ये क्या बात हुई मम्मी कि भैया कुछ भी करे आप उसे तो रोकतीं नहीं किन्तु मुझे आज सहेली के जन्मदिन की पार्टी में जरा देर क्या हो गई इतना सुना रही हो । मैं तो ज्यादा कहीं आती जाती भी नहीं हूं जबकि भैया न तो ढंग से पढ़ते हैं और देर रात गए तक दोस्तों के साथ घूमते रहते हैं,तब तो आप और पापा कुछ नहीं बोलते हर समय मुझे ही टोकते रहते हैं। मैं भी बड़ी हो गई हूं अपना भला बुरा सोच सकती हूं।
बड़ी हो गई है तभी तो चिंता है कि कुछ ग़लत न हो जाए जिससे घर की इज्जत को बट्टा लग जाए।
वाह मम्मी मेरे साथ गलत होने से तो इज्जत को बट्टा लग जाएगा और भैया जो कर रहे हैं उसका क्या। उससे कोई इज्जत खराब नहीं होगी क्या।
अरे उसे क्या फर्क पड़ेगा वह तो लड़का है।लड़के तो भंवरे की तरह फूलों पर मंडराते रहते हैं, फर्क तो लड़की को पड़ता है यदि बात फैल गई तो कोई शादी करने को भी तैयार नहीं होगा।
और मम्मी लड़के जो भंवरे की तरह फूलों पर मंडराते हैं वो फूल भी तो किसी के घर की इज्जत हैं जैसे आपको अपनी बेटी की इज्जत प्यारी है तो क्या उन बेटीयों की मम्मी को उनकी चिंता नहीं होगी जिन पर आपके ये तथाकथित भंवरे मंडरा रहे हैं।
आपको भैया को ये सब करने से रोकना नहीं चाहिए। क्या ऐसे लड़के की शादी आसानी से हो जाएगी, और यदि हो भी गई तो वह आने वाली लड़की इन आदतों से दुखी नहीं हो जाएगी।आप ही सोचो यदि मेरी शादी किसी ऐसे लड़के से हो जाए तो मैं और आप सुखी रहेंगे। मम्मी जितना लड़कियों कोअनुशासन में रहने की आवश्यकता है उतना ही अनुशासन लड़कों के लिए भी आवश्यक है ताकि भविष्य में उनकी शादी शुदा जिंदगी पर अवसाद के बादल न मंडरायें।
तू तो बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी है।कहां से सीखती है ये बातें।बेटी दो घर की इज्जत होती है उसे मायके व ससुराल दोनों परिवारों का मान बढ़ाना पड़ता है।
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पर मां क्या अकेली लड़की ने ही ठेका ले रखा है इज्जत बचाने का। यदि अपने घर में आने वाली लड़की भैया के व्यवहार से दुखी होगी तो क्या वह अपने बारे में सोचेगी या परिवार की इज्जत के बारे में।
अरे तू इतना मत सोच, शादी होने के बाद पत्नी के आते ही सब सुधर जाते हैं और घर गृहस्थी में रम जाते हैं।
और मम्मी यदि ऐसा नहीं हुआ तो। आने वाली लड़की इंसान है कोई जादूगरनी नहीं कि भैया के ऊपर जादू की छड़ी घुमायेगी और सब ठीक हो जाएगा।आप और पापा वर्षों से जो काम नहीं कर पा रहे हो और आप सोचते हो पत्नी आकर मिनटों में कर लेगी। भैया के व्यवहार से क्या उसका जीवन नर्क नहीं बन जाएगा। लड़कियों की तरह क्या लड़के दो परिवार की इज्जत नहीं होते। फिर लड़कियों से ही ये अपेक्षा क्यों।
आपका बेटा जिन लड़कियों के जीवन के साथ खेल रहा है उन्हें धोखा दे रहा है क्या उन लड़कियों के घर की इज्जत नहीं है। प्रेम करना बुरी बात नहीं है एक से कर लें और उसे पूरे जीवन निभायें किन्तु यहां तो प्यार का खेल खेला जा रहा है, कितनों से वादे किए जा रहे हैं और सब झूठ। क्या शादी के बाद भैया इस आदत को छोड़ पाएंगे कदापि नहीं, केवल भाभी को ही सिर पटक -पटक कर रोते अपनी जिंदगी गुजारनी होगी और सिर से ऊपर पानी निकलने पर तलाक की नौबत आएगी तब फिर उन्हें ही दोष दिया जाएगा
उनपर तानों, लांछनों की बरसात होगी। उन्हें ही इस सबके लिए जिम्मेदार समझा जाएगा। उनसे ही कहा जाएगा कि पति को बांध कर नहीं रख पाई और तलाक होने पर चरित्रहीन करार देकर बदनाम किया जाएगा और भैया को बेकसूर ठहराया जाएगा। उन्हें ही घर की इज्जत उछालने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। मायके वाले भी उनका साथ नहीं देंगे क्योंकि परित्यक्ता लड़की घर में रहेगी
