“-अरी बहू! अगर तुम दोनों मां बेटी की गुटर गूं खत्म हो गई हो तो अब जाकर उसे स्कूल के लिए बस स्टॉप पर छोड़कर आओ…वापस आकर आगे भी कुछ काम करने हैं या नहीं। तुम्हारा आधा समय तो इसे पहुंचाने और लाने में ही बीत जाता है…. और फिर हड़बड़ी में जैसा तैसा काम करके रख देती हो।”
उर्मिला जी ने जब निमिषा को नव्या को तैयार करते हुए उससे बातें करते हुए देखा तो वहीं अपने कमरे से ही विष बुझा बाण छोड़ दिया।
नव्या को स्कूल के लिए तैयार करते हुए निमिषा के हाथ तेजी से चलने लगे और उसने वहीं से कहा,”- बस आई माँजी! हो गया.. इसे तैयार कर चुकी हूं.. बस इसे जरा कुछ चीजें समझा रही थी।”
“-हां हां समझा ले समझा ले… सारी रामायण आज ही समझा ले। पंडिताइन बनाकर ही छोड़ बेटी को। एक तो भगवान से एक पोता मांगा था और मिल गई यह पोती। उस पर से इनके चोंचले ही खत्म नहीं होते।”
पोता नहीं होने का दर्द गाहे बगाहे उर्मिला जी की जिह्वा से फिसल ही जाता था। ऐसा नहीं था कि वह पोती नव्या के साथ कोई दुर्व्यवहार करती थी लेकिन उन्होंने कभी आज तक उसे अच्छे से गोद में लेकर प्यार नहीं किया था। उसके लिए उनका व्यवहार हमेशा रुखा ही रहता था। पोता न मिल पाने का दर्द उन्हें अंदर ही अंदर सदा सालता ही रहता था।
“- माँ, आप भी ना….सुबह-सुबह आप क्या बातें लेकर बैठ गईं। नव्या और निमिषा सुनेंगी तो उन्हें कितना दुख होगा। ….और फिर आजकल बेटे और बेटी में अंतर ही क्या रह गया है.. देखिएगा आपकी यही पोती आपका नाम रोशन कर देगी एक दिन। गर्व से आपका माथा ऊंचा हो जाएगा।”… अर्पित ने वाश बेसिन के पास से शेव करते हुए ही उन्हें समझाते हुए कहा।
उर्मिला जी तत्काल चुप तो हो गई लेकिन अप्रसन्नता उनके चेहरे से साफ झलक रही थी। अर्पित और निमिषा का नव्या के साथ इतना लाड़ लड़ाना उन्हें बिल्कुल भी नहीं भाता था।
मनीषा नव्या का हाथ पकड़े हुए उसे बस स्टॉप छोड़ने के लिए निकल गई। वापस आकर उसने जल्दी-जल्दी नाश्ता बनाया। अर्पित को नाश्ता करवाया और फिर उसे टिफिन पैक करके देकर विदा किया। और फिर घर के अन्य कार्यों में व्यस्त हो गई। उसकी हर रोज की लगभग यही दिनचर्या रहती थी। फिर दिन में सारे काम खत्म करने के बाद बस स्टॉप से नव्या को लेकर आना, फिर उसे खाना पीना खिलाना और फिर आगे के काम करना।
उस दिन नन्ही नव्या बस स्टॉप पर उतरी तो आज मम्मी दिखाई नहीं दी। बाकी सभी बच्चे अपनी-अपनी मम्मियों या पापा के साथ जाने लगे। उसने इधर-उधर देखा जब कहीं निमिषा दिखाई नहीं दी तो वह थोड़ी रुआंसी सी होकर वहीं बस स्टॉप पर बैठ गई और एकटक रास्ते की तरफ देखते हुए निमिषा की प्रतीक्षा करने लगी। उसे बैठे कुछ ही देर हुए थे कि उसके सामने एक बाइक आकर रुकी और एक व्यक्ति उतर कर उसके आया। उसने बड़े प्यार से नव्या का सिर सहलाते हुए उससे कहा,
“-बेटा! मुझे आपकी मम्मी ने भेजा है आपको लाने के लिए। आप चलो मेरे साथ… आज मैं आपके घर पहुंचा दूंगा।”
उस अपरिचित व्यक्ति को देखकर नव्या के चेहरे पर उलझन के भाव तैर आए। उसने झिझकते हुए कहा,
“-लेकिन अंकल.. मैं तो आपको पहचानती नहीं हूं और मम्मी ने तो मुझे नहीं बताया था कि वह आपको भेजेगी आज।”
तो उस व्यक्ति ने कहा, “अरे बेटा! मैं तो आपकी मम्मी का बचपन का दोस्त हूं! वह हमेशा बातें करती रहती है मुझे फोन पर… आज उसकी तबीयत खराब हो गई तो उसने मुझे कहा कि मैं आपको ले आऊं।”
नव्या ने फिर कहा,
“- लेकिन अंकल अगर आप मम्मी के दोस्त हैं तो मम्मी ने तो मुझे कभी आपके बारे में बताया नहीं!”
