दुराव – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

पीछे से भैय्या भैय्या की जानी पहचानी आवाज सुन शंकर ठिठक कर रुक गया, अरे ये आवाज तो पलक की है।शंकर का अनुमान सही था,पलक ही शंकर को पुकार रही थी।

शंकर भैय्या, मैं कब से आपको ढूंढ रही हूं,रुआँसी पलक  बोली।क्या बात है,पलक,सब ठीक तो है,परेशान सी लग रही हो?

शंकर और मनु दोनो सहपाठी रहे,बचपन के मित्र, हमनिवाला, हमराज थे दोनो।संयोगवश शिक्षा पूरी होते ही दोनो की नौकरी भी एक साथ ही लग गयी।दोनो की अंतरंग बाते भी एक दूसरे से छिपी नही थी।मनु और पलक के प्यार की पींगे का राजदार भी शंकर था।पलक भी दोनो की मित्रता को जानती थी,

तभी तो अबके रक्षाबंधन पर उसने शंकर के हाथ मे राखी बांधी थी।तब पलक ने कहा था मेरा कोई भाई नही,क्या तुम मेरे भाई बनोगे?मासूम से प्रश्न में कितना विश्वास छिपा था,शंकर ने अपनी कलाई आगे बढ़ा दी थी,राखी बंधवाने के बाद हक से पलक के सिर पर हाथ रख दिया था।शंकर ने भी बताया था,जानती है पलक मुझे भी तेरे रूप में आज ही प्यारी सी बहन मिली है।माँ से मिलवाऊंगा वो बहुत खुश होगी।

कॉलेज के फंक्शन में मनु की मुलाकात पलक से हुई थी।दोनो ही बाद में एक दूसरे की ओर आकर्षित हो गये, फिर तो मुलाकातें बढ़ने लगी,दोनो ही मिलकर भविष्य की योजना भी बनाने लगे।मनु ने ही शंकर का परिचय पलक से कराया,यह बता कर कि शंकर उसका बचपन का दोस्त ही नही हमराज भी है,हम एक दूसरे से कुछ छिपाते नही वरन एक दूसरे की मानते भी हैं।शालीन व्यवहार के धनी शंकर को पलक को भी प्रभावित किया,तभी तो उसने रक्षाबंधन पर  उसकी कलाई पर राखी बांधी थी।

अचानक उस दिन पलक ने शंकर को रास्ते मे ही रोका तो शंकर ने समझ लिया कि कोई न कोई विशेष बात है।पलक बोली भैया मैं कई दिन से बहुत ही परेशानी में हूँ, मनु इन दिनों किसी लड़की के साथ दिखाई दे रहा है।मुझसे भी उसका मिलना न के बराबर हो गया है, मेरे पूछने पर बस इतना कह कर कि पलक सब बताऊंगा,अभी कुछ ना पूछो।शंकर भैय्या अब तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ?मैं मनु के बिना अपनी कल्पना भी अब नही कर सकती।

यह सब सुनकर शंकर भी चौंक गया, यह सब उसे भी नही पता था।उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि मनु पलक को धोखा भी दे सकता है।अब वह भी पलक से क्या कहे?फिर भी उसने पलक से कहा पलक मैं मनु से आज ही बात करूंगा,मनु तुम्हे धोखा दे इसे मैं भी सहन नही कर सकता।बहन तुम घर जाओ मैं आज ही उससे बात करूंगा।

पलक की बाते सुन शंकर का मन मनु के प्रति खटास से भर गया,उसे मनु से स्वप्न में भी ऐसी उम्मीद नही थी।फिर भी वह पलक की खातिर मनु के घर गया।मनु घर में नही था,उसके घर कुछ देर बैठकर शंकर वापस आ गया।उसे विश्वास था मनु को घर मे शंकर के आने का पता चलेगा तो मनु उससे अवश्य ही संपर्क करेगा,पर आश्चर्यजनक रूप से ऐसा हुआ नही।इस घटना के बाद शंकर का मन मनु के प्रति वितृष्णा से भर गया,उसे भी लगने लगा कि मनु के मन मे चोर है तभी वह पलक से तो बच ही रहा है,उससे भी बच रहा है।शंकर अब पलक को क्या उत्तर दे,इसी उहा पोह में कुछ दिन और बीत गये।

