अहसास … – सीमा वर्मा

मालती मात्र १७  की थी जब उसका  विवाह सुधीर के साथ सम्पन्न हुआ था ।  उसने जब से सपने देखना शुरू किया  था तभी से सोंचना भी उसका मन भी फूलों जैसा महका था सुधीर के साथ।

यह उम्र ही होती है जब आप रंगीन और रूमानी दुनिया में रहते हैं । 

जिंदगी सतरंगी लगती है जिससे बहुत से सपने और उम्मीदें जुड़ी होती  हैं  ।

मालती भी आंखों में सुनहरे भविष्य के  रंगीन सपने सजाए पति के साथ ससुराल आई है।

तथा जीवन के हर रीति रिवाजों को निभाते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी  ।

यों कि कभी- कभार पति-पत्नी के सहज ही तर्क- वितर्क ,

स्नेह भरे उपालंभ के बीच उसे अपने पति की अति अनुशासन प्रियता खटक  जाती है ।

दिन हफ्तों में बदले ,हफ्ते महीनों में और महीने साल में बदल गए।



चौंतीस साल बीत चुके हैं शादी के मालती और सुधीर के दो प्यारे-प्यारे बच्चे  हुए जिनकी परवरिश दोनों ने बहुत जतन से की है ।

अब वे सब भी अपनी योग्यता अनुसार महानगरों में सेटल हो गए हैं।

मालती के अनुसार वैवाहिक जीवन में भी समय- समय पर प्रेम में संशोधन की  आवश्यकता होती है, जिससे सहजता और तरलता बनी रहे ,

पर क्या सुधीर भी ऐसा सोंचते हैं  ?

शायद नहीं इन सब से अनभिज्ञ उनकी दुनिया किताबों और पठन- पाठन तक सीमित रहती । 

बावजूद इसके मालती ने कभी  शिकायत न की है।

उम्र के पचासवें  दशक में पंहुची मालती अब पोते पोतियों की दादी बन चुकी है ।  जीवन पर्यन्त उसने सुधीर में प्रेमी से  अधिक पिता की परछाईं ही देखी है।

             अब उसकी दिली इच्छा पति के सेवानिवृत्त होने पर शेष जीवन बच्चों के साथ हंसी- खुशी व्यतीत करने की है

परन्तु यह क्या ?  

यहां भी उसकी सारी अकांक्षाओं पर तुषारापात करते हुऐ सुधीर ने अपना इक तरफा निर्णय सुना दिया   ,

” मैं अपने घर को छोड़कर कँही नहीं  जाने वाला  ”   । 

मालती उफ्फ भी नहीं कर पाई ।

बच्चों ने भी हल्के ढंग से विरोध जताया फिर पिता की इच्छा जान शांत हो गये। 

बड़े बेटे के गृहप्रवेश में सुधीर और मालती महानगर गये हुए हैं।

यहाँ उन्हें आए हुए लगभग तीन महीने बीत चुके हैं ,

मालती खूब खुश है।

उसका दिल लग गया है दिन भर बच्चों के साथ इधर-उधर घूमती डोलती फिरती है।



कि एक दिन सुधीर ने घर वापसी की इच्छा जाहिर कर दी  ।

सुन कर मालती का मन सिकुड़ने लगा है।

फिर यह सोंच कर कि हर इच्छा  की पूर्ति  शायद संभव नहीं वह चुप है।

यों इन दिनों उसे भी अपने घर की याद तो सता ही रही थी जिसे वह जाहिर नहीं करती थी ।

उसने भी भारी मन से हामी भर दी ।

नियत दिन, नियत समय वे ट्रेन में बैठ गए । 

मालती के लिए तो रात इतनी लम्बी  हो रही है मानों अनंत काल तक खत्म  ही नहीं  होगी ।

वे सुबह अपने शहर पंहुचे हैं चिरपरिचित गलियां जाने पहचाने लोग ।

आश्चर्य जो उदासी कल से मालती के चेहरे पर फैली थी वह एकदम से गायब हो गई

उसकी जगह एक उल्लसित आभा चमक रही  है  , 

जो घर के नजदीक पंहुच कर और भी उज्जवसित हो रही है

इस जगह से तो उसका सात जन्मों का नाता है वह इसे कैसे छोड़ सकती है ?

पति द्वारा निर्मित उसका अपना घर भी उदास -बेहाल अवस्था में जैसे कपनी गृहस्वामिनी की ही प्रतीक्षा कर रहा हो। 

पल भर में सारे गिले शिकवे दूर कर  मालती अपने घरौंदे की साज संवार में व्यस्त हो गई ।

सुधीर भी एक विचित्र उन्मादक , स्वाभाविक स्फूर्ति से भर उठे हैं  ।

सारे दिन की साफ-सफाई के पश्चात फुर्सत मिलते ही संध्या काल में जब उसने  सुधीर के कंधे पर सिर रखा तो  अपने आप को एक विचित्र सुखद अहसास से घिरा हुआ पाया ।

सुधीर बुदबुदा उठे  , 

”   जिन्दगी की दूसरी पारी  है मालती    बगैर बच्चों  के आए रीतेपन को हमें  नयी उर्जा  के  साथ उमंग और खुशियों  की प्राण वायु  से भरना ही  होगा  । 

यह कहते  हुए उसे  दोनों  बाजुओं   में   भर  लिया  ” कितनी सुखद  अनुभूति  है  सुधीर  के इस  रूप  के  दर्शन  में   ”  ।

और सहसा मालती  ये गुनगुना उठी ,

” मेरे पिया का घर है ये मैं रानी  हूँ  इसकी  ” ।

बागीचे में लगे पेड़ों पर ओस झर रही है शनैः – शनैः …

सीमा वर्मा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!