रामू ईट भट्ठे पर काम करता था। रोज ट्रक भरता ओर रोज ही पैसा मिल जाता। शाम को घर जाते समय जरूरी सामान लेकर जाता, तभी रात का खाना बनता ओर बचे हुए पैसे अपनी पत्नी कमला को दे देता। कमला लोगो के घरों में काम करती और घर खर्च में हाथ बटाती।
बेटी लीला सरकारी स्कूल मे पढ़ती थी। खीच तान कर घर चलता था। रामू चाहता था कि एक लड़का भी होना चाहिए जो भुडापे में हाथ बताये, पर कमला नहीं चाहती थी, बोलती, कि एक ही ढंग से पल जाये, वही बहुत है। फिर एक दिन रामू ने कमला को कम पैसे दिए, पर कमला कुछ नहीं बोली।
फिर अक्सर पैसे कम देने लगा। फिर एक दिन तो पैसे दिए ही नहीं, बोला कम गाड़ियों आई थी भरने के लिए। धीरे धीरे ये रोज का काम हो गया। एक दिन तो हद हो गई जब रामू दारू पीकर घर आया और बहुत हंगामा किया। कमला परेशान थी ओर रात भर सो नहीं पाई। सवेरे कमला ने रामू से पूछा
, क्या बात है, तुम दारू कबसे पीने लगे? कोई परेशानी है क्या? दोस्त ने जबरदस्ती पिला दी, राम बोला, पर नजरे नहीं मिला रहा था। कमला समझ गई कुछ तो गडबड़ है। फिर अक्सर दारू पीकर आने लगा और पैसे देने भी बंद कर दिये। एक दिन पीकर सड़क पर गिर गया और साथी घर छोड़ गए
ओर अगले दिन काम पर नहीं गया और सोता रहा। कमला अपने काम से फ्री होकर सीधा भट्टे पर गई ओर लोगों से रामू के बारे मे पूछा। एक कुली ने बताया कि बेठा होगा उस विधवा कजरी के साथ उसकी टपरी में, नीचे वाली बस्ती में जाकर देख ले। कमला को सारा माजरा समझ आ गया और वो घर लौट आई।
घर पहुंचते ही रामू ने पूछा, देर कैसे हो गई? कमला चिल्लाई, तुम्हारी कजरी से मिल कर आ रही हूं, सारे पैसे उसी को देकर आते हो, उसकी टपरी में बेठ कर पीते हो और न जाने क्या क्या करते हो। जाओ, उसी के पास मरो, यहाँ क्यो पडे हो? रामू भी बहुत चिललाया,
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हाथापाई की ओर घर छोड़कर चला गया। कमला रोती बिलखती रही, पर रामू नहीं लौटा। फिर पता चला कि वो कजरी की टपरी में उसके साथ ही रहता है। धीरे धीरे कमला, राजू को भुलाकर अपनी रोज मर्रा की जिंदगी मैं व्यस्त हो गई। देखते देखते 2 साल बीत गए,
फिर एक दिन खबर मिली कि कजरी रामू को छोड़कर किसी ओर के साथ भाग गई। शराब पी पी कर रामू बहुत कमजोर हो गया था, काम भी नही कर पा रहा था ओर खाने के भी लाले पड़ गए थे। एक दिन सुबह सुबह कमला के घर का दरवाजा खटका,
कमला सोच में पड़ गई कि इतनी सवेरे कौन हो सकता हैं। उसने दरवाजा खोला तो सामने रामू खड़ा था, बिखरे बाल, कपड़े फ़टे हुए, बीमार सा चेहरा। कमला से बोला मैं वापस आ गया हूं, अब मैं यहीं रहूंगा।
कमला शांत मन से बोली, कल फिर कोई ओर कजरी मिल जायेगी, तो फिर चले जाओगे? बड़ी मुश्किल से तुम्हारे बिना जीना सीखा है, अब तुम्हारी जरूरत नहीं है। रामू, हाथ जोड़कर बोला, मुझे माफ़ कर दो। कमला बोली, अगर मैं किसी औऱ मर्द के साथ जाकर सोती, ओर आकर माफी मांगती, तो क्या तुम मुझे माफ़ करते? बोलो? राजू बोला, नही करता। तो फिर मैं कैसे माफ कर दू।
तुमने वो गुनाह किया है जिसका कोई प्रयाश्चित नहीं हैं, इतना कहकर कमला ने दरवाजा बंद कर दिया।
आपकी रॉय में कमला ने जो किया, वो सही था या गलत?
गागर में सागर प्रतियोगिता
कुछ गुनाहों का प्रयाश्चित नहीं होता
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
12 Feb.25