*** है कहानी बहुत पुरानी,, एक लड़की की ज़िन्दगी की संघर्ष भरी कहानी,, उसके पढ़ने के प्रति उसकी जुनून की कहानी,,शायद आपको भी पसंद आए ये कहानी,,
तो सुनिए,,उसी की जुबानी,,
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मैंने जब से होश संभाला, अपने को नागपुर में नानाजी के यहां पाया,, मां ने कहा, कि तुम्हारे बाबूजी का ट्रान्सफर बार बार होता है,, इसलिए तुम्हारी पढ़ाई के लिए यहां छोड़ कर जा रही हूं,,
वो सब म, प्र,के एक जिले में रहते थे,, मैं कुछ ना बोली,बस रोती रही,,,,नाना जी, मुझे लेकर एक अच्छे सरकारी स्कूल में नाम दर्ज कराने ले गये,,, मेरी नातिन को कक्षा तीन में प्रवेश दे दीजिए,,
टीचर ने पूछा, टी,सी, कहां है,,
मैंने तो एक भी कक्षा नहीं पास की थी,,दो कक्षा पढ़ते, पढ़ते चार बार तबादला हुआ,,, नानाजी ने बताया तो वो बोली, अच्छा, जन्म तारीख बताईये,, नानाजी बोले कि, पता नहीं,, इस पर वो बोली कि, पहली कक्षा में ही प्रवेश मिलेगा,, नानाजी ने कहा कि,,इसकी तीसरी कक्षा की आप परीक्षा ले लीजिए, यदि फेल हो जाती है, तो आप पहली मे ही कर देना,, मैं छोटी,दुबली, पतली,, मासूम, सी सहमी, सहमी,, वो मुझे देख मुस्कुराई और बहुत कड़ी परीक्षा ली गई मेरी,, रिजल्ट देख कर सब हैरान रह गई,, हमने तो कक्षा चार का पेपर दिया , इसने तो सब हल कर दिया,,पर हम इसे तीन में ही प्रवेश देते हैं,,,
अब हमारी पढ़ाई बिना किसी अड़चन के चलने लगी,,, कक्षा तीन से कक्षा छः तक नागपुर में पढ़ाई की,, और हमेशा सर्वोच्च स्थान पर रहे,, नानाजी ने हमें बिलकुल राजकुमारी सा रखा,,उस जमाने में केवल साटन के फ्रॉक ही हम पहनते थे,, नानाजी हमारे लिए रोज शाम को समोसा, नमकीन ले आते थे,, हमें प्रतिदिन जेबखर्च के लिए एक रूपए से पांच रुपए तक मिलते थे,,हम अपनी सहेलियों को खूब खिलाते,सबकी पैसे से मदद भी करते,,,
अब सातवीं कक्षा में पढ़ने अपने मां पिता के पास लाये गये,,
हम जब स्कूल जाने लगे तो हमारी मां ने हमारे हाथ में चवन्नी का एक सिक्का रखा, और कहा कि आधी छुट्टी में कुछ खा लेना,,
हमने अपने हथेली पर रखे हुए उस सिक्के को देखा और अम्मा जी को देखा,, लगता है कि ये
लोग गरीब हैं, नानाजी तो मुझे प्रतिदिन कितना पैसा देते थे,,
मैंने स्कूल से वापस आकर उन्हें वो सिक्का लौटा दिया, और कहा कि मुझे बस टिफिन चाहिए, पैसा नहीं,,, मुझे यूनिफॉर्म के सिवाय एक,दो साधारण कपड़े मिल जाते,, मैंने कभी किसी चीज़ की मांग नहीं की,,, वहां भी मैंने अपना वही प्रथम आने का स्थान बरकरार रखा,,जब मैं आठवीं कक्षा में गई , बाबू जी ने कहा, मैं तुम्हें अब नहीं पढ़ा सकता,, तुम्हारे दो भाई और भी हैं उन्हें पढ़ाना है,, मेरी हैसियत नहीं है, तुम्हें पढ़ाने की,, मैं बहुत रोई,, मैंने चुपचाप नानाजी को ख़त लिख कर बताया,, नानाजी ने स्कूल के पते पर दो सौ रुपए भेजा,, और बाबूजी को पत्र लिखकर सख्ती से कहा कि इसकी पढ़ाई छुटना नहीं चाहिए,,
