतक सुरक्षित बैठे न रहते। केवल बहू ही यह रहस्य जानने का अधिकार रखती है क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में रामलला का दायित्व उसी का रहता है। तुम कल बहू को लेकर मेरे पास आना। मैं खुद उसे सब कुछ बता दूॅगा और साथ ही तुम दोनों को रामलला और अपने बच्चों की शपथ लेकर गोपनीयता का वचन देना होगा।”

” यदि कोई इस शपथ को भंग कर दे तो ••••।”

जानकी रमण हॅस पड़े – ” तो वह जाने और रामलला जानें लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।”

इसके पश्चात ने जानकी रमण बकमलाक्ष से अपनी चारपाई के नीचे की ईंटें हटाने को कहा और पहली बार उनके पुत्र कमलाक्ष ने रामलला के दर्शन किये। छोटे से सन्दूक में चॉदी के रामलला मुस्करा रहे थे।

वृद्ध ने अपने पुत्र कमलाक्ष के सिर पर हाथ रखकर कहा – ” आज से इन रामलला का दायित्व तुम्हारा है। प्राण देकर भी इनकी रक्षा करना।”

” लेकिन यह सब •••••••।” कमलाक्ष ने गड्ढे में रखे सोने और चांदी के सिक्कों की ओर संकेत किया।

” जब शिवाकान्त जी रामलला को लाये थे तो उनके पास कुछ नहीं था लेकिन उनकी पत्नी कालिन्दी ने एक कौड़ी ( उस समय लेन देन में कौड़ियों का चलन था ) रखकर कहा कि आज हमारे घर रामलला आये हैं तो यह उनकी न्यौछावर है। इसके बाद हर रामनवमी पर जो इनकी पूजा अर्चना करता कुछ न कुछ चढा देता। चूॅकि यहॉ स्थान कम था तो चढाये गये धन को सोने के सिक्कों में बदल दिया जाता था।”

वृद्ध का पुत्र चुपचाप सुन रहा था, आज इतने बड़े रहस्योद्घाटन होने से वह अचम्भित था। उसे और साथ ही सबको यह तो ज्ञात था कि इस कमरे में कोई तो रहस्य है

जिसके कारण इतनी सम्पत्ति के बाद भी इस कमरे का फर्श जैसा का तैसा है। हर पीढ़ी के बच्चे इसे दकियानूसी विचार मानकर जिद भी करते थे लेकिन घर का मुखिया कभी इस बात के लिये तैयार न होता और सभी आश्चर्यचकित रह जाते जब उसकी मृत्यु के बाद जो भी मुखिया होता वह उसी कमरे में रहने और वैसा ही फर्श रखने की जिद पकड़ लेता।

“‘ इन पैसों से उसी स्थान पर रामलला का मन्दिर बनवा कर रामलला को इस कैद से स्वतन्त्र कर देना।”

अब तक रामलला की कृपा से परिवार इतना समृद्ध तो हो ही गया था कि रामलला का एक छोटा सा मन्दिर बनवा सके।

बंजर जंगल सी पड़ी उस ध्वस्त हो चुके मन्दिर की भूमि पर रामलला गड्ढे की कैद से मुक्त होकर पुन: प्रतिष्ठित हुये। शिवाकान्त जी के वंशजों ने रामलला की प्रतिष्ठा के साथ ही यह पूरी गाथा पुस्तक रूप में प्रकाशित करवा कर प्रसाद रूप में वितरित करवाई।

वही रामलला जब आज चोरी हो गये तो जन भावनाओं का आहत होना स्वाभाविक था। शिवाकान्त शुक्ल के वंशज जिनका व्यापार इस समय नगर के अतिरिक्त अन्य देशों तक पहुंच गया था को किसी भी प्रकार से चैन नहीं था। उन्होंने अपने महल जैसे घर में रामलला के पुनरागमन ( दुबारा आने ) तक अखण्ड रामायण का पाठ प्रारम्भ करवा दिया।

पुलिस और प्रशासन पर लगातार दबाव बढते जाने का ही प्रभाव था कि करीब बीस घंटे के अन्दर ही समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों पर मूर्ति तस्करों के गिरोह सहित रामलला छा गये। हर घर में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई।

” रामलला वापस आ गये।”नगर में जगह जगह भंडारे और प्रसाद वितरण होने लगा।

समाप्त

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

दोस्तों यह छोटी सी धारावाहिक कहानी कैसी लगी। अपनी प्रतिक्रियाओं और समीक्षाओं द्वारा अवश्य बतायें। साथ ही इस कहानी का दूसरा कोई नाम उचित लगे तो बताइयेगा। अपने सभी मित्रों को बहुत बहुत प्यार।

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