गंगानाथ त्रिवेणी के घर आज जश्न का माहौल है। क्यूँ ना हो… एक बेटी पहले से है और एबी बेटा का जन्म हुआ है।खुश हैं कि आज उनका परिवार पूरा हो गया। संयोग से पत्नी का नाम भी गंगा ही है… दोनों पति पत्नी यथा नाम तथा गुण हैं.. गंगा की तरह निर्मल … दुखियों की दिल खोल कर सहायता करने वाले.. धर्म-परायण दंपति हैं।
घर पर आने जाने वाले लोगों का तांता लगा हुआ है.. नामकरण संस्कार है बेटे का… बेटी अन्या भाई के आसपास ही घूम रही है… क्या पता भाई को किस चीज़ की जरूरत हो जाए।
लग रहा था मानो बड़ी बहन होने की जिम्मेदारी अभी से ही समझ रही हो।
धूमधाम से नामकरण हुआ और बेटे का नाम कमल रखा गया…
बहुत ही सुनहरे दिन गुजर रहे थे..त्रिवेणी जी के दोनों बच्चे भी काफी जहीन थे.. किसी चीज़ की कमी नहीं थी…
पाँचवीं तक आते आते कमल में कई परिवर्तन परिलक्षित होने लगे। वो अपनी दीदी की गुड़ियों से खेलना पसंद करता… अपने दोस्तों से ज्यादा अन्या की सहेलियों के संग समय बिताना पसंद करता। अन्या के कपड़ों को छुप कर पहनता… कई बार उसकी माँ देखकर अनदेखा कर देती.. एक दो बार अपने पति से उन्होंने कहा भी… त्रिवेणी हँस कर कहते… अपनी बहन और उनकी दोस्तों के साथ ही रहा है ना छोटे से… एक दो सालों में देखना खुद ब खुद सब समझ जाएगा। लेकिन कमल की उत्कंठा बढ़ती गई..एक दो सालों में उसके हाव-भाव भी दिन प्रतिदिन लड़कियों की तरह होने लगे। विद्यालय में भी उसके हमउम्र बच्चे उसे चिढ़ाने लगे…. जितना अन्या को अपनी माँ के साड़ी और श्रृंगार में रुचि नहीं थी.. उससे ज्यादा कमल को उन सब चीजों में रुचि थी।
अब त्रिवेणी जी पति पत्नी को चिंता हुई… एक दो बार उन्होंने कमल को समझाया… पर कमल कहता मुझे लड़कियों की तरह रहना और लड़कियों से मित्रता करना अच्छा लगता है.. उन्होंने डॉक्टर से मिलना जरूरी समझा…. डॉक्टर ने कमल को थर्ड जेंडर घोषित कर दिया…. पति पत्नी पर वज्रपात सा हो गया और कमल नादान समझ ही नहीं रहा था कि ऐसा क्या कह दिया डॉक्टर ने या उसे क्या हुआ है.. जो माँ उससे लिपट कर रोये जा रही है।
घर आकर बच्चों को खिला पिला कर गंगा सुला देती हैं…. किसी तरह त्रिवेणी जी को भी खाना खिला कर सोने कहती हैं.. पर दोनों की आँखों में नींद कहाँ….
गंगा – क्या होगा कमल का… आज ना कल सब जान ही जाएंगे..
