“रूबी …सो रही थी क्या बेटा ? माफ करना मैंने उठा दिया ।दरअसल चाईबासा वाली कंचन चाची हैं न उन्हें कुछ काम से दिल्ली आना है तो वो तुम्हारे यहाँ भी आना चाह रही थीं , मैंने बोल दिया हाँ चली जाओ, किसी और के घर क्यों रुकना है जब मेरी बहु रूबी वहाँ है ही तो ?
उफ्फ ! ये मम्मी जी भी न । वीकेंड में भी एक दिन साँस नहीं लेने देती हैं । रूबी फोन काटकर कम्बल से उठते हुए धीरे से बुदबुदाई । फ्रेश होकर उसने चाय बनाई और अपने पति सुमित को आवाज़ देकर उठाना शुरू किया । सुमित झल्लाते हुए उठा और बोलने लगा…”इतवार है न आज ! आज तो चैन से सोने दो । रूबी ने कमरे की बत्ती जलाते हुए कहा..”इतवार तुम्हारे लिए है तो मेरे लिए भी इतवार है । और मैं फालतू फिजूल नहीं
बोल रही । तुम अपने मम्मी को क्यों नहीं समझाते ? जब देखो तब किसी न किसी को मेरे घर का पता दे देती हैं । अरे खातिरदारी और मेहमानबाजी करने का इतना ही शौक है न तो खुद के सामने किसी को क्यों नहीं बुलाती हैं ? मज़े से घूम के चली जाती हैं मेरे घर से और सारे रिश्तेदारों को मेरा सिरदर्द बढ़ाने के लिए भेज देती हैं ।
सुबह ही सुबह रूबी की खनखनाहट भरी आवज़ सुनकर सुमित ने पूछा…”क्यों झुंझला रही हो, अब कौन आने वाला है ? रूबी ने सुमित के हाथों में चाय पकड़ाते हुए कहा…कंचन चाची आ रही हैं । एक दिन की तो छुट्टी मिलती है मैंने घर की सफाई भी नहीं की है, ऊपर से ठंड का मौसम है । जाने कितने दिन ठहरेंगी और उनके चोंचले झेलने पड़ेंगे ।
सुमित ने रूबी की बातों में हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा…मम्मी भी न ! कभी कभी कुछ नहीं समझती हैं । अभी मैं उनसे फोन करके पूछ ही लेता हूँ ।
चाय का कप ट्रे में रखते हुए सुमित ने मम्मी को फोन लगाया पर फोन पापा ने उठाया । सुमित एक सांस में मम्मी समझते हुए बोलने लगा…”मम्मी ! क्या लगा रखा है ये ? सबकी इतनी तिमारदारी मेरे से नहीं बर्दाश्त हो सकती । हम दोनों ऑफिस से आते हैं थक जाते हैं और ऊपर से इनलोगों के नखरे सुनो…हम ठंडा नहीं गर्म खाते हैं । घर को कैसे रखा है । चाची के भैया भाभी, दीदी और बहू भी तो रहते हैं ना इसी शहर में, फिर वो उनके यहाँ क्यों नहीं जातीं ?
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सुमित के पापा ने बीच मे टोकते हुए कहा..”बेटा ! मम्मी को फोन दे रहा हूँ, वो गमले में पानी डाल रही है, पर तुमलोग भी किस तरह की बात सोचने लगे हो । हमारे ज़माने में तो हम खूब जी लगा के खातिरदारी करते थे और शिकायत भी नहीं करते थे । तब तक सुमित की मम्मी नैना जी ने फोन लेते हुए कहा…
“बोलो बेटा ! सुमित ने कहना शुरू किया तो नैना जी ने कहा तुम्हारी बातें सुन ली और समझ गयी लेकिन ये बताओ कि क्या नौकरीपेशा के घर कोई मेहमान आता है तो उसका स्वागत नहीं करते हैं । सुमित ने अब इत्मिनान होते हुए कहा…”मम्मी ! बात समझ नहीं रही हैं आप, बस बोले जा रही हैं। मुझे किसी और के आने से तो कोई आपत्ति नहीं है । बस ये कंचन चाची और रेणु भाभी से है ।
नैना जी ने बिना सुमित की बात खत्म हुए कहा..”पहले देखो तो सही की क्या करते हैं, हर बार एक जैसा नहीं रहता । “ठीक है मम्मी” ! इस बार कुछ भी चाची ने उल्टा- सीधा बोला न तो मैं पलट के जवाब दूँगा । मेहमान तब तक अच्छे लगते हैं जब तक वो घर की शान्ति न भंग करें । बातें पूरी करते ही सुमित ने फोन रख दिया और रूबी के साथ कामों में हाथ बंटाने लगा ।
तब तक कंचन चाची का फोन आ गया । उन्होंने बताया रात आठ बजे तक स्टेशन पहुँच जाऊँगी । अभी काफी समय था सफाई और चीजों को व्यवस्थित करने के लिए । ऑफिस से आने के बाद दोनों थक जाते थे, बाई काम करके जाती थी पर सामान इधर उधर ही बिखरे रहते । काम करके रूबी थकने लगी थी