फिर क्या था,हम मेहनत करके जी जान से पढ़ने लगे,,सब अवकाश में खेलते , मस्ती करते,हम लड़कियों की किताबें, कापियां मांग कर नोट्स लिखते,, हमें पढ़ना था बस पढ़ना था,,ना जाने कैसा जुनून हम पर सवार था,, हमने दसवीं में कला संकाय से अबकी जिले में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया, हमें गोल्ड मेडल मिला,, विज्ञान की टीचर अपनी छात्राओं पर भड़ास निकाल रही थी,, वो कला विषय की होकर इतिहास, हिंदी में विशेष योग्यता अस्सी प्रतिशत ले आई, और तुम प्रेक्टिकल में इतने नंबर देने के बाद भी पीछे रह गई,,, प्रिन्सिपल और मेरी टीचर्स बहुत ही खुश थी, उनके स्कूल का नाम जो रोशन हुआ था,,, आपको बता दूं,इस खुशी में मुझे पहली बार एक स्वेटर मिला था,, सच्ची में,, इसके पहले,,, नहीं ,तब मुझसे स्कूल में सब कहते , तुम्हें ठंड नहीं लग रही है,हम हंस कर कहते, बिल्कुल नहीं,,पर कांपते रहते थे,, हमें बस पढ़ना था, कुछ कहकर पढ़ाई बंद नहीं करवाना था,
जब हम बारहवीं कक्षा में गये,तब तक नानाजी सेवा निवृत्त होकर अपने गांव प्रतापगढ़ चले गए,,
अब फिर हमारी पढ़ाई छुड़वा दी गई,, हमने अपनी प्यारी सहेली प्रीति को बुलाया अपना दुखड़ा सुनाया, उसने बाबूजी को बहुत समझाया,, वो किताबें नहीं खरीदेगी,,मैं मदद कर दूंगी, नोट्स बना कर पढ़ेगी,, वो मान गये, और एक बार फिर हमने अपना वही स्थान बरकरार रखा,, आगे,,,अब आगे क्या , हमारी पढ़ाई बंद, कालेज तो भेजना नहीं,सह शिक्षा थी जो,,तो हमें मां गांव ले आई,,अब शादी की तैयारी जो करवाना था,, हां हम एक बात तो कहना ही भूल गए, दसवीं में ही हमारे पूज्य पिताजी ने हमारी सगाई गांव में कर दी, उनके भाई,भाभी का कहना था कि क्या नौकरी करवा कर लड़की की कमाई खाना है,,जो इतना पढ़ा रहे हो,पर यहां भी नानाजी फरिश्ता बनकर आए, और बोले,इसको देखो, दुबली पतली, क्या उम्र है इसकी,, मैं शादी करवाऊंगा,,इस तरह मैं बच गई,,
अब मां मुझे रसोई, और खेती का काम सिखाने लगी,, मुझे सारी फसलों की पहचान कराना, धान कूटना, चक्की चलाना, सब कुछ,,
एक दिन तो हद ही हो गई,, सुबह माघ के महीने में पांच बजे से ही उठा कर गेहूं के खेत में ले गई और बोली नहर का पानी आया है, इसमें क्यारी बनाना सीखो, उस समय तो हम लोगों की मना करने की हिम्मत ही नहीं थी,, हो मरता क्या ना करता,,हम ठिठुर रहे थे और रो भी रहे थे, अम्मा बोली, बेटा, ससुराल जावोगी , तो करना पड़ेगा तो सीख लो, मैं भी पढ़ी लिखी हूं, मैं जब दो महीने की थी , तभी मेरी मां का देहांत हो गया था,,पर मुझ पर आज कोई ऊंगली नहीं उठा सकता,, तुमसे कुछ नहीं बनेगा तो सब मायके को भला, बुरा कहेंगे,, और तुम्हारा जीना भी मुश्किल कर देंगे,, इसके बाद मां मुझे घर में अकेले ही छोड़ कर शहर वापस चली गई, मेरे साथ मेरा छोटा भाई भी था,,जाते समय मैंने मां से कहा,,कि जब तक मेरी नौकरी नहीं लगती, मैं हरगिज़ शादी नहीं करूंगी,चाहे जो भी हो जाए,, मां मुझे हैरानी से देखने लगी,, क्यों कि इससे पहले मैंने कभी मुंह नहीं खोला था,,
वो जब गई, उन्होंने बाबू जी से बताया,तो शायद मेरी किस्मत में था,, नौकरी करना,वो मान गये,, फिर मैं वापस गई और बी,ए,का प्रायवेट परीक्षा फार्म भरा और प्रथम स्थान प्राप्त किया,,बस मेरे पिता जी ने एक ही बढ़िया कार्य किया,मेरा शिक्षक प्रशिक्षण हेतु आवेदन फार्म भर कर जमा कर दिया,, और विश्वास करिए,, तमाम लड़कियों में से केवल मेरा ही चयन हुआ,, मैं बहुत खुश थी, सभी खुश थे,, मैंने शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में भी पूरे प्रदेश में तीसरा स्थान प्राप्त किया, प्रिन्सिपल, से लेकर, सभी लोग बहुत खुश थे, जिला शिक्षा अधिकारी तक बात पहुंची,, उन्होंने मेरी नियुक्ति मेरे घर के पीछे के स्कूल में कर दिया,,
