मोहित गाड़ी से उतर यंत्रचालित सा चलता हुआ एयरपोर्ट के अंदर आकर बैठ गया। होनहार प्रतिभावान मोहित के लिए एमबीए खत्म होने से पहले ही लंदन की एक नामी गिरामी कंपनी से लंदन या भारत कहीं भी जॉइन करने के लिए जॉब ऑफर आ गया था। मोहित जो कि पहले मन ही मन भारत में ही जॉइन करने का निर्णय ले चुका था, अनायास ही लंदन का प्रस्ताव स्वीकार कर लंदन चल पड़ा था। हाथ में पकड़ी बोतल से एक घूंट पानी पीकर कुर्सी के पुश्ते पर पर सिर टिका आँखों को तेजी से ऐसे भींच लेता है, मानो दुनिया के हर शय से दूर भाग जाना चाहता हो। पर क्या खुद से अपनी अंतरात्मा से भी दूर भागना इतना ही आसान है।
मोहित की आँखें तो बंद थी, लेकिन मन लगाम लगाते लगाते बचपन की ओर खिंचा चला जा रहा था। मन से आजिज आकर मोहित भी मन के साथ बचपन की ओर चल पड़ा। उसे याद आ गया उसका एक कमरे का छोटा सा घर, जहाँ माता पिता के साथ खेलता नन्हा सा मोहित। मोहित के पिता रामदेव शहर ने नामी व्यवसायी विश्वंभर सिंह के यहाँ माली के रूप में काम करते थे। रामदेव से बार बार बड़े से बंग्लो की बातें सुन सुनकर एक दिन मोहित भी बार बार बंग्लो देखने की जिद्द करने लगा।
चलो ले चलता हूँ, लेकिन कुछ छुना नहीं बचवा और फिर कभी चलने की जिद्द नहीं करना.. रामदेव अपने बेटे मोहित से कहता है।
वहाँ जाकर मोहित को सबसे अच्छा जो लगा वो था मोहित का हमउम्र वैभव कमरे की खिड़की से टुकुर टुकुर उसे क्यारियों के बीच में फुदकते देख रहा था।
पप्पा वो कौन है.. खिड़की की ओर इशारा करते हुए मोहित ने पूछा।
वो मालिक मालकिन के बबुआ हैं बेटा, जैसे तुम हमारे बबुआ हो.. रामदेव बेटे से कहते हैं।
मालिक मालकिन कहाँ हैं पप्पा.. मोहित इधर उधर देखता हुआ बाल सुलभ सवाल करता है।
मालिक मालकिन सुबह घुमने जाते हैं।
इतना बड़ा घर, इतना बड़ा मैदान है फिर भी वो कमरे में क्यूँ है। खेल क्यूँ नहीं रहा.. मोहित ने पूछा।
बड़े लोगों के डर भी बड़े होते हैं, तुम नहीं समझोगे। काम करने से मुझे.. कहकर रामदेव क्यारियों में खाद पानी डालने लगा।
मोहित इधर उधर घूमता हुआ अपने पप्पा से आँख बचाकर वैभव की खिड़की तक चला गया और उसे हाथ से बाहर आने का इशारा करने लगा। वैभव भी मोहित को देख आकृष्ट हो रहा था। उसकी भी इच्छा हो रही थी कि मोहित के साथ क्यारियों में दौड़े, तितलियाँ पकड़े, खिलखिलाए। लेकिन माता पिता की सख्त हिदायत के कारण रविवार को भी अपने कमरे में बैठा तन्हाई को अभी से ही समझने के प्रयास में लगा था। मोहित के बार बार बुलाने से वैभव चुपचाप आकर मोहित के पास आकर खड़ा हो गया।
मोहित उसे लेकर गार्डेन में पहुँच गया और कभी वैभव को तितली पकड़ कर देता। कभी किसी चिड़िया को बैठा देख वैभव का हाथ पकड़ दौड़ पड़ता। वैभव की खिलखिलाहट से रामदेव मोहित को मना भी नहीं कर सका और जो होगा देखा जाएगा सोच दोनों बच्चों को मंत्रमुग्ध सा निहारने लगा। वैभव को मोहित इतना भा गया कि वो उसे लेकर अपने कमरे में तरह तरह के खिलौने दिखाने ले गया। कुछ ही देर में विश्वंभर सिंह और उनकी समाज सेविका पत्नी मालती देवी बंग्लो में दाखिल होते हैं। उन्हें देख रामदेव बच्चों की ओर नजर करता है तो बच्चे नदारद होते हैं। मालिक से बिना पूछे छोटे मालिक मोहित को बंग्लो में लेकर तो नहीं चले गए, ये सोच कर उसके तो प्राण हलक में ही सूखने लगे।
