आज बहुत सोच में पड़ी थी मीता
और अजीब सी कशमकश ओर दुविधा में भी फ़स गयी थी
अभी चार दिन पहले की बात थी उसकी दोनो बड़ी वाली ननदें आयी हुई थी। सब लोग आराम से अंदर बैठ कर बातें कर रहे थे।
मीता रसोई घर मे उनके लिए चाय नाश्ते की तैयारी में लगी थी।
और साथ साथ रात के खाने की भी तैयारी शुरू कर दी थी
जैसे ही मीता चाय नाश्ते की ट्रे लेकर कमरे में जाने लगी उसके कानों में सासु मां की आवाज पड़ी।
आजकल तो जैसे रिवाज ही खत्म हो गया है घर में बड़ों को पूछने का। अब तो बहु बेटे किसी को कुछ बताना या पूछना जरूरी ही नही समझते। मीता समझ गयी कि ये उसी के लिए कहा गया था।
सात साल की शादी में वो हमेशां कहीं भी जाना होता सासु माँ को बता कर ही जाती। लेकिन अब राजीव को लगता था कि हम बच्चे तो है नही तो हर छोटी बड़ी बात बताने की कोई जरूरत नही।
पति इन बातों को कहां समझते हैं जब छोटी सी बात के लिए बहु को सुनना पड़ता है। तभी तो उस दिन अचानक से उसका रात को फोन आया कि चलो मैं मूवी देखने के लिए रात के शो की टिकटें लाया हूँ। उसने कहा भी के इस समय मम्मी और पापा जी आराम कर रहे है उनको कैसे बताऊं।
लेकिन वो कहाँ सुनता है ,कहता तुम बाहर से लॉक करो और जल्दी से बाहर आ जाओ।
मीता को ऐसे आना अच्छा नही लग रहा था इसलिए उसने रास्ते मे ही घर पर फोन करके बता दिया था।
मीता समझ गयी थी कि मम्मी जी उस दिन की बात ही नंदों को बता रही होंगी।
और फिर कल रात को अचानक से फिर राजीव ने फोन करके बोला कि जल्दी से रेडी हो जाओ हमे दोस्तों के साथ डिनर पर जाना है।
मीता जल्दी से मम्मी जी के पास गई और बोली ,”मम्मी जी इनका फोन आया था, कि हमे दोस्तों के साथ खाना खाने बाहर जाना है
आगे से मम्मी जी का ये जवाब मिला, मुझे क्या, जाना है तो जाओ.. आगे कौन सा मुझे बता कर या पूछ कर जाते हो।
वो चुपचाप से बाहर निकल गयी। उसका उदास चेहरा देख कर राजीव समझ गया और बोला, देखा मैं तो पहले ही मना कर रहा था।तुम्हे पड़ी होती है अपनी सासू मां की मनुहार करने की…
और मीता अजीब दुविधा में फंसी थी कि आखिर वो कहाँ पर गलत थी।
मौलिक एवं स्वरचित
रीटा मक्कड़