दोनों की जोडी जंच रही थी। एक दुसरे से मेल खाते परिधान, हाथों में हाथ डाल, साथ-साथ घुमते, मुस्कुराते रमा और रोमेश। पार्टी की रौनक बढ़ा रहे थे। रमा सी अनुपम रमणी रोमेश की जीवन संगिनी थी। रोमेश भी लंबा चौड़ा गबरू जवान था। वे दोनों सबके आकर्षण का केंद्र थे। धीरे-धीरे समां बंधने लगा। राघव और सुहानी, अपनी लाडली बेटी रूचि का पांचवा जन्मदिन धुमधाम से मना रहे थे। बच्चों के साथ सब बच्चे बने थे। मस्ती की पाठशाला में मासूम खुशियां सहेज रहे थे।
रमा को देखते ही रोमेश का मित्र इंद्रेश उनके पास आया और धिटाई दिखाते रमा से डान्स फ्लोर पर चलने का अनुरोध करने लगा। रमा और इंद्रेश सहपाठी थे। रमा सहज ही उसके साथ थिरकने लगी। गाने की मधुर धुन, मादक आसपास, सुंदर समां। वे दोनों मस्त मगन हो नाच रहे थे। भूल गये कि दोनों शादीशुदा हैं।
रोमेश मन ही मन झल्ला रहा था। लेकिन क्या करता। वह खुद आधुनिक सोसायटी में शिरकत करना पसंद करता था। कमसिन ललनाओं को ललचायी नजर से घूरता रहता। रमा सब चुपचाप देखती, और अनदेखा करती। लेकिन आज रोमेश उसे गैर मर्द के साथ थिरकते देख आगबबूला हो गया।
जल्दबाजी का बहाना बनाकर वह रमा को बाहर ले आया।
बाहर आते ही वह बरस पडा।
” क्या तुम अपने आप को विश्व सुंदरी समझती हो?”
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” शर्म नहीं आती गैर मर्द की बाहों में बाहें डाल झूमते हुए?”
” अब कभी नहीं जाओगी पार्टी में। मेरे साथ भी नहीं।”
उसने भी गुस्से से तमतमाते कह दिया,
” खुद बेशर्म हो, और मुझ पर आरोप लगा रहे हो? सबके सामने तो जी हुजूरी कर रहे थे। प्रेम का नाटक कर रहे थे।”
” मुझे नहीं रहना ऐसे दोगले इंसान के साथ। दिखावे की जिंदगी से ऊब गयी हूं मैं।”
” तुम्हारे साथ नहीं रहना है मुझे।”
” सोच लो, बहुत पछताओगी।”
” कोई नहीं होगा तुम्हारा हाथ थामनेवाला।”
” जो होगा, देखा जायेगा। इतना तो हूनर और जज्बा हैं ही। जी लूंगी अपने हिसाब से।”
” देखो, माता पिता एक दो दिन नखरे उठायेंगे। वो खुद पराश्रित हैं।”
” ज्यादा नखरें मत करो। चलो, घर चलो। गुडिया जग गयी होगी।”
” जी नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद श्रीमान जी।”
बिटिया को गोदी मं उठा, अपना बॅग ले चल पडी वह अनजाने सफर पर।
आत्मविश्वास के साथ…अपने तरीके से अपना जीवन जीने के लिए।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र
# दिखावे की जिंदगी