तो सुमित ने कहा…”अब छोड़ देते हैं बहुत हुआ, चल के खाना खा लेते हैं । खाने के बाद दोनों नहा धोकर फ्रेश हुए और थोड़ा आराम किए फिर सुमित चाची को लेने स्टेशन चला गया । चाची को लेकर जैसे ही सुमित घर आया देखते ही बोलने लगीं..ये तो किराए वाले घर से बहुत छोटा है न ? फिर चाय पीने के बाद नहाने जाने लगीं
और बाथरूम में घुसते ही कहा…”बुरा मत मानना बहू एक बात बोलती हूँ । तुमलोग कितना गन्दा रखते हो बाथरूम । रूबी ने सफाई देते हुए कहा…”चाची ! बाथरूम तो साफ है, कहीं भी तो गन्दा नहीं है वो तो गीला है बस । हम थक जाते हैं तो कभी आलस्य से छोड़ देते हैं । और वैसे भी चाची…”ये बाथरूम से सिर्फ बाई पानी लेकर पोछा लगाती है,
इसका इस्तेमाल नहीं है तो गन्दा हो जाता है । मुँह बिचकाते हुए कंचन जी नहाने चली गईं । तब तक रूबी ने गर्मागर्म राजमा, जीरा राइस, फ्राई आलू और पनीर भुर्जी जो पहले से बना हुआ था सबको गर्म कर लिया । जैसे ही चाची नहाकर तैयार होकर बैठने लगीं रूबी ने खाना सबका डायनिंग टेबल पर लगाया । खाना देखते ही चाची ने बोला…कब से बना रखा है ये खाना ? इतना पहले से बना खाना मैं नहीं खा पाती हूँ । मेरी बहु तो बिल्कुल तभी बनाती है जब खाने बैठती हूँ ।
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रूबी ने कहा..”इतना टाइम तो मेरे पास नहीं होता है चाची । हर दिन सिर्फ एक सब्जी रोटी बनाती हूँ । आज सिर्फ आपकी वजह से इतना बनाया है । “ओह्ह..मेरी भाभी इधर ही रहती हैं, उनके घर तो मत पूछो इतने तरह के पकवान हर दिन बनते हैं पूछो मत ।चुपचाप सुमित और रूबी बेमन से बातों को सुने जा रहे थे ।
अब सोने का समय आया तो बेडशीट देखकर कंचन ने कहा, ये कहाँ से लिया ? हम इस तरह की नहीं पसन्द करते, अपनी भाभी से पूछकर बताउंगी उनकी पसन्द वो कहाँ से लेती हैं ।
अगले दिन सुबह रूबी को घर से काम करना था तो थोड़ा देर से उठी । तब तक चाची ने नैना जी को फोन किया । नैना जी के तेवर सुनकर रूबी को समझते देर न लगी कि चाची ने भड़काया है । रूबी के प्रणाम को बिना जवाब दिए नैना जी बोलने लगीं ,। तुमलोगों ने तो मेरी नाक कटा दी,
इतना देर से चाची के सामने उठने की क्या जरूरत थी ? घर को भी व्यवस्थित नहीं रख सकते थे । “क्या बातें लेकर आप बैठ गईं मम्मी । मुझे ये नहीं समझ आता कि जब चाची को सब कुछ अपने मायके और भाभी के घर का हर कुछ पसन्द है तो वहां क्यों नहीं जातीं । यहीं खा रही हैं, और पीछे से चुगली भी कर रही हैं ।
तीन दिन से यही चल रहा है । सुमित ने फोन लेकर कहा..”बहुत हुआ मम्मी ! आपको उन्हें समझना है आप समझिए । बहुत हो गया अब , कैसे छः दिन बीतेंगे समझ नहीं आ रहा । अपना काम करूँ या उनके नखरे झेलूँ ? ,इतनी ही अच्छी हैं उनकी भाभी और रिश्तेदार और उनका बंगला आलीशान है तो यहाँ आकर क्यों रुक रही हैं ?
हमारा तो घर भी छोटा है मतलब यही है न कि इनकी इन्हीं स्वभाव की वजह से इन्हें कोई पूछना नहीं चाहता । दिल खोलकर मुझे पसन्द है मेहमानों का स्वागत करना पर सामने वाला बिना मीन मेख निकाल रहे तो बिल्कुल इच्छा नहीं होती आव भगत करने की ।
सारी बातें कंचन जी ने सुन लिया । रूबी और सुमित उलझनों से घिरे हुए थे, चाची से नजरें नहीं मिला पा रहे थे । थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कंचन जी ने खुद कहा…”मुझे तो पता ही नहीं चला, मेरे इन्हीं स्वभाव की वजह से मुझसे सब घबराने लगते हैं । बुरा नहीं माना मैंने, दुःखी होने की जरूरत नहीं तुमलोगों को । बोलते बोलते मुझे पता ही नहीं चलता भावावेश में क्या क्या बोल जाती हूँ, तभी लोग मुझसे कतराने लगे हैं ।
रूबी सुमित ने हकलाते हुए बोला..”ऐ..ऐसी बात नहीं है चाची ! कंचन जी ने मुस्कुराते हुए कहा…”कुछ मत बोलो, सबसे दूर होने का कारण आज समझ आ रहा है मुझे । जरूरी नहीं कि बड़े ही बच्चों को सिखाएं कभी बच्चे भी बड़ों को सीख दे जाते हैं
।
(अर्चना सिंह )
मौलिक, स्वरचित