दोस्ती  – गोमती सिंह

 ——-वे स्कूल, काॅलेज आज भी गवाह हैं जहाँ पाँच दोस्त राजेश, सुधीर ,अमित,भानु  तथा नरेन्द्र प्रायमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तथा स्नातक तक की पढ़ाई एक साथ किए । वह स्टेडियम भी यथा स्थान बना हुआ है जहाँ वे लोग खेला करते थे ।

            उस शहर का चप्पा चप्पा उन पाँचों की दोस्ती का मूक गवाह हैं । दोस्ती का रिश्ता मानव जीवन में काफी महत्व रखता है।  जो विश्वास और सहयोग के आधार पर टिका होता है । दोस्त राजदार भी होते हैं और सुख दुःख के साथी भी ।

                      लेकिन हर ब्यक्ति के जीवन में एक ऐसा पड़ाव आता है जहाँ पहुँचने पर प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सद्इच्छाओं ,शौक, रिश्ते-पाते, यारी-दोस्ती  सभी का त्याग करना पड़ता है, वह है गृहस्थी के लिए जीविकोपार्जन करना । अपनी इसी जिम्मेदारी को निभाने के लिए उन पाँचों दोस्तों ने अपनी अपनी योग्यता अनुसार सभी ने छोटी छोटी नौकरी ज्वाइन कर ली ।

         सभी ने अपने परिवार का पूरा ख्याल रखा  फिर पाँचों दोस्तों ने शादी कर ली और अपना  घर -संसार भी बसा लिया ।

       समय का चक चलता गया फिर शुरू हुई भागम-भाग की जिंदगी,  पैसे कमाने की होड़,  चौबीसों घंटे उधरपूर्ति की खोज।  काॅम्पीटीशन से भरी जिंदगी ।

      बाप को बेटे की परवाह नहीं, बेटे को बाप की ।

न पत्नी को पति के लिए समर्पण न पति को पत्नी की परवरिश की चिंता, सभी को फ़िक्र अपने कैरियर बनाने की थी । लेकिन यह बात प्राकृतिक रूप से तय है कि नदी में कितनी भी तेज धारा हो एक न एक दिन उसे भी शान्त होना पड़ता है । सागर में जाकर अपनी तेज रवानी को छोड़कर सागर में शिथिल और शान्त हो जाना रहता है फिर इंसानों को क्यों नहीं!!!



            इस तरह उन लोगों में भी शिथिलता आई  उम्र लगभग  50 वर्ष को पार करने लगी । अब उनके बच्चे जवान होने लगे ।

              कोरबा शहर ऐसा शहर है जहाँ पूरे भारतवर्ष के लोग कुछ न कुछ संख्या में रहते हैं।  यह अलग बात है कि किसी का किसी के घर आना जाना नहीं रहता ।

          मगर दोस्ती का संस्कार ऐसा होता है कि वह आत्मा में बिंध गया रहता है,  वह  ऐसी चिंगारी होती है जो जरा सी भी हवा देने से धधक उठती है। 

    इसी तरह की चिंगारी उन सभी के बीच थी जो  इस पड़ाव में आकर फिर से ज्वलंत हो गई।  उनकी जिंदगी में अनेकों उतार-चढ़ाव आए लेकिन दोस्ती बरकरार रही ।

        अब फिर उसी स्कूल के स्टेडियम की तरह शहर के सामुदायिक भवन में घंटो हँस हँस बातें करते, कैरम, शतरंज आदि खेला करते ।

      दोस्ती शब्द भले ही कहने-सुननेमें सहज लगे परन्तु इस आत्मीय रिश्ते की गहराई पग-पग में किस तरह प्रतिकूल परिस्थितियों में संबल प्रदान करती है संभालती है; यह वही समझ सकता है जिसके पास अच्छा दोस्त है। 

           अतः हमें चाहिए कि दोस्ती-यारी के  इस रिश्ते को बना कर रखें और संगठित समाज, शहर , राज्य फिर  संगठित राष्ट्र का निर्माण करें। 

#दोस्ती_यारी

               ।।इति।।

                -गोमती सिंह

               कोरबा, छत्तीसगढ़

  स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित  

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