फिर क्या किन्नर आकर मेरे बच्चे को ले जाएंगे… वो भी औरों की तरह नाच गा कर भीख माँग कर अपना जीवन चलाएगा… मेरा बच्चा पढ़ने में कितना होशियार है.. स्कूल वाले भी तारीफ करते नहीं थकते.. कितने पुरस्कारों से घर सजा दिया है उसने… कहकर रोने लगती हैं…
गंगानाथ सधे शब्दों में कहते हैं.. नहीं हमारा बेटा कहीं नहीं जाएगा.. हमारी मर्जी के बिना कोई इसे हाथ नहीं लगा सकता है.. पढ़ेगा और किसी अच्छी जगह नौकरी कर अपना जीवन यापन कर समाज के लिए एक उदाहरण पेश करेगा। मेरा बेटा नियति के आगे झुकेगा नहीं।नियति को बदलेगा मेरा बेटा।
गंगा – भगवान करे ऐसा ही हो.. मेरे दोनों बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में अव्वल रहे…
कमल के आठवीं में और अन्या के दसवीं में आते आते सबको कमल के बारे में पता चल चुका था… किन्नर बिरादरी हर हालत में उसे अपने साथ ले जाना चाहती थी … समाज की भी यही रजा थी। कोई भी गंगानाथ का साथ देने आगे नहीं आया… समाज में बदलाव सभी चाहते हैं.. पर वही समाज समय आने पर अपने पैर पीछे खींच लेता है.. यही हो रहा था….. किन्नर समुदाय धमकी देने के साथ कई तरह से परेशान करते रहे। त्रिवेणी जी पति पत्नी अडिग रहे….. उन्होंने अपना और अपने बच्चों का पथ तय कर लिया था… समाज से कटकर उस पर निर्विकार बढ़ रहे थे।
उन्होंने ठान लिया था कि कमल को पुलिस की नौकरी में ही भेजेंगे.. जिससे समाज का अधिक से अधिक भला कर सके और मुख्यधारा से जुड़ सके… कमल भी अपने माता – पिता की मनोदशा समझता था। ये भी समझता था कि मानसिक रूप से प्रताड़ित होने के बाद जिस तरह से उसके माता पिता उसके लिए कठिनाइयों से लड़े… ये सब कोई विरला ही कर सकता है… इसी से वो समझता था कि उसके प्रति उसके माता पिता का असीम स्नेह है।
अन्या मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी और कमल स्नातक कर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में लग गया था और आज उसका दरोगा के लिए हुए परीक्षा का परिणाम आने वाला था…. बहुत ही बेसब्री से प्रतीक्षारत था…. दोपहर दो बजे परिमाण कंप्युटर स्क्रीन पर जगमगा रहे थे और उसमें एक नाम कमल त्रिवेणी का भी था… खुशी से रो पड़ा वो.. उसमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि जाकर अपने माता – पिता को बताए कि उनका अपने निर्णय पर फख्र करने का दिन आ गया। कमल को आज खुद से ज्यादा अपने माता पिता पर गर्व हो आया… जाकर अपनी माँ से लिपट गया। त्रिवेणी जी भी लंच कर आराम कर रहे थे.. उनकी नजर माँ बेटे पर पड़ी तो बोले बिना नहीं रह सके…
त्रिवेणी जी – क्या बात आज माँ बेटे में बहुत लाड़ प्यार हो रहा है।
गंगा – अरे देखिए तो ये रो रहा है.. पगला.. क्या हो गया मेरे बच्चे …
त्रिवेणी जी हड़बड़ा कर उठते हैं.. क्या हुआ.. किसी ने कुछ कह दिया गया.. किसी की बात पर ध्यान मत दिया कर.. अपने लक्ष्य पर ध्यान दो बेटा।
कमल रोते रोते अपना परीक्षा परिणाम बताता है.. अब कमल के साथ साथ दोनों की आँखों से भी खुशी के आँसू अविरल बहने लगे… आज उनकी मेहनत सफल हो गई।
गंगा – अब तो मेरे बच्चे को सब दरोगा जी कहकर सलाम करेंगे… बेटा इस समाज ने हमारे साथ जो भी किया हो.. इस बात को कभी दिल से लगा कर मत रखना… समाज में अपनी पहचान बनाने के साथ साथ नेकी ही करना…. सबकी सहायता करना…
कमल अपने माता पिता के चरण स्पर्श कर अपनी प्रार्थना में सिर्फ एक ही दुआ माँगता है – जब भी इस धरती पर जन्म लूँ.. आप दोनों के कोख से जन्म लूँ… मेरे तो भगवान आप ही हैं…
आज एक बार फिर इन दुआओं की रौशनी में त्रिवेणी जी का घर चमक उठा था। आज फिर से जुनून और मेहनत नियति को परास्त कर मुस्कुरा रहा था।
#नियति
आरती झा आद्या
दिल्ली