बेटा वो …… ,,
आफिस के लिए जल्दी में निकलते हुए अपने बेटे अविनाश को अरविंद जी ने आज हिचकिचाते हुए टोक लिया ।
” हां पापा, बोलिए ?? कुछ चाहिए क्या ? ,,
” वो….. मेरे जूते थोड़े फट गए हैं ।,,
” अरे पापा, तो ने ले आओ..… मानसी……
अपनी पत्नी को आवाज लगाते हुए अविनाश बोला, ” जरा देख लेना पापा को क्या चाहिए ….. तुम ला देना अभी मुझे देर हो रही है …. ,, कहकर अविनाश जल्दी में घर से निकल गया ।
अविनाश के घर से निकलते ही मानसी ने कड़ी नजरों से अपने ससुर की तरफ देखा ,। ” आपको इतना भी नहीं पता कि घर से बाहर जाते हुए किसी को टोकना नहीं चाहिए ? क्या हो गया है आपके जूतों को! सारा दिन तो घर में पड़े रहते हैं फिर भी ने जूते चाहिए … बेटा बेचारा सारा दिन अपने हाड पेलता रहता है और इधर इनकी फिजूलखर्ची … ,,
अरविंद जी बिल्कुल छोटे बच्चे की तरह अपनी बहू की डांट खाकर चुप रह गए ।
इतना बखेड़ा होने के बाद भी अरविंद जी के ने जूते तो नहीं आए और ना ही अविनाश ने इस ओर ध्यान दिया क्योंकि उसे अपनी पत्नी पर अंधविश्वास था कि वो उसके पिता का बहुत ध्यान रखती है।
ऐसा हो भी क्यों ना क्योंकि जब तक अविनाश घर में रहता था मानसी अपने ससुर के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करती थी। अविनाश को दिखा दिखाकर अपने ससुर के लिए चाय नाश्ता बनाती थी। इसी विश्वास में आकर ही घर की सारी बागडोर अविनाश ने अपनी पत्नी के हाथ में सौंप रखी थी। उसके खुद के पास तो इतना समय भी नहीं था कि दस मिनट अपने पिता के पास बैठकर उनसे बात कर ले …. । वो मानसी के दोहरे चेहरे से अनभिज्ञ ही था ।
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रात को अविनाश के घर आने से पहले ही मानसी अपने ससुर को खाना देकर उनके कमरे में भेज देती थी। कभी अविनाश पूछता भी कि “पापा ने खाना खा लिया” तो मानसी कहती , ” हां हां…. पापा को खाने में देर हो जाए तो फिर अच्छे से निंद नहीं आती इसलिए वो जल्दी ही खाना खा लेते हैं .…. फिर उन्हें दवाईयां भी तो देनी होती हैं ना ….. ,, अविनाश पत्नी के मीठे बोलों के पीछे छिपी मनसा को कभी समझ ही नहीं पाया ।
एक दिन अविनाश के बाॅस के यहां कोई फंक्शन था तो अविनाश को जल्दी छुट्टी मिल गई । उसने सोचा चलो आज मानसी और पापा को सरप्राइज देता हूं ….. आज उन्हें लेकर कहीं बाहर घूमने चलता हूं ….. वो मानसी को बिना कुछ बताए गए घर आ गया …. मानसी की तेज आवाज सुनकर उसके पैर ठिठक गए । मानसी जोर जोर से चिल्ला रही थी ,
” आपको कुछ सुनाई नहीं देता क्या ?? जो बना है जल्दी से खा लो …. बेटे के आगे ज्यादा नौटंकी दिखाने की जरूरत नहीं है ….. कभी रोटी कड़ी है, तो कभी सब्जी में मिर्च है …. ये कोई होटल नहीं है घर है … खाना बनाने में मेहनत लगती है । ,,