शंकर ने फिर मनु से संपर्क करने का प्रयत्न नही किया,उसके मन मे मनु के प्रति क्रोध था।एक दिन अचानक मनु का फोन शंकर के पास आया,स्क्रीन पर मनु का नाम देखकर एक बार तो उसका मन फोन काट देने को हुआ,पर फिर भी अनमने मन से उसने फोन को उठा ही लिया और बहुत ही ठंडे लहजे में बोला – हैलो।

शंकर तुम जल्दी से घर आ जाओ,एक दम, हमे अभी गावँ चलना है।देर मत करना।कह मनु ने फोन काट दिया।शंकर एकदम विचलित हो गया,इतना तो समझ गया कि कुछ बड़ी गड़बड़ है,मनु की आवाज में बौखलाहट थी,गांव चलने को भी बोल रहा था,सब मनमुटाव ताक में रख शंकर मनु के घर की ओर तेजी से चल दिया।

घर का नजारा ही कुछ और था,घर मे मातम परसा पड़ा था।मनु की माँ और महिलाये जोर जोर से रो रही थी,फर्श पर किसी लड़की का शव चादर उढा कर रखा गया था। शव मनु की चचेरी बहन सुशीला का था,जिसकी आज ही कैंसर से मृत्यु हो गयी है,उसके शव को लेकर ही गांव जाना है,वही उसका अंतिम संस्कार होगा।शंकर ने सब जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर सब व्यवस्था कर सुशीला के शव को लेकर उनके साथ गांव भी गया।वही सुशीला का अंतिम संस्कार कर दिया गया।शंकर मनु के साथ तीन दिन गांव में ही रहा।

इन तीन दिनों में उसे पता चला कि पिछले तीन माह से मनु किस मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा था।तीन माह पूर्व ही उसके चाचा शिवहर अपनी पुत्री सुशीला को लेकर शहर मनु के घर आये थे।उन्होंने बताया कि सुशीला को कैंसर है, यह बात किसी को बताना भी नही चाहते,ठीक हो गयी तो भी कौन उससे शादी करेगा,इसलिये सब गोपनीय ही रखना है।मनु ही उसको हॉस्पिटल  ले जाता,यदि हॉस्पिटल में रुकना होता तो मनु की मां रुकती।इसी कारण मनु पिछले तीन माह में न केवल शंकर,पलक से कटा वरन बाकी सब से भी कट गया।डॉक्टर से उसे पता लग गया था कि सुशीला अधिक दिन की मेहमान नही है, इस कारण उस दुःख को भी लेकर वह अपनी चचेरी बहन के इलाज में लगा रहा।

सारी बाते पता लगने पर शंकर को लगा कि वह कितना अविश्वासी, असंवेदनशील रहा जो अपने मित्र की मनोदशा को भी समझ न सका,मन मे शंका पाल बैठा। उसने भावावेश में मनु को भींच लिया सब कुछ अपने आप झेल लिया,अरे मुझे भी अपने दुख में शामिल कर लेता।मनु भी भीगी आंखों को लिये शंकर की बाहों में ही चिपटा रहा।

शहर वापस आ शंकर सबसे पहले पलक के पास गया,संयोगवश पलक उसे रास्ते मे ही मिल गयी।झपटता सा शंकर उसके पास जाकर बोला अरे पलक अपना मनु एकदम बेदाग है री,तीन महीने उसने पहाड़ से काटे हैं।वो तो तेरा ही है,तेरा ही रहेगा।बहना उस मासूम के प्रति मन मे कुछ भी मुटाव मत रखना।सब बातें सुन पलक दौड़ पड़ी अपने मनु के पास।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

#मन मुटाव साप्ताहिक शब्द पर आधारित कहानी:

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