मीना जी ने चाय बनाई और टेबिल पर रखी ही थी कि
दरवाज़े पर दस्तक हुई रमेश जी ने खोलकर देखा तो एक नौजवान खड़ा था, हाथ जोड़कर बोला… मै “तन्मय” पीछे से मीना जी भी आ गई। तन्मय को देखकर रमेश जी और मीना जी को उसका पहला कदम किसी सपने से कम नहीं लग रहा था उन्हें लगा जैसे कि उनका बेटा वापस आ गया।
“मैं पास के ही स्कूल में खेलकूद का प्रशिक्षक हूं।” “क्या आपके घर में एक कमरा किराए पर मिल जाएगा?” तन्मय ने पूछा….. यह सुनकर रमेश जी ने हाँ कह दी।
आओ तुम्हे कमरा दिखा दूँ…. यह कहते हुए रमेश जी उसे अंदर लिवा लाये।
कमरा तन्मय को बहुत पसंद आता है तो वह रमेश जी से कहता है कि “ठीक है कल मैं सामान लेकर आ जाऊँगा” यह कहकर तन्मय वापस चला गया।
इसको देखकर तुम्हें ऐसा नहीं लगा कि अपना अमित वापस आ गया। यह कहते हुए रमेश जी और मीना जी अमित की फोटो के सामने खड़े हो गए।
पिछले साल की बात है जब अमित कोरोना से संक्रमित हो गया था। उसे अस्पताल ले जाया गया। उनका बेटा जो हमेशा सभी को हँसाता रहता था… सभी की मदद के लिए हर पल तैयार रहता था। आज वह असहाय सा अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा था। शरीर में लगी हुई मशीन की आवाज और असहनीय दर्द से वह बेहाल हुआ जा रहा था। दस दिन बाद ही अमित ने दम तोड़ दिया। रमेश जी और मीना जी ने बहुत कोशिश की उनके बेटे को एक बार मिलने दिया जाय। किंतु डाक्टर ने इजाजत नहीं दी। उन दोनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इस दुख की घड़ी में बेटी प्रिया भी दिल्ली से लखनऊ नहीं आ पायी।
समय ऐसा था कि कंधे पर हाथ रखने वाला कोई नहीं मिला। दोनों लोग एक-दूसरे को पकड़कर ही रोये जा रहे थे। वह वापस जा ही रहे थे कि एक नर्स ने चिट्ठी देते हुए कहा कि ये आपके बेटे ने लिखवाई थी और आपको देने के लिए कहा था घर आकर चिट्ठी खोलकर पढ़ी
आदरणीय पापा जी और मेरी प्यारी माँ,
जब तक आप ये चिट्ठी पढ़ रहे होंगे तब तक मैं जीवित नहीं होऊंगा आपका और मेरा साथ बस यहीं तक था…ईश्वर से बस एक ही ख्वाहिश है कि मुझे अगले जन्म में भी आप जैसे माँ और पापा मिले। अंतिम समय में मेरा बहुत दिल कर रहा था कि मैं माँ की गोद में सर रखकर सो जाऊँ। पर इस बीमारी ने अपनों को अपनों से दूर कर दिया। माँ मेरे जन्मदिन पर बेसन के लड्डू जरूर बनाईयेगा। मुझे बहुत पसंद थे। प्रिया को ढेर सारा प्यार। अब तेरा भाई तुझे कभी नहीं परेशान करेगा। लेकिन मेरी फोटो पर राखी जरूर बाँधना।
आप सबका दुलारा अक्षत
यह चिट्ठी पढ़कर दोनों जार-जार होकर रोये। कब दीपावली आयी, कब होली आयी। दोनों को होश ही नहीं रहता।
तन्मय रहने आ गया था। थोड़े दिनों में ही वह उन लोगों से ऐसे घुल-मिल गया था कि जैसे कई सालों से साथ रह रहा हो। पंद्रह अगस्त को अमित का जन्मदिन था। मीना जी सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर मंदिर हो आयी और रसोई में जाकर बेसन के लड्डू बनाने लगी कि तभी तन्मय आया और पूछने लगा कि “बहुत अच्छी खुशबु आ रही है क्या बना रही हो माँ” …….यह सुनते ही मीना जी के हाथ रुक गए और तन्मय की तरफ देखने लगी।
“क्या मैं आप को माँ बुला सकता हूं” तन्मय ने पूछा यह सुनते ही मीना जी ने रोते हुए “हाँ कह दिया।”
“मुझे भी बेसन के लड्डू बहुत पसंद हैं माँ” तन्मय ने मीना जी से कहा तो……मीना जी ने कुछ लड्डू अमित की फोटो के आगे रखकर दो लड्डू तन्मय को पकड़ा दिये। रसोई में और लड्डू रखे हैं जब मन करे तब और ले लेना…. यह कहते हुए मीना जी रसोई से बाहर आ गई।
“अरे भई हमें भी मिलेंगे” रमेश जी बाहर से आते हुए बोले….हाँ क्यों नहीं मिलेंगे रुकिए मैं लाता हूं यह कहकर तन्मय दौडकर प्लेट में लड्डू लेकर आ गया यह देख रमेश जी और मीना जी हंसने लगते हैं।
आज रक्षाबंधन है….प्रिया सुबह ही आ गई पहले तो सब मिलकर खूब रोये और अमित की बीती-बातों को याद करते रहे। प्रिया ने अमित की फोटो पर राखी बांधी तभी पीछे से आवाज आयी.. दी मुझे भी राखी बांध दो।
प्रिया यह सुनकर पीछे मुड़कर तन्मय को देखने लगती है…. फिर अपने आँसू पोंछकर तन्मय की कलाई पर राखी बांध देती है। तन्मय अपनी राखी को खुश होकर देखते हुए……. मैं तो अनाथ था पर देखो न मुझे यहां सभी रिश्ते मिल गए…
आप सही कह रहे हैं, मुझे भी भाई मिल गया…..प्रिया ने कहा आज बहुत समय बाद इस घर से हँसी की आवाज आ रही थी।
तन्मय अब उस घर का सदस्य बन गया था। अब तो उसका विवाह भी हो गया और कुछ समय पश्चात निकुंज के दो जुड़वा बच्चे भी हो गये जो रमेश जी और मीना जी के आगे-पीछे लगे रहते। कभी-कभी कोई अजनबी कब खास बन जाता है पता ही नहीं चलता….. प्रेम का बंधन होता ही है ऐसा कि कब अजनबी भी अपना खास बन जाता है पता ही नही चलता।
दोस्तों यह कहानी कोरोनाकाल समय पर हुई घटनाओं पर आहत दिल ने यह कहानी लिखी कैसी लगी अपने अमूल्य विचारों से अवगत जरूर कराएं
किरन विश्वकर्मा
#बंधन
लखनऊ