बच्चों के कमरे से जोर जोर से हँसने की आ रही आवाज से विश्वंभर सिंह और मालती देवी के पाँव अपने कमरे में जाते हुए ठिठक गए और दोनों एक दूसरे को आश्चर्यपूर्वक देखने लगे। जो खिलौने आज तक नहीं खुले, वो बिखरे पड़े थे और वैभव पूरी दुनिया से बेखबर सा मोहित के साथ खेलने में मग्न था।
कौन है ये बच्चा.. पानी लिए खड़े सेवक से विश्वंभर सिंह धीमी आवाज में पूछते हैं।
मालिक मेरा बेटा है.. रामदेव गलती की सजा पाने के लिए नीची निगाह करके कहता है।
रामदेव तुम अपने बच्चे को रोज लेकर आना.. विश्वंभर सिंह पत्नी मालती देवी की ओर देखते हुए कहते हैं।
जी मालिक.. रामदेव असमंजस की स्थिति में सोचता हुआ चला गया।
मालती अगर वैभव इस बच्चे के साथ स्वभाविक व्यवहार कर पाया तो क्यूँ ना हम वैभव के स्कूल में इसका भी एडमिशन करा दें। तब वैभव भी स्कूल जाना चाहे। इससे पहले हमने तो किसी के साथ भी ऐसे घुलते मिलते नहीं देखा है वैभव को.. विश्वंभर सिंह अपने कमरे में जूते के फीते खोलते हुए कहते हैं।
कोशिश करने में क्या हर्ज है। मुझे एक एनजीओ के उद्घाटन समारोह में जाना.. कहकर मालती तैयार होने चली गई। अपनी अपनी दुनिया में खोए दोनों ही कभी वैभव को माता पिता की तरह प्यार नहीं दे सके थे और आज मोहित से निश्छल प्रेम अपनापन पाकर वैभव खोह से बाहर निकल आया था। भले ही स्कूल में एडमिशन कराने के बाद
विश्वंभर सिंह और उनकी पत्नी ने उसे वैभव के मन बहलाने का एक खिलौना समझा हो, लेकिन वैभव ने उसे हमेशा एक दोस्त एक भाई एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही मान दिया था। उसे याद हो आया वो समय जब मोहित और वैभव दसवीं में थे और भौतिक विज्ञान के नए शिक्षक आए थे और ये जानने के बाद कि मोहित माली का बेटा है तो भरी कक्षा में मज़ाक बनाते हुए कहा था कि लगता है हाथ से खुरपा छोड़ किसी की यूनीफॉर्म माँग कर बड़े स्कूल की बड़ी कक्षा में बैठने का शौक पूरा कर रहा है और पूरी क्लास के ठहाके लगाने पर शांत रहने वाले मोहित की मुट्ठियाँ भींच गई थी। इस अपमान में जलता हुआ मोहित ने एक दिन आव ना देखा ताव कोरिडोर से गुजरते शिक्षक के सिर पर ईंट फेंक कर घायल कर दिया। संयोग से उस समय
कोरिडोर में शिक्षक के अलावा कोई नहीं था,शिक्षक के अलावा मोहित को किसी ने ऐसा करते नहीं देखा था। शिक्षक का चिल्लाना सुन सारे स्टाफ एकत्रित हो गए और उन्हें आनन फानन में अस्पताल लेकर भागे।
शिक्षक बार बार मोहित का नाम लेकर उसे स्कूल से निकालने की बात कर रहे थे। गार्जियन में विश्वंभर सिंह का नाम होने के कारण उन्हें बुलाकर स्कूल प्रशासन ने सारी स्थिति से अवगत कराया।
नहीं ऐसा कैसे हो सकता है। मोहित शांत रहने वाला बच्चा है। जरूर शिक्षक को कोई गलतफहमी हुई है.. विश्वंभर सिंह ने एक सिरे से ही ये बात नकार दिया।
लेकिन शिक्षक महोदय अपनी बात पर अड़े रहे। आपलोगों को इसे हर हाल में स्कूल से निकालना होगा। अन्यथा मैं और मेरे विद्यार्थी स्कूल का बहिष्कार करेंगे.. शिक्षक महोदय के शब्दों में धमकी का पुट स्पष्ट परिलक्षित था।
क्या मैं अंदर आ सकता हूँ। चपरासी के रोकने के बावजूद भी मोहित मीटिंग रूम में प्रवेश कर गया।
पापा.. वो मोहित नहीं मैं था.. वहाँ की परिस्थिति भाँपते हुए वैभव ने कहा।
वैभव की बात सुनकर कोने में खड़ा मोहित सिर उठाकर वैभव को देखने लगता है।
ये क्या बोल रहे हो वैभव.. विश्वंभर सिंह गरजते हैं।
जिस दिन सर ने माली का बेटा होने के कारण मोहित की अवहेलना की थी। उस दिन से ही मैं मौके की तलाश में था.. वैभव ने कहा।
