दूसरों का दर्द भी समझना चाहिए : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जगमोहन भारी मन से घर आ गया। उसे लग रहा था कि ईमानदारी से काम करने का कोई मतलब ही नहीं रहा। कितनी मुश्किल से मैंने यह प्रेजेंटेशन तैयार किया था, मैं हर समय इस कम्पनी की तरक्की का प्रयास करता हूँ, कभी यह भी नहीं सोचता कि ऑफिस टाइम खत्म हो गया है, अपना काम पूरा करने के बाद ही घर आता हूँ।

कई बार जरूरत पढ़ने पर रात को कंपनी में जाकर मैं काम करता हूँ। कभी ज्यादा पैसो की मांग भी नहीं करता, कंपनी के काम को अपना काम समझता हूँ। आज मिटिंग में पहुँचने में जरा सी देर क्या हो गई कम्पनी के मालिक और मैनेजर सा. ने बाहर से आए मेहमानों के सामने मुझे कितना जलील किया। मैंने जानबूझकर तो देर नहीं की थी, कारण सुनना ही पसंद नहीं किया उन्होंने।

बस कह दिया, अगली बार अगर आने में दैर हुई तो तुम्हें क्षमा नहीं किया जाएगा, अभी तुम जा सकते हो,अपना काम करो।अभी भी ….कहाँ क्षमा किया था उन्होंने मुझे, मेहमानों के सामने जलील किया, मेरी इज्जत दो कोड़ी की कर दी। क्या इन अफसरों को यह दिखाई नहीं  देता, कि मैं कई बार जब काम ज्यादा होता है, ऑफिस के समय से पहले आ जाता हूँ, और व्यवस्थित काम करता हूँ। तब तो ये कभी मेरी पीठ नहीं थपथपाते, कि तुमने अच्छा काम किया।

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जगमोहन अपने आप से बात कर रहा था, मैं देर से पहुॅंचा मेरी गलती थी, पर क्या उनकी गलती नहीं है ? उन्होंने एक बार भी मुझसे नहीं पूछा, कि तुम देर से क्यों आए? कारण जान लेते तो शायद इस तरह मुझे जलील नहीं करते। वह फिर एक लम्बी सॉंस लेकर मन ही मन बुदबुदाया-  ‘वे मालिक हैं और हम नौकर।’ ‘कौन मालिक है और कौन नौकर? यह क्या बड़बड़ा रहा है बेटा?

मैं देख रही हूँ जब से आया है चुपचाप बैठा है। क्या बात है बेटा? किसी ने कुछ कहा क्या?’ सावित्री जी ने आकर उसका ध्यान भंग किया। ‘कुछ  नहीं मॉं ! आज जाते समय ट्रैफिक जाम था। एक मोटर साइकिल और कार की भिड़न्त में,एक दम्पत्ति उनका छोटा बच्चा और कार चालक जख्मी हो गए। एक वृद्ध व्यक्ति की हालत बहुत खराब थी। वहाँ रूककर हम लोगों ने एम्बुलेंस बुलाई, पुलिस की गाड़ी भी आ गई थी।

घायलों को अस्पताल ले जाया गया। रास्ता खुलने में कुछ समय लग गया, इस कारण  ऑफिस पहुँचने में देर हो गई। मालिक नाराज हो रहै थे। आप चिन्ता मत करो। मेरे लिए एक कप चाय बना दो मॉं।’ माँ ने जगमोहन के सिर पर हाथ रखा और चाय बनाने चली गई।
जग मोहन के पिता एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे, उसकी तीन बहिने थी। दो की शादी हो गई थी। और एक बहिन स्कूल में पढ़ रही थी। घर खर्च चलाने के लिए माँ भी सिलाई और बुनाई का काम करती थी। जग मोहन पढ़ने में बहुत होशियार था। वह अपने माँ-पापा की स्थिति को समझता था। सादगी से जीता और व्यर्थ में पैसा खर्च नहीं करता था।

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उसका लक्ष्य था,पढ़ लिखकर एक अच्छी नौकरी करना और अपने परिवार को सुखी  रखना। बारहवीं कक्षा में प्राविण्य सूचि में उसका तीसरा स्थान था। फिर उसे स्कालरशिप मिलने लगी। वह कुछ ट्यूशन भी करता था। इस तरह उसने बी.ई. कर लिया था। पिछले वर्ष एक कंपनी में  की पोस्ट पर उसकी  नौकरी लग गई थी।

