पितृ दिवस पर – – –
आज वर्षो पूर्व का स्वाद याद आ गया. गोलगप्पे खूब चाव से खाता था. उम्र बढ़ जाने के कारण अब ऐसी चीजो को खाने से डॉक्टर भी मना करते हैं और शरीर भी. पर इस मन का क्या करे? अजीब सी बेचैनी है. बाहर खुद ठेले पर जाकर गोलगप्पे खाने में संकोच हो रहा था, लोग क्या कहेंगें और किसी ने मज़ाक में भी बेटे से बोल दिया तो पता नही वो कैसे रिऐक्ट करेगा? सोने का प्रयास करता पर नींद भी नही आती, ध्यान बार बार गोलगप्पे पर.
ऐसे ही शाम हो गयी, बेटा अपने ऑफिस से कब वापस आया पता ही नहीं चला. वो अपने प्रतिदिन की चर्या के अधीन सीधा मेरे कमरे में आया और मुझे गुमसुम देख एकदम मेरे पास आकर बैठ गया. सच में मुझे वो बेइंतिहा प्यार करता है.
पापा, क्या बात है, आज आप उदास से लग रहे हो, क्या बात है? क्या किसी ने कुछ कहा है? बताओ ना पापा?
अब मैं उसे अपनी दुविधा कैसे बताता? पता नहीं मेरी गोलगप्पे खाने की इच्छा पर वो नाराज होता या हंसता या फिर गोलगप्पे इस उम्र में खाने के नुकसान गिनाता. इसलिये मैंने चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा. पर वो मेरा पीछा कहाँ छोड़ने वाला था. पापा आपको मेरी कसम सच बताओ क्या बात है, क्या सोच मन में चल रही है?
अब क्या कहता, बात को हल्के से उड़ाते हुए बोला, अरे बेटा कुछ नही, बस ऐसे ही श्याम चाट वाले के गोलगप्पे याद आ गये थे, कितने स्वादिष्ट बनाता था, चटपटा पानी, बस वो याद आ रहे थे. बरबस ही सच्ची बात मुहँ से निकल ही गयी.
वाह पापा, पहले क्यों नही बताया? मैं आज ही नुक्कड पर ठेले पर चाट बेचने वाले को कल शाम 4 बजे आने को बोल देता हूं. आप जी भर गोलगप्पे खाना और जब भी आगे मन करे उसे बुलवा लेना, मैं उसे कह दूँगा वो आपके बुलाने पर यही आकर आप जो कहेगे खिला कर जायेगा.
सुबह से चली कशमकश इतनी सरलता से समाप्त हो जायेगी, सोचा ही नही था. अब बस कल का इंतजार था.
अगले दिन बड़ी इंतजार के बाद 4 बजे और चाट वाले ने दरवाजे पर आवाज लगाई. मैं एकदम प्रसन्नता से सरोबार हो दरवाजे पर लपक लिया. सामने चाट वाला ही था. वो बोला दादा मसाला हल्का रखूं या तेज. मैंने कहा थोड़ा तेज. वो मसाला बनाने लगा.
अचानक मैं इतनी देर में अपने अतीत में 35 वर्ष पहले पहुंच गया. ऐसे ही वृद्ध अवस्था में मेरे बाबूजी जी ने आलू पूडी खाने की इच्छा प्रकट की थी. मैं भी अपने बाबूजी जी को जान से ज्यादा प्यार करता था, पर मैंने उन्हें कहा अरे बाबूजी क्या इस उम्र में भी जीभ नहीं सम्भल रही? पूडी आपको नुकसान देगी, डॉक्टर वैसे भी तली चीजों को मना करते हैं. मैं आज आपकी पसंद की लीची लाया हूँ, उन्हें खाओ ना.
बाबूजी मायूस से बोले मुन्ना अब कितना जीना है, चल जैसी तेरी मर्जी.
वास्तव में बाबूजी दो माह ही जी पाये, उनका शरीर पूरा हो गया. उनके श्राद्ध पर घर में आलू पूडी जो उनको बेहद पसंद थी, जरूर बनवाते हैं और कोवो को खिलाते हैं.
जीते जी बाबूजी जी इच्छा पूरी न कर पाने का मलाल जरूर था, काश उस दिन हम उन्हें आलू पूडी चखा देते, कितना जी पाये वो? आज मेरा बेटा भी मुझे डाक्टर की सलाह बता मना कर देता तो?
बाबूजी की पसंद को हम कौवों को तो खिला रहे हैं, पर उन्हें ना खिला पाये. मेरी आँखों से झर झर आँसू टपक रहे थे और हाथ में गोलगप्पे लिये खड़ा चाट वाला मुझे देख रहा था टुकुर टुकुर – – – – -!
बालेश्वर गुप्ता
पुणे (महाराष्ट्र)
अप्रकाशित, मौलिक.