“सुनिए जी, कल हम दोनों को रायपुर जाना पड़ेगा भात न्यौतने के लिए । अब राशि की शादी को सिर्फ पंद्रह दिन रह गए हैं । ये तो जरूरी रीत है तो जाना जरूरी है । ,, हिचकते हुए हेमा अपने पति से बोली।
“क्या हेमा, ये सब तुम औरतों के बनाए नियम कानून हीं हैं। तुम ही चली जाना वहां जो रीति रिवाज हैं निभा लो मैंने रोका थोड़े ही है। मैं तुम्हारे मायके जाकर क्या करूंगा। इतना फालतू टाइम नहीं है मेरे पास।” अमन हमेशा की तरह झुंझलाते हुए बोला।
हेमा को शायद इसी जवाब की उम्मीद थी इसीलिए उसने जरूरी रीत का हवाला दिया था क्योंकि बिना बहुत जरूरी काम के हेमा के बोलने मात्र से तो अमन हिलते भी नहीं थे। और जब हेमा के मायके जाने की बात आती थी तब तो उनके अलग हीं तेवर दिखाई पड़ते थे। चाहें साथ ना जाए फिर भी दस बातें सुनने को मिल हीं जाती थी। अमन के हिसाब से पत्नी के मायके जाना सिर्फ समय की बर्बाद थी। कभी जाना भी पड़ जाता था तो ऐसे दिखाते थे जैसे पत्नी और उसके मायके वालों पर कितना बड़ा एहसान कर दिया हो। पति के इस व्यवहार और अपनी इच्छाओं के बीच अब हेमा ने समझौता कर लिया था उसे पता था कि उसके ज़िद करने से तो अमन हां भरने से रहा ।
अमन का जवाब सुनकर हेमा तो चुप रह गई थी कि तभी हेमा की सास आकर बोलीं ,” अमन, बेटा तुम दोनों कल हीं रायपुर जा आओ , बाद में शादी की तैयारियों में समय नहीं रहेगा। जो काम जितनी जल्दी हो जाए वही अच्छा है।”
मां की बात सुनकर अमन को यकीन आया कि वहां जाना सचमुच जरूरी है। अमन ने जाने की हां तो बेमन से की थी लेकिन फिर भी हेमा बहुत खुश थी। आखिर इतने लम्बे समय के बाद वो अपने पति के साथ अपने मायके जा रही थी।
सच में उम्र चाहें जितनी भी हो जाए मायके जाने के नाम से हीं औरतों के पैरों में पहिए लग जाते हैं। चाहें खुद के बच्चे बड़े हो जाएं लेकिन मायके के आंगन में औरतें फिर से खुद को बच्ची समझने लग जाती है। माता-पिता के लाड दुलार को तरसरी स्त्रियां इन कुछ पलों को जी भरकर जी लेना चाहती हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि ये दहलीज पार करते हीं फिर से वो उसी मान मर्यादा और जिम्मेदारियों से घिर जाएगी जहां से थोड़ी देर के लिए आजाद हुई थी।
रात को भी हेमा की आंखों में नींद नहीं थी। भात न्यौतने के सारे सामान को बार बार देख रही थी कि कुछ रह तो नहीं गया। फिर सोचती थी कि वहां कल सारे भाई बहन इकट्ठा होंगे तो कितना अच्छा लगेगा। बड़ी दीदी से मिले हुए तो काफी साल हो गए हैं । पता नहीं वो कैसी दिखने लगी होंगी ?? और जब पिछली बार भाभी से मिली थी तो कितनी मोटी लग रही थीं । पता नहीं इस बार और मोटी हो गई होगी तो !! ये सब सोच सोचकर अपने आप उसके होंठों पर हंसी आ रही थी।
बड़ी मुश्किल से रात बीती और सवेरा हो गया। हेमा ने फटाफट सारे काम निपटा लिए लेकिन अमन की सुस्ती देखकर उसे मन हीं मन झुंझलाहट हो रही थी। इतना लम्बा सफ़र है फिर भी जल्दी नहीं कर रहे । फिर वहां जाते ही वापस आने की जल्दी करने लगेंगे। ऐसे में किस किससे बातें कर पाएगी ? कैसे सबसे जी भर मिल पाएगी??