उस व्यक्ति ने कहा, “-अरे बेटा भूल गई होगी! वह भी बेचारी तो अपने कामों में लगी रहती है, उस समय कहां मिल पाता है। यह बात बतानी उसे ध्यान नहीं रही होगी इसलिए नहीं बता पाई होगी। आप यह सब बातें छोड़ो… चलो जल्दी से घर चलो… एक तो आपकी मम्मी की तबीयत वैसे ही ठीक नहीं है और उस पर से वह आपका इंतजार भी कर रही है। बिना मतलब के देर हो जाएगी, और फिर तो वो हम दोनों को गुस्सा करेगी।… चलो..जल्दी से मेरा हाथ पकड़ो, मैं आपको बाइक पर बैठाता हूं.. फिर अब घर चलते हैं।”
नव्या ने उसका हाथ पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया। उसने कहा, “-लेकिन अंकल… अगर मम्मी ने आपको भेजा है तो आपको पासवर्ड तो बताया होगा ना… आप पहले मुझे पासवर्ड बताइए… फिर मैं आपके साथ चलूंगी”
उस व्यक्ति ने चौंकते हुए कहा, “-पासवर्ड!! ….कौन सा पासवर्ड??” अब नव्या ने दृढ़ता से कहा,
“-अंकल, मुझे मेरी मम्मी ने कहा था कि अगर वह किसी दिन मुझे नहीं लेने आ पाई तो वह अगर किसी और को भेजेगी तो वह पासवर्ड बता कर भेजेगी, जो मुझे और मेरी मम्मी को मालूम है। अगर आप वह पासवर्ड मुझे बताएंगे तभी मैं आपके साथ चलूंगी।”
उस व्यक्ति ने अब थोड़ा चिढ़ते हुए कहा”-अरे बेटा उसकी तबीयत खराब थी तो उसे यह बातें याद नहीं रह पाई होंगी। अब जल्दी से चलो वरना मम्मी की तबीयत और खराब हो जाएगी।”
“-नहीं अंकल, मैं आपके साथ तभी चलूंगी जब आप मुझे पासवर्ड बताएंगे।”… नव्या ने वहीं बैठते हुए कहा।
उसकी इस बात पर अचानक उस व्यक्ति के तेवर ही बदल गए।
“- ज्यादा बकबक मत करो.. समझी!! जैसा कहता हूं वैसा करो! जल्दी चलो मेरे साथ!”
पहले तो नव्या डर गई लेकिन फिर उसने चिल्लाना शुरू किया, “-हेल्प! हेल्प!”
उसे ऐसे चिल्लाते देखकर वह व्यक्ति थोड़ा हड़बड़ा गया।
तभी नव्या को दूर से निमिषा आती दिखाई दी! वह जोर से चिल्लाई,”- मम्मी हेल्प!!”
इस पर उस व्यक्ति ने मुड़कर निमिषा को देखा और तुरंत अपनी बाइक स्टार्ट करके भाग गया। निमिषा दौड़कर नव्या के पास पहुंची और उसे अपने सीने से भींच लिया…” मेरी बहादुर और होशियार बेटी! मेरी परी रानी!! मेरी गुड़िया!!!” नव्या को वह बेतहाशा चूमने लगी।
नव्या ने उसके गले से लिपटे लिपटे ही पूछा”-मम्मा, आज आपको देर क्यों हो गई??”
निमिषा ने कहा,”- बेटा मैं तो आ ही रही थी पर तुम्हारी दादी मां अचानक फिसल गई तो उनके पैर में हल्की सी चोट आ गई। उनको दवाई लगाने लगी, इसीमें ही देर हो गई। चलो अब घर चलें। अब घर में जाकर बातें करेंगे”
निमिषा नव्या को लेकर घर पहुंची, तब तक अर्पित भी घर आ चुका था क्योंकि निमिषा ने उसे पहले ही फोन करके उर्मिला जी को चोट लगने की बात बता चुकी थी। उन दोनों को थोड़ा बदहवास सा देखकर अर्पित ने पूछा
“-क्या हुआ निमिषा? तुम लोग कुछ घबराई हुई सी लग रही हो?”
