राधा और मोहन के दो बेटियाँ थी। एक सावी जो कि बहुत सुन्दर थी और दूसरी साँझी।
पर साँझी जन्म से ही अपाहिज थी। उसका एक पैर टेढ़ा था। वो लंगड़ा कर चलती थी
और सांवली भी थी,जिस कारण मोहन उसे कहीं बाहर लेके जाना पसंद नहीं करता था
और हर बार सावी से तुलना करता और सांझी का दिल दुखाता था। वह और सावी सांझी को नीचा
दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। माँ दोनों को एक आँख से देखती पर बाप नहीं।
माँ सांझी को हिम्मत बंधातीऔर उत्साहित करती।
मोहन के अधिक लाड़ -प्यार से सावी बिगड़ने लगी। पढाई से दूर होती गई और बतमीज़ भी।
जबकि सांझी अपनी माँ के द्वारा उत्साहित करने पर, आज अपने पिता के साहमने अफ़्सर बन के खड़ी थी
और माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर रही थी। घर में बधाई देने वालो की भीङ लगी हुई थी।
आज वही मोहन नजरें झुका कर एक कोने में खड़ा हुआ था। सांझी अपने पिता के पास आई, बोली आप मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे पिता जी।
मोहन ने उसे गले लगा लिया और अपने किए की माफ़ी मांगी। आज पिता पुत्री दोनी की आँखो से प्रेम बह रहा था।
रीतू गुप्ता
अप्रकाशित