आज मीरा अपनी बेटी दिव्या से बहुत चिढ़ गई थी। उसी चिढ़ में खिसिया कर दो झापड़ भी रसीद कर कर दिए…अब क्या था…वो गला फाड़ फाड़ कर रोने लगी। पहले से ही परेशान मीरा और भी चिढ़ गई… उसे और मारने दौड़ी, तब तक विनय ने आकर उसके बढ़े हुए हाथ पकड लिए ,”ये क्या कर रही हो…वो बीमार है…जानबूझ कर तो तुम्हें परेशान नही ही कर रही है। अब क्या उसकी जान ही ले लोगी?”
वो उत्तेजित तो थी ही। उसी रौ में बोल भी पड़ी,”हाँ, मेरा बस चले तो जान ही ले लूँ…फिर चाहे जेल हो जाए। इस मुसीबत से छुटकारा तो मिलेगा… ना जाने कौन से जन्म का बदला ले रही है।”
ऐसा नही है कि वो अपनी पत्नी का दुख नही समझते हों…वो बेचारी दिव्या के जन्म के बाद से ही कितनी परेशान है। वो भी तो एक माँ है…अपनी बेटी की हालत से दुखी है… साथ ही घरवालों के ताने और घरेलू ड्यूटियां उसकी कमर तोड़े दे रही हैं। कल ही तो वो नहा रही थी…दिव्या को हल्का सा फिट पड़ा और वो काँपती हुई बिस्तर से गिर पड़ी…पर किसी ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया। पास में ही मम्मी और बहन सिमी बैठे हुए तमाशा देख रही थीं। वो जैसे तैसे आई…सुना और दिया गया,”जिसने ऐसी बच्ची पैदा की है…वो ही भुगते। हमने तो ऐसे बच्चे नहीं जने। सब इन लोगों के कर्मों का फल है…जैसी करनी वैसी भरनी।”
वो पूरे दिन दिव्या को चिपटा कर रोती रही थी। फिर ताना मिला था,”अब महारानी जी अपनी खूबसूरत राजकुमारी जी से ही चिपकी रहेंगीं। बाप से कह कर दो नौकर लगवा लो…घर के काम कौन करेगा।”
वो इसे अपनी नियति मान चुकी थी। इस तरह के दोहरे प्रहार को झेलते झेलते थक गई थी…उसी का असर था… बेचारी मासूम दिव्या इतना पिट गई थी। पति का स्नेह पाकर वो फट पड़ी,
“मैं क्या करूँ….आप ही बताइए।”
वो उसके सिर को सहलाते हुए बोले,”ऑफिस में कल एक डाक्टर के बारे में सुन कर आया हूँ…आज उनको दिखाने ले चलेंगे… देखते हैं…कुछ नहीं होगा तो मुंबई में ऐसे बच्चों का ट्रेनिंग सेंटर है। वहाँ इसे भेज देंगे…खर्चा थोड़ा अधिक होगा ..पर बिटिया के लिए कुछ तो सोचना ही होगा। ऐसे बच्चे खास ट्रेनिंग पाकर किसी ना किसी विधा में पारंगत हो ही जाते हैं।”
नीरजा कृष्णा
पटनासिटी