अब मैं तीन वर्षों तक आगे की पढ़ाई नहीं कर सकती थी,, हां , मेरी ट्रेनिंग पूरी होते ही मैंने शादी के लिए हां कह दी,पर शर्त रखी कि, मैं नौकरी नहीं छोड़ूंगी,, प्रतापगढ़ वाले थे, इनका कोई भरोसा नहीं था,,
बारहवीं बोर्ड में प्रथम श्रेणी में पास होने के कारण मुझे बैंक से और पोस्ट आफिस में भी नौकरी ज्वाइन करने के लिए बुलाया गया था,, पर मुझे बच्चों को ही पढ़ाना था, इसलिए मैं नहीं गई,,
खैर,,,,, नौकरी करते हुए मेरी गोद में नन्ही बिटिया आ गई,, तब तक मैंने प्रायवेट एम, ए, प्रथम वर्ष अर्थशास्त्र से कर लिया था,, लेकिन अब बेटी के आने से मेरी फाइनल परीक्षा में अड़चन आ गई,, उसके एक साल बाद मैंने एम, ए,की फाइनल परीक्षा दिया, बेटी को गोद में लेकर,,घर में मां आकर देखती, मेरे परीक्षा देने तक,, ये तो नौकरी करने दूसरे संभाग में रहते थे,, नौकरी करना, बच्ची को संभालना,, फिर भी मैंने अपना स्थान नहीं खोया,,पढ़ाई का इतना जुनून कि किस पृष्ठ पर किसकी कौन सी परिभाषा लिखी है, सब याद रहता,किस पृष्ठ पर क्या लिखा है ,सब पता था,,
मैंने पहली बार एम, ए, अर्थशास्त्र की किताबें खरीदी, और पूरी पढ़ाई के दौरान उसमें पेन या पेंसिल से एक भी निशान नहीं लगाया, ताकि मैं इन किताबों को सही अवस्था में जरूरत मंद को दे सकूं,,
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अब आप मुझसे पूछेंगे कि मेरा रिजल्ट क्या रहा,,, तो चलिए, किसी और से जानते हैं,,,
मैं एक दिन अपनी स्कूल की शिक्षिका के घर पर बैठी थी,, वहां
उनके बेटे के कुछ दोस्त आये थे, वो आपस में बातें कर रहे थे,,यार,उस लड़की को देखा था, परीक्षा हाल में,, क्या सरपट , फर्राटे से लिखती थी,,कापी पर कापी भरती जाती,सब बोल रहे थे,कि दिखावा करती है, खाली उत्तर पुस्तिका छोड़ रही है,,अब देखो, स्नातकोत्तर महाविद्यालय में बैनर लगा है,,
,,, सुषमा यादव,एम, ए, अर्थशास्त्र,
,,,,,, संभाग में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान,,
मुझे इस बात की कतई जानकारी नहीं थी,, मैं उनका मुंह देखने लगी,, मुझे इसकी उम्मीद ही नहीं थी,, वो शिक्षिका बोली,,कि उनको जानते हो, वो बोले, नहीं,बस कालेज में परीक्षा के समय लोग उनके बारे में बातें करते थे,,मुस्करा कर बोली,,ये सामने बैठी हैं,,,सब आश्चर्य चकित हो गये और बोले कि आप तो टीचर हैं, नौकरी करते हुए,, कैसे,,,,
अब मेरा भाग्य देखिए,, उसके आगे मैं हार गई,,,,
उसी कालेज से दो प्रोफेसर मेरा नियुक्ति पत्र लेकर मेरे घर आये,आपको प्रिंसिपल साहब ने अपने कालेज में नियुक्त कर दिया है,आप आकर जल्दी से ज्वाइन कर लीजिए,, मैं अभी पत्र खोल भी नहीं पाईं कि ये आ गये, दो दिन की छुट्टी में,,, क्या है ये,, मैंने चहकते हुए पत्र थमाया,,,मेरा कालेज से नियुक्ति पत्र आया है,, पढ़ कर गुस्से से बोले,,, इतना कम है क्या,जो तुम्हें स्कूल में नौकरी करने दे रहा हूं,, गनीमत समझो, एक दिन तुम्हें ये भी छोड़ना पड़ेगा,,, जाइए, आप लोग,, ये वहां हरगिज़ नहीं जायेंगी,,,,,आज जो सेकंड श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थीं,,मेरा मज़ाक उड़ा रहीं थीं,, कालेज में प्रोफेसर हैं और हम हायर सेकंडरी स्कूल में ही रह गये,,,
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,, तक़दीर का फ़साना जाकर किसे सुनाएं,,,
इस दिल में जल रही है, अरमानों की चिताएं,,,,,,,,
सुषमा यादव,, प्रतापगढ़,
स्वरचित, मौलिक,,