आज 14 फरवरी ….. सुबह सुबह की आपाधापी के बीच जैसे ही अरुणिमा करी पत्ता (मीठा नीम) लेने बगीचे में पहुंची…..
ओह , तीन-चार दिनों से क्यारी में पानी ही नहीं डाला है…. पूरे गुलाब के पौधे सूखने की कगार पर है…. पूरी जिम्मेदारी घर की , रसोई की ,पेड़ पौधों की ….मेरी ही तो है…. देव तो बस अपनी नौकरी कर लें यही बहुत है …!
देव के पूजा करते तक तो पोहा बन ही जाएगा…. पहले पानी ही डाल लेती हूं….. गैस बंद करके आ जाती हूं…. जैसे ही अरुणिमा ने पाइप सीधा करना चाहा , ठंड की वजह और अकड़न की वजह से पाइप टूट गया ….फिर अरुणिमा का दिमाग खराब हुआ … एक दो पौधों में मग्गे की सहायता से पानी डाला और वापस आ गई रसोई में नाश्ता बनाने….!
मन ही मन सोच रही थी…. कैसे पति है देव ….खडूस , एकदम से खड़ूस…. आज वैलेंटाइन डे है ….प्यार से एक गुलाब ही दे दिया होता ….अरे गुलाब तो छोड़ो कभी उन गुलाब के पौधों में पानी दिया होता …..यदि मैं ना रहूं तो इस घर में एक भी फूल ना हो… पूजा के लिए भी लोग फूल को तरसेंगे….।
अब बहुत हो गया आज तो मैं देव को एहसास दिला कर ही रहूंगी वैलेंटाइन डे पर गुलाब नहीं दे सकते तो कम से कम कभी बेचारे गुलाब के पौधों पर पानी ही डाल दिया करें ….।
जैसे ही देव नहा धोकर पूजा के लिए फूल तोड़ने बगान में गए …बस फिर क्या था अरुणिमा ने गैस का फ्लेम कम किया और चल पड़ी बागान की ओर….. देव को ताना मारने ….
जैसे ही कुछ बोलने को मुंह खोलना चाहा …..नजर पड़ी देव पर …..
जो बड़े प्यार से उस गुलाब को … जिसका आकार बड़ा होने के कारण ….पूरी डाली झुक गई थी … उसे लकड़ी का सहारा देकर बड़े करीने से व्यवस्थित कर रहे थे ….और धीरे से देव को उस फूल से बात करते हुए भी अरुणिमा ने सुना …..देव कह रहे थे….
हिम्मत नहीं हो रही है आपको तोड़ उस हाथ में पकड़ा दूं …जिन हाथों के अथक परिश्रम से आपका जन्म व अस्तित्व कायम हो पाया है …. भगवान उन हाथों को इतनी ताकत दें कि इन गुलाबों से बगिया सुशोभित हो और अपनी भीनी भीनी खुशबू बिखेरती रहे रहें ….इन फूलों की सुंदरता और भीनी भीनी खुशबुओं के बीच अरुणिमा के चेहरे पर तेज और गुलाब की भांति लालिमा भी कायम रहे …….फिर देव ने कुछ फूल तोड़कर भगवान की पूजा अर्चना की ….!
उसके बाद…” पुलवामा अटैक में शहीद हुए सभी वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की “…! ये देखकर देव के प्रति अरुणिमा का सम्मान और बढ़ गया … वाह देव सच में आप इतना सोचते हैं ! अनकहे ही अरुणिमा अपने लिए प्यार के एहसास जानकर शर्म से लज्जित हो चेहरा हाथ से छुपाते हुए रसोई की ओर चल पड़ी…!
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)
संध्या त्रिपाठी