अहसान नहीं फ़र्ज़ – प्रेम बजाज 

मि० गुप्ता  एक बैंक कर्मचारी  10वीं क्लास में बेटा आकाश और 6वीं क्लास में बेटी प्रेज़ी पढ़ती है‌। मिसेज गुप्ता की तबीयत कुछ ढीली – डाली सी रहती है,  बस ले-दे कर घर का गुजारा ठीक-ठाक चल रहा है। 

मिसेज मल्होत्रा, ” मिसेज गुप्ता आप एक बाई क्यों नहीं रख लेती?  आपकी तबीयत भी ढीली रहती है, काम में मदद हो जाया करेगी “!

” भाभी जी आप तो जानती हैं, इन बाईयो के मुंह कितने खुल गए है, एक तो एडवांस में इतने – इतने पैसे मांगती हैं, फिर हर दूसरे-तीसरे दिन छुट्टी करके बैठ जाती हैं, क्या किया जाए, एक मिडल क्लास इन्सान अपनी तनख्वाह में क्या- क्या खर्चे पूरे करें, बच्चों की पढ़ाई, ऊपर से मंहगाई भी इतनी है, कौन इन बाइयों के मुंह भरता रहे” ।

” अरे नहीं मिसेज गुप्ता सभी एक जैसी नहीं, हमारी बाई ” माया”  को ही ले लो, बहुत अच्छी है, और ना ही ज्यादा लालच करती है, कहो तो मैं आपकी बात करा दूं, उसे लगा लो, उसे भी काम की जरूरत है” 

” ठीक है, कल उसे भेज दिजिए, मैं बात कर लूंगी” 

मिसेज गुप्ता माया से बात करके उसे काम पर रख लेती है, माया जब काम पर आती है तो उसकी बेटी जो 10-11 साल की है, वो भी साथ में काम पर आती है, दोनों मां-बेटी मिलकर जल्दी से काम करके चली गई, इस तरह से ऐसा रोज़ होने लगा, माया की बेटी सोनिया रोज़ मां के साथ आती और चुपचाप मां के साथ काम में लगी रहती, लेकिन मिसेज गुप्ता ने देखा उसकी आंखों में एक अजीब जी तड़प और प्यास होती, ना जाने वो आंखे क्या कहती ? 

एक दिन मिसेज गुप्ता ने माया से पूछा, ” माया, सोनिया स्कूल नहीं जाती क्या?




” नहीं मैडम जी स्कूल कहां से जाएगी, पिछले साल जब सोनिया के बाबा का देहांत हुआ था, तब से पढ़ाई छुड़ा दी है इसकी, अब मुन्ना को तो पढ़ाना जरूरी है ना, ये क्या करेगी पढ़ के, ये तो पढ़ना चाहती है , वकील बनना चाहती है ये, इतने पैसे कहां से लाए कि दोनों बच्चों को पढाए।

“कहां तक पढ़ाई की है सोनिया ने”?

” मैडम जी पांच तक पढ़ी है, और क्लास में अव्वल आई थी”

ये सब बात गुप्ता जी की बेटी प्रेज़ी सुन रही थी।

” माया आंटी, मम्मा तो कहती हैं बेटा-बेटी बराबर है, फिर आप ऐसे क्यों कह रहे हो कि सोनिया को नहीं पढ़ाना।  और मम्मा अगर आंटी के पास पैसे कम है तो क्या हम आंटी की हैल्प नहीं कर सकते ?

 मम्मा आप मुझे डेली चाकलेट देते हो ना, कल से मै चाकलेट नहीं खाऊंगी, आप रोज़ वो पैसे सोनिया के स्कूल की फीस दे दे और मेरी बुक्स भी सोनिया के काम आ सकती है, सोनिया अब सिक्थ में आएंगी और मैं सेवंथ में तो बन गई ना बात” 

सोनिया ये सुनकर खुशी से उछल पड़ती है, ” प्रेज़ी दीदी, क्या सच्ची में मैं पढ़ सकूंगी ? ” 

मिसेज गुप्ता, ” हां बेटा प्रेजी ने बिल्कुल सही कहा, नए साल में स्कूल में तुम्हारा एडमिशन कराया जाएगा, प्रेजी की किताबें तुम्हारे काम आ जाएंगी, और प्रेजी ने सच कहा, चाकलेट रोज़ खाना कोई जरूरी नहीं, पढ़ाई ज़रूरी है, लेकिन प्रेजी बेटा, जब तुम छोटी सी होकर इतनी कुर्बानी कर सकती हो तो हमें भी तुम से कुछ सीखना चाहिए, तुम्हें एक दिन छोड़ कर चाकलेट दिया जाएगा, बाकी के पैसे आप की मम्मा अपने खर्चे से निकालेगी, और हम सोनिया को पढ़ाएंगे, प्रेजी बेटा आज तुम्हारी मासुमियत ने हमें बहुत बड़ी सीख दे दी”

इस तरह सोनिया की पढ़ाई शुरू हो जाती है, और उसका वकील बनने का सपना भी पूरा हो जाता है, लेकिन वो प्रेजी का एहसान कभी नहीं भूलती।

माया मिसेज़ गुप्ता को कहती है “मैडम आपका और प्रेज़ी बिटिया का ये एहसान हम कभी नहीं भूलेंगे आपकी वजह से हमारी बेटी वकील बन पाई,  तब मिसेज़ गुप्ता कहती है, ” एहसान नहीं ये तो हमारा फ़र्ज़ था तुम्हारी बेटी होनहार थी हमने तो बस ऊँगली थामी है”!

*दोस्तों कभी- कभी बच्चे हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं, और जो संस्कार हम बच्चों को देते हैं, वही सामने प्रतिफल बन कर आते हैं, प्रेजी ने माता-पिता को हमेशा दूसरों की मदद करते देखा, फिर वो कैसे ना करती सोनिया की मदद* !

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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