उर्मिला जी भी अचकचा कर उन दोनों की तरफ देखने लगी।
फिर निमिषा ने उसे आद्योपरांत सारी बातें बताईं। फिर उसने अर्पित को बताया कि आजकल के माहौल को देखते हुए उसने सावधानी बरतते हुए पहले ही नव्या को एक पासवर्ड देकर रखा हुआ है कि अगर कोई भी अनजान व्यक्ति उसे अपने साथ चलने को कहे तो वह पहले पासवर्ड पूछे, और अगर उसने पासवर्ड सही बताया तभी उसके साथ जाए वरना किसी भी हालत में उसके साथ न जाए। और आज वही युक्ति काम कर गई और नव्या इतने बड़े खतरे से बच गई।
सारी बातें जानकर अर्पित के प्राण जैसे हलक में आ गए। आज कितने बड़े खतरे से बच गई उसकी बेटी!
अर्पित ने नव्या को गोद में उठाकर चूम लिया,”- स्मार्ट गर्ल है मेरी बेटी!”
नव्या ने भी हंसकर अर्पित के गाल पर चुंबन अंकित कर दिया। फिर अचानक जैसे कुछ याद आया उसे… वह अर्पित की गोद से उतरी और उर्मिला जी के पास जाकर उनके गले में बाहें डाल दीं और चिंतित स्वर में मायूस होकर पूछा, “-दादी मां! आपको कहां चोट लग गई ?आप फिकर मत करो… मैं आपको रोज दवाई लगाऊंगी, तब स्कूल जाऊंगी। आप तो मेरी प्यारी दादी मां हो।” उर्मिला जी ने उसकी तरफ मुड़कर जब उसकी मासूम आंखों में देखा तो उनके दिल में जैसे कुछ पिघल सा गया। कितने ही भाव उनके चेहरे पर आने जाने लगे। उन्होंने खींचकर नन्ही नव्या को हृदय से लगा लिया।
निमिषा नव्या के लिए खाना निकालने रसोई में पहुंची तो अर्पित भी वहां आ पहुंचा। उसने निमिषा से कहा,”- निमिषा, आज तुम्हारी समझदारी, दूरदर्शिता और सूझबूझ की वजह से बहुत बड़ा अनर्थ होने से बच गया वरना पता नहीं हमारी बेटी को क्या-क्या झेलना पड़ता। सोच कर भी मेरी आत्मा कांप उठती है।”
निमिषा ने हंसकर कहा,”- हां यह बात तो अच्छी हुई ही और इसका एक और फायदा भी हुआ.. उधर देखो.. निमिषा ने उर्मिला जी की ओर इंगित किया।
अर्पित ने पलट कर देखा तो पाया उर्मिला जी ने अपनी गोद में नव्या को बिठा रखा है और उससे बड़े प्यार से बातें कर रही है।
निमिषा ने कहा,”- देखा ना अर्पित! कुछ चीजों का महत्व हमें यूं पता नहीं चलता पर उससे दूर होने का ख्याल हमें उसका महत्व बता देता है और आज यही हुआ! नव्या के साथ मांजी का व्यवहार हमेशा रुखा ही रहता था लेकिन आज जब उन्हें एहसास हुआ कि उनकी पोती उनसे दूर हो जाती और किसी बहुत बड़े मुसीबत में फंस जाती तो इस खयाल से ही वह घबरा गई और उनके हृदय जो नव्या के लिए दबा हुआ प्यार का सागर था, हिलोरें लेते हुए बाहर आ गया। देख लो… अब दादी पोती की जोड़ी कितनी जम रही है।”
तब तक उर्मिला जी की आवाज आई,”- अरी बहू, कितनी देर लगेगी नव्या का खाना लाने में…जल्दी ला… मैं इसे अपने हाथों से खिला दूं।”
“- जी अभी लाई माँजी!” कहते हुए निमिषा झटपट नव्या का खाना लेकर उर्मिला देवी के पास पहुंच गई।
उर्मिला देवी ने हंसकर उसके हाथ से थाली लेते हुए कहा,”-
“- बहू, आज मुझे भी समझ में आ गया है कि तू इसे कौन सी बातें बताकर पंडिताइन बना रही थी।”
उनकी इस बात पर सब लोग एक साथ हंस पड़े। आज जैसे सही मायनों में परिवार संपूर्ण हो गया था।
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी, धनबाद, झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना
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चौथी कहानी