आज रास्ता कुछ ज्यादा ही लम्बा लग रहा था लेकिन उत्साह में ये वक्त भी निकल गया। मायके में सबको बेटी दामाद के आने की खबर थी इसलिए सभी बेचैनी से उनका इंतजार कर रहे थे। मायके के द्वार पर जब हेमा के पिता जी ने हेमा के सर पर हाथ रखा तो हेमा उनके सीने से लग गई। आंखे नम हो रही थीं। पता नहीं ये खुशी थी या लम्बे समय से ना मिल पाने का दुख।
सब अमन की खातिरदारी में जुटे थे कि कहीं कोई कमी न रह जाए। अमन में दामाद होने की ठसक अभी भी ने नवेले दामाद की तरह ही बरकरार थी।
नाश्ता पानी के बाद हेमा के पिताजी अमन के पास बैठकर अपनी नातिन राशि के होने वाले ससुराल और लड़के के बारे में पूछने लगे।
“और बताईए दामाद बाबू। राशि बिटिया के होने वाला ससुराल कैसा है?? राशि बिटिया शादी से खुश तो है ना??”
अमन भी गर्व से सर उठाकर बोला ,” हां पिताजी, मैंने अपनी राशि का रिश्ता किसी ऐसे वैसे घर में तय नहीं किया है। लड़का तो हीरा है हीरा…. मैंने तो पहले ही साफ़ साफ़ कह दिया है कि मेरी बेटी को किसी बात की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए और जब भी मेरी बेटी का मन होगा उसे हमारे पास आने से कोई नहीं रोकेगा । मेरे होने वाले दामाद ने मुझसे वादा किया है कि वो राशि को सर आंखों पर बिठाकर रखेगा।”
अपने दामाद के मुंह से उनके होने वाले दामाद की इतनी तारीफ सुनकर हेमा के पिताजी हौले से मुस्कुरा उठे और बोले , ” ये तो अच्छी बात है दामाद बाबू, मैं भी भगवान से दुआ करूंगा कि कम से कम आपका दामाद आपसे किया वादा निभाए….. नहीं तो अक्सर दामाद अपना किया वादा भूल जाते हैं। एक बार बिटिया विदा होने के बाद बेचारी मायके आने को भी आश्रित हो जाती है। उसे हर पल अपनी इच्छाओं और भावनाओं से समझौता करना पड़ता है । काश हमारी राशि का पति उसकी भावनाओं को सम्मान दे यही मेरी प्रार्थना है।”
पास बैठी हेमा कभी अपने पति का तो कभी अपने पिता का चेहरा देख रही थी। पिता की नजरों में उसे वो सारे वादे नजर आ रहे थे जो उसकी शादी के समय अमन ने पिताजी से किए थे और पति की नजरों में उन वादों से निकलता हुआ धुंआ नजर आ रहा था जो कबके दम तोड चुके थे।
अमन भी अपने ससुर जी की बात सुनकर नजरें चुरा रहा था। आज उसे भी याद आ गया था कि वो भी तो अपने ससुर का वही दामाद है जिसपर विश्वास करके उन्होंने अपनी बेटी का हाथ उसके हाथ में सौंपा था। उसने भी तो विदाई के समय अपने ससुर जी से वादा किया था, ” पिताजी आप चिंता मत कीजिए…. मैं हमेशा हेमा का ख्याल रखूंगा। जब भी मिलने का मन करे बस एक बार बता दीजियेगा , मैं खुद इसे लेकर आ जाऊंगा।”
अमन के आगे जैसे किसी ने आइना रख दिया था जिसमें उसे अपना अहम रूपी रेत से बना दामाद वाला असली चेहरा नजर आ रहा था। एक ससुर के रूप में जो उम्मीद वो अपने होने वाले दामाद से लगाए बैठा है क्या कभी वो खुद उन उम्मीदों पर खरा उतर पाया है???? ,,
लेकिन इस सवाल का जवाब उसके पास नहीं था। अपने पति की दशा देखकर हेमा बात बदलते हुए बोल पड़ी ,” पिता जी , वो क्या है ना इनका काम हीं ऐसा है कि कहीं निकल हीं नहीं पाते हैं। ,,
हेमा की बात सुनकर अमन थोड़ा सहज महसूस कर रहा था। सच में एक पत्नी कभी नहीं देख सकती कि उसका पति उसके मायके में असहज महसूस करे क्योंकि आखिर औरत तो दोनों घरों का मान बनाकर रखना चाहती है चाहे उसके सम्मान को ठेस क्यों ना लगती हों।
भात न्यौतने का कार्य पूरा करके सबको निमंत्रण देकर दोनों वापस लौट रहे थे । लेकिन आज हेमा महसूस कर रही थी कि अमन वहां कुछ छोड़ आया है… शायद वो दामाद होने का अहम हीं था। गाड़ी में हेमा अमन के कंधे से लग गई।अमन ने भी उसे थोड़ा कस लिया जैसे कह रहा हो देर से ही सही लेकिन अब मैं अपना किया वादा निभाने की कोशिश करूंगा…..
सविता गोयल