झूठ बोल रहा है ये.. सर ने कहा।
मोहित आपको पसंद नहीं है, केवल इसीलिए आप मोहित का नाम ले रहे हैं सर.. वैभव शिक्षक महोदय की आँखों में देखता हुआ कहता है।
अब पासा पलट चुका था। स्कूल के ट्रस्टी होने के कारण विश्वंभर सिंह के पुत्र को निकालने की हिम्मत स्कूल प्रशासन नहीं कर सकता था। इसीलिए शिक्षक महोदय पर या तो शिकायत वापस लेने का या स्कूल छोड़ देने का दबाव आ गया।
दो कौड़ी के लडके के लिए मेरी इज्जत की फजीहत कर दी इस लड़के ने। अरे माली का बेटा है तो और क्या कहेंगे लोग.. विश्वंभर सिंह वैभव पर चीख रहे थे, जिसे कमरे में बैठा मोहित भी सुन रहा था।
तुमने ऐसा क्यूँ किया वैभव.. मोहित ने पूछा। घर पर विश्वंभर सिंह द्वारा पुरजोर डांट सुनने के बाद वैभव अपने कमरे में मोहित के साथ बैठा था।
क्यूँ किया.. दोस्ती के लिये किया। मुझे पता था ट्रस्टी का बेटा होने के कारण मुझ पर कोई गाज नहीं गिरेगी। लेकिन तुम्हारा जीवन ये लोग बर्बाद करके मानेंगे.. मुस्कुराते हुए वैभव ने कहा।
वैभव के पिता का वैभव को अपमानित करना, माँ के चेहरे पर हिकारत भरी भावना, वैभव का मुस्कुराता चेहरा और कुछ दिन पहले गाड़ी और ट्रक के टक्कर में वैभव के माता पिता की मृत्यु, वैभव के पैरों में लकवा हो जाना सब गड्डमड्ड हो मोहित के आँखों के सामने से गुजर गया। पसीने पसीने हुए मोहित की आँखें एयरपोर्ट पर उसके नाम की उद्घोषणा से झटके से खुलती है।
ये मैं क्या करने जा रहा था। उसे छोड़ कर कायरों की तरह भाग रहा था, जिससे सबसे ज्यादा सम्मान पाया मैंने। ये भी नहीं सोचा कि कौन करेगा उसकी देखभाल। मुझसे अच्छे तो मेरे माता पिता हैं, जो दूर रहकर भी वैभव के निःस्वार्थ प्रेम को समझ उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। मुझसे गिरा हुआ दोस्त भी किसी को मिला होगा क्या? मोहित की अंतरात्मा उसे धिक्कारने लगी। नहीं मैं अपने दोस्त को छोड़ कर नहीं जा सकता हूँ। उसकी यारी ने ही तो मुझे इस मुकाम पर पहुँचाया है।
मि. मोहित आपके नाम की ये अंतिम उद्घोषणा है.. उद्घोषक की आवाज एयरपोर्ट पर गूंजी।
आ रहा हूँ मेरे दोस्त, अभी कभी तेरा साथ नहीं छोड़ने के लिए.. मोहित झटके से खड़ा होकर मुस्कुराता हुआ एयरपोर्ट से बाहर आता हुआ सोचता है।
गाड़ी से उतर मोहित जैसे ही बंग्लो की ओर बढ़ता है, उसे उस खिड़की पर व्हीलचेयर पर बैठा बचपन वाला मासूम वैभव बाहर गार्डन की ओर उसी जगह टुकुर टुकुर ताकता हुआ दिखता है, जिस जगह पहली बार मोहित को उसने देखा था।
क्या देख रहे हो मेरे दोस्त.. धीमे से कमरे में आकर वैभव के कंधे पर हाथ रखता हुआ मोहित पूछता है।
तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था मेरे दोस्त.. मोहित के हाथ पर हाथ रखता हुआ वैभव कहता है।
मैं तो भाग गया था। तुम फिर भी प्रतीक्षा कर रहे थे.. मोहित वैभव के पैरों के पास बैठता हुआ कहता है।
मुझसे भाग जाओगे। हमारी दोस्ती यारी से कहाँ भाग कर जाओगे दोस्त। हमारी दोस्ती इतनी कमजोर नहीं है मेरे दोस्त,ये मैंने जानता था.. वैभव के आँखों से अश्रु बह निकले।
वैभव.. कहकर मोहित उसके गले लिपट गया। दोनों की आँखों से पवित्र गंगा यमुना अविरल बहने लगे। जो ये बता रही थी कि सच्ची दोस्ती की हमेशा विजयी होती है।
#दोस्ती_यारी
आरती झा”आद्या”
(स्वरचित व मौलिक)
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