Moral Stories in Hindi : अब ससुराल केवल शनिवार-रविवार को ही जाना होता। अब सप्ताह के पांच दिन उसके अपने होते। इसी बीच शिखा को एक नए जीवन के आगमन का एहसास अपने अंदर हुआ।उसकी तबियत ठीक नहीं रहती थी। कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती थी। वो बहुत ही भावनात्मक परिवर्तन से गुजर रही थी ऐसे समय में उसको अकेलापन और भी महसूस होता।
अपनी तबियत की वजह से नौकरी पर जाने की भी उसकी हिम्मत नहीं होती थी।नौकरी में इतनी छुट्टी मुश्किल थी। उसको जॉब छोड़नी पड़ी। असल में शिखा और रोहित मेट्रो शहर में थे जहां एक इंसान के काम करने से घर का खर्च नहीं चलता वैसे भी दोनों की नई गृहस्थी थी।
दोनों वैसे भी बहुत आत्मसम्मान वाले थे इसलिए घर से कुछ लेने का भी नहीं सोचते थे।इधर कंपनी ने रोहित को एक प्रस्ताव भी दिया था कि अगर वो एमबीए की डिग्री प्राप्त कर ले तो उसको प्रमोशन मिल सकता है।
ये सब जब शिखा को पता चला तब उसने रोहित को सुझाव दिया कि वो पार्ट टाइम एमबीए कर सकता है।फीस का इंतज़ाम उसने पास भी कुछ सेविंग्स हैं और एजुकेशन लोन भी मिल जाता है उससे हो जायेगा। रोहित थोड़ा हिचकिचा रहा था क्योंकि उसकी सारी सेविंग्स पिछले साल उसकी शादी से पहले बहन की शादी में खर्च हो गई थी।
वैसे भी अभी चौबीस साल का ही था तो इतना बैंक बैलेंस उसके पास नहीं था। इधर शिखा के पापा सरकारी अफसर रहे थे तो उसने ज़िंदगी में कभी कोई अभाव अनुभव नहीं किया था पर उसके संस्कार ऐसे थे कि कभी भी अपने ससुराल में घर के काम में मिले तानों और रोहित के बैंक बैलेंस को लेकर मायके में अपने माता पिता से भी कुछ नहीं कहा था।उसको पूर्ण विश्वास था कि वो और रोहित मिलकर सब कर लेंगे।
रोहित ने शिखा के हिम्मत बढ़ाने पर पार्टटाइम एमबीए में एडमिशन ले लिया। अब समस्या थी कि एमबीए में बीच बीच में मिलने वाले असाइनमेंट कैसे पूरे होंगे जो निश्चित अवधि तक जमा करने होते हैं इसका हल भी शिखा ने निकाल दिया।उसने कहा कि वो तो अभी घर पर है और दो लोगों का इतना काम भी नहीं होता। वैसे भी असाइनमेंट उसको घर में बैठ कर ही तो लिखने हैं वैसे भी पढ़ाई लिखाई करना उसको बहुत अच्छा लगता है।
इस तरह शिखा ने रोहित के सारे असाइनमेंट लिखे और साथ साथ उसके लिए नोट्स भी बनाए जो आगे जब वो अपनी परीक्षा देना गया तो उसके काफी काम आए। यहां तक की शिखा ने रोहित के एमबीए के अग्रिम सालों के नोट्स और असाइनमेंट भी बना कर रख दिए। इधर बच्चे के पैदा होने का समय भी आ गया।
रोहित और शिखा एक सुंदर सी बच्ची के माता पिता बन गए। बच्ची के पैदा होने के एक हफ्ते के बाद ही क्योंकि रोहित के एमबीए को एक साल हो गया था,प्रमोशन मिल गया। शिखा के साथ अभी भी रोहित की मां,बहन और रिश्तेदारों का व्यवहार जस का तस था। किसी तरह चालीस दिन का समय निकालकर शिखा अपनी बेटी के साथ वापिस आ गई।
बेटी का नाम प्यार से रिया रखा। ससुराल पक्ष से मिली इस तरह की उपेक्षा ने शिखा को बहुत कुछ सीखा दिया था हालांकि उसको ये अवश्य लगता कि रोहित ने काश एक बार तो उसकी तरफ से बोला होता या अपनी मां और बहन को समझाया होता पर फिर को रोहित की स्थिति का आंकलन कर अपने को ही समझा देती। वैसे भी रोहित का मानना था कि अगर पानी में पत्थर मारोगे तो छींटे भी खुद पर आयेंगे इसलिए वो शिखा को भी इन सब बातों से दूर रहने को कहता।
इस तरह बहुत उतार चढ़ाव आए पर शिखा ने रोहित का कदम कदम पर साथ दिया। अपने लिए कभी एक गहने तक की मांग नहीं की जो भी पैसा एकत्रित हुआ उसको सबसे पहले एक घर खरीदने में लगाया।बेटी के बड़े होने पर आगे और भी पढ़ाई की और आज खुद भी बड़े स्कूल में प्राध्यापिका है। जो रोहित ने स्टार्टअप का काम भी नौकरी छोड़ कर शुरू किया उसके लिए भी शिखा ने उसको घर खर्च से पूरी तरह निश्चिंत रखा।
आज रोहित ने शिखा का नाम पूरी दुनिया के सामने जिस गर्व से लिया उसको ऐसा लगा मानो वो सबसे खुशकिस्मत महिला हो। आज रोहित का उसके लिए बोला गया गृहलक्ष्मी शब्द के आगे मिस यूनिवर्स का खिताब की चमक भी फीकी नज़र आ रही थी। शिखा को लग रहा था कि उसने तो रोहित का साथ दिया पर रोहित ने भी इस रिश्ते को अपना सौ प्रतिशत दिया।
वो अगर घर के झगड़ों में शिखा की तरफ से कुछ बोलता तो यकीनन रिश्तें खराब ही होते। आज अगर शिखा के मन में अपने साथ हुए बुरे व्यवहार की कसक है तो कहीं ना कहीं ये खुशी भी है कि शुरू के दिनों में चाहे जो हुआ हो पर रोहित और उसके तालमेल ने बेटी को एक अच्छी परवरिश दी जो कि उसके अग्रिम भविष्य के लिए आवश्यक थी।
वो तो ये सब सोच ही रही थी कि रिया ने उसको हिलाते हुए बोला अभी तक तो वो सोचती थी कि उसके अंदर प्रबंधन की पढ़ाई की तरफ रुझान पापा की वजह से है पर इसमें तो आपका भी पूरा योगदान है क्योंकि अभिमन्यु की तरह मैंने भी आपके गर्भ मे ही प्रबंधन की पढ़ाई शुरू कर दी थी। शिखा रिया की बात सुनकर मुस्करा दी।
इधर रोहित का साक्षात्कार खत्म हो गया था वो घर ही आ रहा था। शिखा ने जल्दी जल्दी रोहित की पसंद का केक बनाया। रोहित के आते ही रिया अपने पापा के गले लग गई। शिखा ने टेबल पर केक सजाया। रोहित और शिखा अभी एक दूसरे की तरफ देख ही रहे थे तभी रिया ने बोला कि इतने सालों से एक दूसरे को देखकर भी आप दोनों का मन नहीं भरा। अब जल्दी केक काटो मुझे भूख लगी है।
रोहित और शिखा अपनी दुनिया में वापस आ गए। थोड़ी देर में सभी रिश्तेदारों के भी बधाई के लिए फोन आने लगे। शिखा की सास का भी फोन आया उन्होंने रोहित को तो आर्शीवाद दिया ही साथ-साथ शिखा को भी कहा कि बहू तुम वास्तव में संपूर्ण गृहलक्ष्मी हो। शिखा मन ही मन सोच रही थी कि वो किशोरावस्था से प्रेमकहानियों में जीने वाली लड़की थी पर उसकी प्रेमकथा तो उसके ख्वाबों से भी खूबसूरत और अनूठी है।
दोस्तों कैसी लगी ये हल्की फुल्की प्रेमकथा,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। जहां पत्नी ने गृहलक्ष्मी बनकर अगर घर बाहर संवारा और पति का साथ दिया तो पति ने भी अपनी सफलता का पूर्ण श्रेय पूरी दुनिया के सामने पत्नी को देकर उसका मान सम्मान बनाया।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
#गृहलक्ष्मी