रक्षाबन्धन के त्योहार को 2 ही दिन बचे थे। अनिता कुछ गुमसुम सी , कुछ उदास और सोच में डूबी थी।कहने को तो वो घर के काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी ।क्योंकि उसे उसके बाद बाजार जो जाना था अपने भाईयों के लिए राखियां लेने। अब तो भाभियों को भी लुम्बा राखी बांधने का फैशन हो गया था।वह ढूंढ ढूंढ के सुंदर सुंदर राखियां लाती। दोनो भाई भाभियाँ भतीजे सब के लिए।
लेकिन अब कुछ समय से वो राखियां लेने तो जाती थी।लेकिन बुझे बुझे मन से। लगता था जैसे वो जोश, वो उत्साह जो बहुत सालों तक था वो अब कहीं खो गया था।
काम करते करते वो जरा सुस्ताने के लिए बैठ गयी।
जैसे ही उसने आंख बंद करके थोड़ा आराम करना चाहा।उसकी दिमाग मे अतीत की यादें घूमने लगी। वो अभी शायद आठवी कक्षा में पढ़ती थी ये तब की बात है।उसके मायके का घर काफी बड़ा था। तो उन्होंने ऊपर का हिस्सा किराये पर दे रखा था। वहां कुछ दिन पहले ही एक नवविवाहित जोड़ा रहने आये थे। सुमित भईया और उनकी पत्नी निशा।
वो रक्षा बंधन का दिन था अनिता के दोनो भाई नहा धोकर राखी बंधवाने का इंतजार कर रहे थे। अनिता भी तैयार होकर राखी का थाल सजा कर आ गयी दोनो भाई बैठ गए। अनिता से एक भाई बड़ा था और एक छोटा। वो पहले बड़े भाई को ही राखी बांधती थी। मम्मी पापा भी साथ ही बैठे थे। अचानक से अनिता का ध्यान ऊपर गया तो उसने देखा कि वहां सुमित भईया खड़े थे और अनिता को अपने भाईयों को राखी बांधते देख कर रो रहे थे।
अनिता ने मम्मी को बोला…”मम्मी देखो ऊपर… सुमित भईया रो रहे हैं।” मम्मी ने उसी समय सुमित को नीचे बुलाया साथ मे निशा को भी। उसको पूछा ,” रो क्यों रहे हो आज तो इतना बड़ा त्योहार है ।”तो निशा ने बताया,”आंटी जी इनकी बहन बहुत दूर दूसरे शहर में रहती है और वो इनसे किसी बात से रूठी हुई है।इसलिए उसने इसबार राखी भी नही भेजी।इसीलिए उदास हो रहे हैं।”
मम्मी ने उसी समय अनिता को बोला,”चल बेटा पहली राखी अपने सुमित भईया को बांध,फिर बाद में बाकी दोनो भाईयों को।
सुमित तो क्या हुआ अगर तुम्हारी एक बहन दूर है तो तुम्हारी दूसरी बहन है ना यहां पर” और उस दिन के बाद अनिता हमेशां तीनो भाईयों के लिए राखियां लाती।उसे कभी लगा ही नही कि उसके दो भाई हैं। मम्मी पापा को भी एक और बेटा मिल गया। अनिता की शादी भी हो गयी और परिवार के सभी कामों में उन्होंने सुमित भईया को अपने बड़े बेटे की तरह मान दिया।
सुमित ने भी उनको अपना परिवार मान कर हमेशां हर जगह अपना सहयोग किया।अनिता के ससुराल वालों को भी पता था कि सुमित उसका मुँह बोला भाई है लेकिन सगे से भी बढ़कर है। शादी के बाद भी वो जो भी समान लाती तीनो का एक जैसा लाती। सुमित भईया अपने घर भी शिफ्ट हो गए तब भी वो पहली राखी उनको बांधती फिर बाकी दोनो को।
अनिता की शादी के बाद भी नो दस साल तक सब सही चलता रहा। फिर एक बार अनिता की तबियत बहुत ज्यादा खराब थी।डॉक्टर ने आराम करने को बोला था।दो ही दिन में राखी का त्योहार था तो मम्मी ने बोला , “कोई बात नही तुम परेशान न होना इस बार तेरे भाई तेरे घर राखी बंधवाने आ जाएंगे।”
अनिता ने एक दिन पहले तीनो भाईयों को फोन करके बता दिया कि इस बार वो आ नही सकती इसलिए आप आ जाना।
राखी वाले दिन अनिता ने हमेशां की तरह अपने पति से तीनों के लिए मिठाई और गिफ्ट मंगा के रख लिए। उसके दोनो भाई तो समय पे आ गए। तब उसने सुमित भईया को फोन किया तो उन्होंने बोला कि अभी वो आफिस में है तो थोड़ी देर तक आएंगे। तो अनिता ने बाकी दोनो भाईयों को राखी का शगुन कर दिया। फिर उसने सारा दिन सुमित भईया का इंतजार किया।सुबह से शाम हुई और शाम से रात।उसने 2..3 बार फिर फोन किया तो उन्होने कुछ नही बताया कि वो आ रहे कि नही बस कोई न कोई बहाना बनाते रहे। उसने रात तक उनकी राह देखी पति ने भी पूछा तो उसने बोला कि कोई जरूरी काम पड़ गया होगा। अगले दिन भी इंतजार करती रही कि शायद आ जाएं पर वो नही आये।
उसके बाद अगली बार रक्षा बंधन पर न तो अनिता को उनका फोन आया ना ही अनिता ने किया।
हालांकि रात तक और फिर अगले दिन उसने फिर से उनका इंतजार किया लेकिन वो नही आये।ऐसा नही कि वो शहर में नही थे। अनिता को वो एक दो बार कहीं मिले भी लेकिन राखी के बारे में दोनो ने ही जिक्र नही किया।
और आज इस बात को इस बार पांच साल होने वाले हैं।
वो हर बार उनकी राह देखती है।लेकिन मन ही मन ये भी सोचती है कि क्या सच मे अपने सगे ही अपने होते हैं।क्या वो ये रिश्ता जबरदस्ती से निभा रहे थे। अचानक से ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने एक दम से इस पवित्र रिश्ते की डोर को तोड़ दिया।
अब हर साल जब भी रक्षा बंधन आता है अनिता बहुत उदास होती है अपने तीसरे भाई को याद करके ..जिसको उसने दिल से अपना बड़ा भाई माना था।और हमेशा यही सोचती है कि उनको भी शायद इस दिन मेरी याद तो आती होगी।
स्वरचित एवं मौलिक
रीटा मक्कड़
Kahani adhuri hai …
Jo bhi kahani aap post karte hai use pura hi bheje.