वह बहुत खुश था और कम्पनी में मेहनत से काम करता था। आज उसका मन नहीं लग रहा था। उसके मन में तरह -तरह के विचार आ रहैं थे। उसे याद आया कि परसों उसने भी तो रामू काका को डाट दिया था, वह अपने दोनों पैर बैंच पर लम्बे करके बैठा था, कम्पनी में घुसते ही उसने रामू काका को इस तरह बैठे देखा तो उन पर नाराज हो गया था-‘ यह क्या तरीका है बैठने का? कंपनी में तुम्हें अनुशासन में रहना चाहिए, यह तुम्हारा घर नहीं है।’

आसपास खड़े सारे लोग हंसने लगे थे, और रामू काका की ऑंखें डबडबा गई थी। उसकी तरफ ध्यान दिए बिना वह ऑफिस चला गया था। घटना को याद कर उसका दिल जोर से धड़कनें लगा। परसों उसने रामू काका को अपनी बातों से जलील किया था, मैंने भी तो यही गलती की थी। मैंने भी तो रामू काका से इस तरह बैठने का कारण नहीं पूछा। शायद उनकी कोई मजबूरी हो। ईश्वर ने मुझे अपनी गलती का ही दण्ड दिया है।’ उसकी ऑंखों में ऑंसू आ गए।

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माँ चाय लेकर आ गई थी। उसने कहा माँ मुझसे गलती हो गई।उसने माँ को पूरी बात बताई तो मॉं ने कहा- ‘बेटा तुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है, तो तू उसे सुधार ले। गलतियाँ सभी से होती है, अपनी गलती स्वीकार करके और उसके लिए माफी मांग लेने से मन हल्का हो जाता है। तू रामू काका से जाकर उनसे बात कर।’   ‘ठीक है माँ ! रामू काका हमारी कम्पनी के कैम्पस में ही रहते हैं, मै अभी उनसे जाकर मिलता हूँ।

शाम की सात बज रही थी, जगमोहन रामू काका के घर पर गया। वो एक खटिया पर लम्बा पैर करके बैठे थे, उनके पैर पर प्लास्टर चढ़ा था। जगमोहन को देखकर उसे आश्चर्य हुआ, उसने हाथ जोड़े और उठने का प्रयास करने लगा तो जगमोहन ने उन्हें खटिया पर बिठा दिया। रामू काका की पत्नी ने कहा ‘परसों ये कम्पनी जाते समय रास्ते में गिर गए थे।

वहाँ इन्होंने किसी से नहीं कहा। शाम को घर आए तो पूरा पैर सूज रहा था, डॉक्टर को बताया तो उन्होंने यह पट्टा चड़ा दिया और कहा डेड़ महिने तक आराम करना है, समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें? जगमोहन ने कहा ‘काका मुझे मालूम नहीं था कि आपके पैर पर लगी है, मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ कि मैंने अनजाने में आपसे अपशब्द कहै, मुझे माफ करदो काका! 

जगमोहन ने कुछ रूपये रामू काका को देते हुए कहा आप इसे रखे मैं कल फिर आऊंगा आपकी दवाइयाँ वगैरह लाना हो तो मुझसे कहना और छुट्टी की चिंता मत करना मैं उसकी व्यवस्था करवा दूंगा। रामू काका जगमोहन के इस रूप को देखकर चकित थे, उनकी ऑंखों में ऑंसू थे मगर ये खुशी के थे। जगमोहन का मन अब शांत हो गया था। दूसरे दिन कम्पनी के मालिक ने जगमोहन को बुलाकर उसका प्रेजेंटेशन देखा और उसकी बहुत प्रशंसा की।
जीवन में ऐसे उतार चढ़ाव आते रहते हैं, मगर हमें हमेशा संयम और विवेक से कार्य करना चाहिए ।  हमारी‌ कोशिश यही रहनी चाहिए कि हम दूसरों की परेशानी को समझे और उस हिसाब से कार्य करें।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#ज़लील

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