तो दूसरे छोटे भाई बहनों की शादी में रुकावट पड़ेगी सो दूसरे बच्चों के भविष्य का सोच मम्मी-पापा भी अपनी बेटी को सहारा देने के बजाए कोसेंगे कि तलाक क्यों लिया,सह लेती कुछ दिन बाद में सब ठीक हो जाता और एक हंसती मुस्कुराती लड़की का जीवन कटी पतंग की तरह हो जाता है जैसे कटी पतंग कहां गिरे भरोसा नहीं होता वैसे ही परित्यक्ता का जीवन कहां किस ओर जाए।
मायके और ससुराल के दरवाजे बन्द हो जाते हैं। अकेली जवान महिला को समाज में छिपे सफेदपोश भेड़िए सम्मान से जीने नहीं देते।जो दो घर की इज्जत थी वही दोनों घरों से बेघर हो जाती है, अकेली या अपने बच्चों के साथ भटकने को।सोचो मम्मी यदि यह मेरे साथ हो तो आप पर क्या बीतेगी तब भी क्या आप यही कहेंगी कि लड़के तो भंवरों की तरह मंडराते हैं।
मां बेटी का यह वार्तालाप पापा सुधीर जी सुन रहे थे कहने को तो पेपर उनके हाथ में था पर उनका पूरा ध्यान बातें सुनने में था।
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पापा बोले नुपुर सही कह रही है।रोमा हमारा बेटा हद से आगे बढ़ रहा है।ये हमारे ही लाड़ प्यार का नतीजा है कि उसे कभी रोका टोका ही नहीं। अनुशासन में रहना जितना एक लड़की के लिए जरूरी है लड़के के लिए भी उतना ही आवश्यक है। हमें बचपन से ही लड़कों को अनुशासन में रहना, महिलाओं की इज्जत करना सीखाना चाहिए तभी तो वह बड़ा होकर एक अच्छा बेटा, भाई, पति और पिता
बनेगा । बेटे के प्यार में हम अंधे हो उसे स्वच्छंद छोड़ देते हैं लड़का है क्या फर्क पड़ता है किन्तु फर्क पड़ता है उस लड़की को जो उसकी पत्नी बन कर आती है हजारों सपने आंखों में संजोए किन्तु वे सब एक क्षण में ही बिखर जाते हैं जब उसका पति नशे में धुत सुहागरात को कमरे में प्रवेश कर उस लड़की बनाम पत्नी के साथ अमानुषिक व्यवहार करता है। फिर उस लड़की से ही उम्मीद की जाती है
कि वह गल्त व्यवहार को जिंदगी भर ढोए, पति को सुधारने का प्रयास करें और जब वह असफल हो और उसकी सहन शक्ति जबाब दे जाए और यदि वह विद्रोह करने पर उतारू हो जाए तो दोषारोपण भी उसी बेटी पर करते हैं कारण हमारे समाज में बेटी से ही सारी अपेक्षाएं रखी जाती हैं, घर की इज्जत उसके हाथ में है।
चाहे उसकी भावनाएं प्रतिदिन तार-तार होती हों, उसकी इच्छाओं को रोज कुचला जाता हो,चाहे उसके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा हो कि आगे क्या होगा। फिर भी दोनों ही परिवार मायके और ससुराल वाले बेटी से ही अपेक्षा करते हैं कि सब सहन कर दोनों घर की इज्जत बनाए रखे।वह हाड़ मांस से बनी इंसान है कितना सहन करेगी और उससे ही अपेक्षा क्यों बेटे से क्यों नहीं।घर की इज्जत बनाए रखने के लिए
भले ही उसका जीवन धुनी की तरह सुलगता रहे। क्या उसे सुखी जीवन जीने का हक नहीं है। मानव जीवन एक बार मिलता है उसके भी कुछ सपने होते हैं, अरमान होते हैं उनका क्या। यदि वह परेशान हो तलाक का निर्णय ले ,तो उसी को चरित्रहीन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।जो घर की इज्जत थी उसे ही बेइज्जत करने में जरा भी समय नहीं लगता।
नुपुर बोली हां मम्मी केवल बेटीयां ही नहीं बेटे भी दो घर की इज्जत होते हैं, उन्हें भी वह सब सिखाने की जरूरत है जो बेटीयों को सिखाया जाता है।
आज मम्मी अपनी सोच पर लज्जित थीं और सोच रहीं थीं कि काश उन्होंने बेटे को भी अनुशासन में रखा होता उसकी गलतीयों पर पर्दा न डालकर उसे सही राह दिखाई होती तो आज यह दिन न देखना पड़ता।
शिव कुमारी शुक्ला
22-1-25
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द*** घर की इज्जत