पत्नी के बोल सुनकर अविनाश को बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन उसने उस वक्त अपने गुस्से को पी लिया । खिड़की से अंदर झांककर देखा .….. अरविंद जी की प्लेट में दो सूखी रोटी और एक कटोरी में सब्जी रखी थी। अरविंद जी बार बार अपनी आंखें पोंछ रहे थे। शायद उन्हें मिर्च लग रही थी जिस कारण उन्होंने मानसी से कह दिया कि सब्जी में बहुत मिर्च है …. थोड़ी देर बाहर ही टहलने के बाद अविनाश घर वापस आया । देखा तो पापा अपनी थाली उठाकर रसोई में रख रहे थे । अचानक से अविनाश को देखकर मानसी सकपका गई,” अरे, आज आप इतनी जल्दी आ गए !! ,,
” हां, वो आफिस में काम नहीं था तो आ गया … बहुत भूख लगी है जल्दी से खाना लगा दो …. , पापा आपने खाना खा लिया ?? ,, अपने पिता की ओर देखते हुए अविनाश ने पूछा ।
अरविंद जी का मुंह थोड़ी देर पहले बहू की झिड़की सुनकर उतरा हुआ था । वो कुछ बोलते उससे पहले ही मानसी बोल पड़ी, ” हां हां, पापाजी ने तो अभी खाना खाया है …. मैं उनके लिए बस दूध बना रही थी। पापाजी , आप कमरे में जाईये मैं दूध लेकर आती हूं ….. और आप हाथ धोकर बैठिए मैं खाना लगाती हूं ..… ,, कहकर मानसी फटाफट अविनाश की थाली लगाने लगी।
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दो सब्जियां, सलाद , अचार और गर्म गर्म फुल्के रखकर मानसी ने अविनाश की थाली लगा दी। अविनाश ने एक प्लेट में दो रोटी और थोड़ी सी सब्जी निकाली और खाने लगा।
मानसी अचकचाते हुए बोली , ” ये आप कैसे खाना खा रहे हैं ! अरे , इतना कुछ लाई हूं तो अच्छे से खाते क्यों नहीं ?? ,,
” मैं तो देख रहा था कि मेरे पापा रोज कैसा खाना खाते हैं जो तुम उन्हें मेरे आने से पहले बड़े प्यार से खिला रही थी । ,,
अविनाश की बात सुनकर मानसी को काटो तो खून नहीं , ” जी….. जी… वो … ,, मानसी हकलाने लगी। अविनाश लाल आंखों से मानसी को देख रहा था।
” मैंने तुमपे विश्वास किया और तुम मेरे पापा के साथ ऐसा व्यवहार करती हो!! अरे आज मैं जो कुछ भी हूं उन्हीं की बदौलत हूं । तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे पापा से ऐसे बात करने की ? मैं तुम्हें पापा के सामने बेइज्ज नहीं करना चाहता इसलिए तुम्हें समझा रहा हूं …. आज के बाद पापा रोज मेरे साथ खाना खाएंगे । दरअसल गलती तो मेरी ही है जो मैं अपने पापा को थोड़ा सा समय भी नहीं दे पाता हूं…. ।,,
मानसी डर से कांप रही थी क्योंकि आज उसका दोहरा चेहरा अविनाश के सामने आ चुका था।
अविनाश उसी समय अपने पापा के कमरे में गया । उनका हाथ अपने हाथों में लेकर बोला ,” पापा, मुझे माफ कर दीजिए जो मैं आपकी तकलीफ़ समझ नहीं पाया लेकिन आज के बाद आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा … आपको किसी भी चीज की जरूरत हो या कोई भी तकलीफ़ हो तो मुझे बेझिझक कहिएगा। और हां आज के बाद दोनों बाप बेटा एक साथ खाना खाएंगे …. ,,
अरविंद जी भीगी पलकों से अपने बेटे के सर पर हाथ फेर रहे थे ।
मानसी अपनी गर्दन झुकाए अपनी करनी पर पछता रही थी और सोच रही थी कि कैसे अपने पति की नजरों में वो फिर से उठ पाएगी …
अप्रकाशित
मौलिक
स्वरचित
#दोहरे_चेहरे
सविता गोयल
Yeh hai Aaj ki sachhai .Aaj ke lachar maa baap ki.