अब आगे •••••••
सांकल की धीमी आवाज सुनकर वह पुत्र को वैसे ही गोद में उठाये द्वार की ओर दौड़ी, तब तक दुबारा सांकल बजी साथ ही शिवाकान्त का स्वर सुनाई दिया – ” कालिन्दी, जल्दी द्वार खोलो।”
द्वार खोलते ही कालिन्दी के होश उड़ गये, उसके सामने खड़ा एक सैनिक कालिन्दी को परे हटाकर घर के अन्दर आ गया। वह सैनिक शायद दौड़ता हुआ कहीं दूर से आ रहा था इसलिये हॉफ रहा था।
कालिन्दी घबरा गई – ” कौन हो तुम? आवाज तो अभी मेरे पति की आई थी।”
” डरो मत कालिन्दी मैं ही हूॅ।”
” आप।” कालिन्दी विस्मय से उस सैनिक की ओर देखकर बोली तो शिवाकान्त ने अपने मुंह पर उंगली रखकर उसे शान्त रहने का इशारा किया। कालिन्दी हतप्रभ सी शिवाकान्त को देख रही थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
वह विस्मय से शिवाकान्त को देख रही थी जो उन्हीं कपड़ों में कमरे के कोने की ओर खुरपी से गड्ढा खोद रहा था।
कालिन्दी ने जब पति को कमरे में एक गड्ढा खोदते देखा तो बिना कुछ बोले स्वयं भी उसमें सहयोग देने लगी।
इतने वर्षों के वैवाहिक जीवन में उसे विश्वास हो गया था कि शिवाकान्त कभी कुछ भी अनैतिक नहीं कर सकते। वह समझ गई कि शिवाकान्त किसी कारण वश ही घर के अन्दर यह गढ्ढा खोद रहे हैं और कार्य पूर्ण होने पर स्वयं उसे सब कुछ स्पष्ट बता देंगे। उस समय अधिकतर घर मिट्टी और ईटों से ही बनते थे।
पर्याप्त गहरा गड्ढा हो जाने के बाद शिवाकान्त ने कालिन्दी से एक लाल रंग का कपड़ा लाने को कहा। कालिन्दी के पास उस समय घर में लाल रंग का कपड़ा नहीं था तो वह अपनी एक लाल रंग की नई साड़ी ले आई।
जब शिवाकान्त ने अपने वस्त्रों में छुपाये रामलला को निकाल कर लाल साड़ी में लपेटा तो कालिन्दी जैसे जड़ हो गई, उसे मूर्च्छा आने लगी।
अपने पैरों का कंपन जब वह सम्हाल नहीं पाई तो वहीं पुत्र की चारपाई पर बैठ गई। वह फटी फटी ऑखों से कभी शिवाकान्त को और कभी उसके हाथों में लिपटे रामलला को देख रही थी। उसके मुॅह से आवाज नहीं निकल रही थी।
शिवाकान्त ने रामलला को धीरे से उस गढ्ढे में रखकर उस पर पहले की तरह ईंटों को रखकर बन्द कर दिया और उसके ऊपर सन्दूक रख दिया। प्रसन्नता और गौरव से उनका मुख दमक रहा था।
अब वह स्वयं भी आकर चारपाई पर बैठ गये और कालिन्दी के कन्धे सहलाते हुये पूरी बात बताई कि कैसे उसने एक सैनिक के वस्त्रों की व्यवस्था की और कैसे मदिरा के नशे में डूबे सैनिकों को बेवकूफ बना कर बहाने से अपने वस्त्रों में रामलला को छुपाकर ले आये।
इसके बाद शिवाकान्त ने कालिन्दी का एक हाथ अपने सिर पर और दूसरा बेटे के सिर पर रखा और गम्भीर स्वर में कहा – ” कालिन्दी, आज के बाद सब कुछ भूल जाना, तुम्हें अपने पति और पुत्र की शपथ है क्योंकि तुम स्वयं समझ सकती हो कि इस रहस्य के प्रकट होने का क्या परिणाम होगा?”
” मैं किसी से नहीं कहूॅगी लेकिन रामलला कब तक बिना पूजा के गड्ढे में ऐसे ही बैठे रहेंगे? और हम दोनों के बाद रामलला का क्या होगा?
” भविष्य हमारे हाथ में नहीं है। हमारे हाथ में सिर्फ वर्तमान है जब तक उनकी इच्छा होगा ये ऐसे ही रहेंगे । अपनी मृत्यु के पूर्व हम अपनी ज्येष्ठ सन्तान को इस रहस्य से परिचित करा देंगे।”
अगला व अंतिम भाग
एक भूल …(भाग-20) एवं अन्तिम – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर