वर्ष 2000 में एक बिहारी युवक और पंजाब के लुधियाना में वहाँ की पंजाबी कुड़ी को आपस में प्यार हो जाता है। दोनों समाज के विरोध की परवाह न करते मज़बूती से एक-दूसरे का हाथ थाम लेते हैं ईमानदारी से।
पंजाब में परिजनों के विरोध की वज़ह से जोड़ी बिहार के मेरे गृह जिले रोहतास (युवक का भी गृहजिला) आ जाती है। यहाँ भी विरोध शुरू होता है, युवक के माता-पिता की तरफ़ से। पर दृढ़निश्चयी युवक डिगता नहीं।
समय तेज़ी से बढ़ता है। इस दौरान इस युगल जोड़ी को तीन प्यारी बेटियां होती हैं। पर हाय रे दुर्भाग्य, न जाने किसकी नज़र इस जोड़ी को लग गयी।
वर्ष 2008 में युवक, जो आर्केस्ट्रा से जुड़े थे और जबर गायक थे, एक समारोह के दौरान पास के ही अल्पसंख्यक बहुल गांव में शिरकत करने जाते हैं। वहाँ समारोह के दौरान स्टेज पर ही युवक की स्थानीय असामाजिक तत्व गोली मार कर हत्या कर देते हैं जबकि कोई निजी रंजिश भी नहीं थी..!!
मामला पुलिस के पास जाता है और एफआईआर भी होती है, पर ताकतवर के आगे कमज़ोर की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन कर रह गयी। मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया प्रेम से।
अब युवक के घर में रह गए उनकी बीवी, तीन बेटियां और एकमात्र छोटा भाई। माता-पिता पहले ही युवक की शादी की वज़ह से दुःखी हो अलग हो गए थे।
परिवार पर मानो दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा हो जैसे। पंजाबी लड़की के आगे अँधेरा छा गया। पति को नियति के क्रूर हाथों ने छीन लिया, मायका हमेशा के लिए छूट ही गया था। सास-ससुर भी अलग थे। साथ में तीन बेटियों का भरण-पोषण व अंधकारमय भविष्य..!!
यहाँ से ज़िन्दगी की जद्दोजहद शुरू हुई। घर में एकमात्र पुरुष सदस्य के रूप में रह गया था युवक का उनसे दो वर्ष छोटा तब एकमात्र भाई..!! बड़े भाई की हत्या का सड़ी-गली व्यवस्था में केस लड़े, कि भाई के परिवार को संभाले, कि ख़ुद का कैरियर देखे। उस पर तब माँ-बाप भी अलग।
छोटे भाई की रातों की नींद उचट गयी। करे तो क्या करे..?? फिर एक रोज़ उसने दृढ़ निश्चय कर ही लिया। कुछ भरोसेमन्द रिश्तेदारों से बात की और एक अनोखा निर्णय लिया..अपनी विधवा भाभी का हाथ थामने का निर्णय..!!!!!
एक बार फिर से छोटे भाई के माता-पिता ने कोहराम मचा दिया। पर छोटा भाई भी बड़े भाई जैसा ही दृढ़निश्चयी निकला। निर्णय ले लिया तो ले लिया..
वर्ष 2011 में यानी बड़े भाई की मृत्यु के तीन वर्ष बाद धूमधाम से छोटे भाई ने अपनी विधवा भाभी का न सिर्फ़ समाज के सामने हाथ थामा, वरन तीन बेटियों की परवरिश का जिम्मा भी ख़ुद के युवा कन्धों पर ले लिया। तमाम लोग विवाह में सम्मिलित हुए व वर-वधु को आशीर्वाद दिया..
ये युवक हैं मेरे गृह जिले रोहतास के बिक्रमगंज अनुमण्डल के रहने वाले श्री देवानन्द पटेल जी, जो कुछ दिनों पहले ही मुझसे फेसबुक पर जुड़े थे और लगातार मेरी पोस्ट्स पर इनकी उपस्थिति बनी रहती थी। इन्होंने मेरी किसी प्रेरणादायक पोस्ट पर लिखा था कि इन्हें देर रात तक नींद नहीं आती और मेरी पोस्ट्स से इन्हें हिम्मत मिलती है..तो फिर इनसे बात हुई और विधि का विधान देखिए कि इनसे कल ही मेरी मुलाक़ात भी हो गयी..!!
इनकी समस्या के निराकरण के लिए यह ख़ुद तो प्रयासरत हैं ही क्योंकि ख़ुद ही काफ़ी जीवट व हिम्मती व्यक्तित्व के मालिक हैं। मैंने भी अपनी तरफ़ से एक टाँग अड़ा दिया है इनके जैसे जीवट व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के लिए..ताकि यह मज़बूती से खड़े रहे अपने दम पर पूरे स्वाभिमान के साथ..
इनकी कहानी सुनी तो बड़ी रोचक लगी, सो इनसे अनुमति लेकर मैंने फेसबुक पर शेयर करने का निर्णय लिया। अच्छी बात है कि अब इनके माता-पिता इनसे जुड़ गए हैं और इनकी पत्नी, जो पंजाब की हैं, उनके परिवार वाले भी अब उनसे संपर्क में हैं।
बहुत लोग थोड़े से ही कष्ट में दुःखी होकर ईश्वर को दोष देने लगते हैं। सोचिए उन पंजाबी लड़की को नियति ने कितना झेलाया..पर देवानन्द जी के एक साहसी निर्णय ने जीवन की दिशा ही बदल दी। देवानन्द जी का निर्णय इस परम्परावादी पिछड़ी सोच वाले समाज के लिए एक अनुकरणीय आदर्श है..!! उन्हें मेरा सलाम..ईश्वर उन्हें व उनके परिवार को एक सुखद भविष्य दे और अब मैं भी उनके साथ हूँ ताज़िन्दगी..
क्रेडिट- कुमार प्रियांक