दोषी – सुधा शर्मा

आज चौपाल पर मजमा लगा हुआ था ।

    सब लोग मिलकर नन्दा को भला बुरा कह रहे थे। कोई एहसान फरामोश कह रहा , कोई कृतघ्न , कोई लालची ।

        एक स्वर मे सब उसको गाँव से निकालने या पुलिस के हवाले करने की सिफारिश कर रहे थे ।

 आखिर उसने अपराध ही ऐसा किया था ।

          गोदी में बच्ची को छोड़ मजदूर पति एक एक्सीडेंट में मारा गया था ,पत्नी नन्दा का न कोई मायके में न कोई ससुराल में जो उसका सहारा बनता।

                भूखे पेट  कब तक शोक मनाती।छोटी बच्ची को लेकर मजदूरी करने पति के मालिक मोहन बाबू  के यहाँ पहुँच गई ।उस पर तरस खा कर उन्होंने उन दोनों की देख भाल की जिम्मेदारी ले ली और उसे घर भेज दिया।उनका भी कोई नहीं था।

         बरसों हो गये तब से वह उनकी हो कर रह गई।

       आज सुबह उसके घर के दरवाजे पर गंडासे से जगह जगह चोट खाई उनकी लाश पडी थी और सारा इल्जाम नन्दा पर आ रहा था ।

         नन्दा बिना अपनी सफाई में कुछ कहे चुपचाप बैठी थी , क्षोभ से होंठ कांप रहे थे उसके।




मुखिया के किसी सवाल का कोई जवाब नहीं दे रही थी ।

    हार कर मुखिया ने कहा ,” फिर ठीक है तुम्हें पुलिस के हवाले कर देता हूँ फाँसी हो जायेगी ।”

              वह खामोश थी ।

तभी उसकी बेटी तेजी से बाहर आकर बोली ,” माँ ने कुछ  न किया मैने मारा है उसे ।”

         अब नन्दा ने मुँह खोला,” नहीं साहब , इसने कुछ  न किया मैने मारा है ।”

         अब मुखिया दुविधा में पड़ गये बोले ,” जो कुछ सच है कह दो , विश्वास रखो किसी को कुछ न होने दूँगा ।”

     अब नन्दा ने कहा,” सारी उम्र उसके नाम कर दी मैने और उसने अपनी बेटी जैसी मेरी बेटी  को गलत निगाह से ,,,,,,,,

मेरे इस कृत्य इस विरोध के बदले फाँसी की सजा मिले तो भी कोई बात नहीं ।”

सब लोग अचम्भित थे  

मुखिया ने कहा ,” तुम जाओ , मै सब सँभाल लूँगा।तुम पर आँच नहीं आने दूँगा।” 

  सब ने एक स्वर में सहमति जताई। सब की निगाह में मोहन बाबू के प्रति घृणा उपज गई थी।

सुधा शर्मा 

मौलिक स्वरचित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!