डूबते को तिनके का सहारा – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

तिनके का सहारा भी किसी के जीवन को बचा सकता है,किसी के चेहरे पर मुस्कान और खुशी ला सकता है।विधवा रमिया की काया ने जिन्दगी भर काँटों की चुभन का ही अनुभव किया।भरी जवानी में दो छोटे बच्चों के साथ विधवा हो गई।

 उसके लिए अब बच्चों की खुशी और मुस्कान ही  उसकी जिन्दगी थी,परन्तु आज उस पर भी मानो ग्रहण लग गया था।आज रातभर बेटे को गोद में लिए  हुए  रमिया बेबसी के आँसू रो रही थी।रातभर बेटे को उल्टी-दस्त होती रही।

उसने अपने अनुभव से घरेलू दवाइयाँ दी,परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। बेटे को डायरिया हो चुका था। सुबह होते-होते उसके बेटे के शरीर का पानी निचुड़ चुका था।

उसका बेटा सूखे पत्तों की भाँति कुम्हला चुका था।बेटे की ओर देखकर रमिया सोचती है -” हाथ में पैसे नहीं हैं,मालकिन भी शहर से बाहर है।किसके आगे हाथ फैलाऊँ?”

एकाएक रमिया के दिमाग में मालकिन की पड़ोसन नीराजी का ख्याल आया,परन्तु फिर अपने सिर झटकते हुए उसने सोचा -“नीरा मालकिन मुझे पैसे क्यों देंगी।मैं तो उनका छोटा-सा काम भी नहीं कर देती हूँ,उसपर से उस दिन कूड़े को लेकर मैंने उनसे कितना झगड़ा किया था!”

बेटे की बिगड़ती हालत देखकर मान-अपमान की बात छोड़कर रमिया अपनी दस वर्षीया बेटी को भाई का ख्याल रखने कहकर

तेजी से नीराजी के घर की ओर चल पड़ी।उसकी बदहवास हालत और उसके बेटे की स्थिति जानकर नीराजी ने तुरंत उसे दस हजार देते हुए कहा -” रमिया!जल्दी से बेटे को डाॅक्टर के पास ले जाकर इलाज कराओ।”

रमिया हाथ जोड़कर कहती है -” मालकिन!आपका यह उपकार मैं जिन्दगी भर नहीं भूलुँगी!”

नीरा जी -“रमिया!जल्दी जा।बातें बाद में।”

 बेटे के ठीक  होने के बाद  रमिया उन्हें  धन्यवाद देने आई है।नीराजी की छोटी-सी मदद से रमिया के बेटे की जान बच गई। रमिया के जाने के बाद  नीराजी मन-ही-मन सोचती हैं -“दूसरों को सहायता और सुख पहुँचाकर अपने हृदय को अनिर्वचनीय शांति और सुकून मिलता है!”

सचमुच इसी को कहा गया है कि ‘डूबते के लिए  तिनके का सहारा ‘ही काफी होता है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!