दो हंसों का जोड़ा – डॉ. पारुल अग्रवाल  : Moral stories in hindi

वैभव ने यूपीएससी  की परीक्षा उत्तीर्ण करके आई.पी.एस में अच्छी रैंक प्राप्त की थी। आज उसकी ट्रेनिंग समाप्त हो गई थी।उसका सरकारी नौकरी को लेकर जो स्वपन था वो आज पूर्ण हो गया था। इस नौकरी को प्राप्त करने के पीछे उसको अपनी ज़िंदगी से जुड़े बहुत सारे रहस्य जानने थे।

जिसका पहला पड़ाव उसने ट्रेनिंग के पश्चात प्रयाग शहर में पहली पोस्टिंग के द्वारा तय कर लिया था। प्रयाग जो संगम और कुंभ नगरी के रूप में तो प्रसिद्ध है पर साथ ही साथ उसका ननिहाल भी था। जिसके बारे में उससे बचपन से छुपाया गया था। वो तो एक बार जब उसके हॉस्टल की गर्मियों की छुट्टियां थी और वो कुछ दूंढते हुए घर के स्टोर में चला गया था

जिसका अक्सर ताला लगा रहता था उस दिन पता नहीं कैसे वो खुला पड़ा था। उसके कदम खुदबखुद वहां की तरफ बढ़ गए।तभी वहां उत्सुकतावश एक सुंदर से बक्से पर उसकी निगाह चली गई थीl वो अपनेआप को बक्से को खोलने से नहीं रोक पाया था। जैसे ही उसने बक्सा खोला तो उसमें एक सुंदर सी स्त्री की तस्वीर थी।

उसे नहीं पता था वो किसकी तस्वीर है क्योंकि अपनी आंखें खोलते ही उसने अपने आस पास सिर्फ दादा दादी, बुआ और पापा को ही देखा था। जब भी उसने घर पर अपनी मां के विषय में पूछा तो उसको यही सुनने को मिला कि उसकी मां उसके पैदा होते ही उसको छोड़ कर चली गई थी। नन्हा सा बिन मां का बच्चा जब अपने साथ के बच्चों को उनकी मां के साथ देखता तो मन ही मन अपनी मां की तस्वीर बनाने लगता पर तस्वीर बनाने और असलियत में फर्क है। 

अभी वो उस तस्वीर को देख ही रहा था कि उसे किसी के आने की आहट हुई। वैभव किसी के कदमों की आहट सुनकर तस्वीर वहीं छोड़ कर परदे की ओट में हो गया।वो कदमों की आहट बुआ की थी। तस्वीर को बाहर देखकर बुआ ने चिल्लाकर घर की कामवाली कमली को बुलाया और कहा कि इस घटिया औरत की तस्वीर यहां क्या कर रही है?

अगर वैभव को पता चल गया कि ये उसकी मां है तो हमने जो उससे राज़ छिपाया है वो खुलते देर नहीं लगेगी। आगे से ये तस्वीर कभी बाहर दिख भी गई तो तुम्हारी नौकरी जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।अब ये तस्वीर कभी बाहर नहीं दिखानी चाहिए ।

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अपनी नौकरी जाने की बात सुनकर कमली बिल्कुल घबरा गई। वो चुपचाप तस्वीर को अंदर रखने लगी। दोनों में से किसी को नहीं पता था कि वैभव दोनों की बातें पर्दे के पीछे से सुन रहा है। बुआ के वहां से निकलते ही वैभव तुरंत काम वाली कमली के पास आया और उससे अपनी मां के बारे में पूछने लगा तब कमली ने सिर्फ उससे इतना कहा कि ये आपकी मां की तस्वीर है

वो बहुत ही सुंदर और दयालु थी। आपका जन्म होते ही उनको इस घर से निकाल दिया था क्योंकि घर के लोग किसी बात पर उनसे बेहद गुस्सा थे। बस वो इंतज़ार कर रहे थे कि कब तुम्हारा जन्म हो और कब उनको घर से निकाला जाए। वो प्रयाग की रहने वाली थी अब उसको नहीं पता वो कहां पर हैं ? कमली ने ये भी कहा कि वैभव की मां बहुत पढ़ी लिखी और वकालत भी करती थी। 

इतना कहकर कमली चुप हो गई उसने कहा कि इससे ज्यादा ना तो उसको पता है और ना ही वो कुछ कह इससे ज्यादा बता सकती है। 

वैभव का मन उस दिन से बहुत ही विचलित रहने लगा। वो उम्र के उस पड़ाव पर था जहां भावनाओं का संवेग बहुत ही उफान पर था। घर में तो उसे किसी से कुछ पता चलने की कोई उम्मीद नहीं थी। दादी से पूछने की कोशिश भी की तो उन्होंने उसकी मां को बुरा भला कहते हुए चरित्र पर भी लांछन लगाने में कोई कसर ना छोड़ी।

रात को पापा से पूछा तो बस उन्होंने इतना कहा कि शायद ये घर और मैं तेरी मां के लायक नहीं था पर मैं और कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूं। वैभव को समझ आ गया था कि उसके मन में उमड़ रहे सवालों के जवाब शायद उसे खुद ही खोजने होंगे। 

उसने अपने आपको पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया क्योंकि पढ़ाई के द्वारा ही वो अपनेआप को इतना सक्षम कर सकता था कि अपनी मां को ढूंढ सके। आज वो दिन आ गया था। किस्मत से ट्रेनिंग के बाद उसको पहली पोस्टिंग भी प्रयाग में मिली। पुलिस आयुक्त की पदवी के नाते उसके पास अधिकार भी बहुत थे। इस पोस्ट पर रहकर अपनी मां को ढूंढना उसके लिए कोई कठिन कार्य नहीं था।

घर में तो कोई उसको मां का नाम नहीं बताता पर उसके सभी दस्तावेजों पर मां का नाम देवयानी था तो उसी के सहारे उसने मां को खोजने की सोची। कमली की मां की वकालत वाली बात भी उसको याद थी। मां के नाम द्वारा प्रयाग कचहरी में पता लगाने पर उसको उसी नाम की दो तीन महिला वकील पता चली। उन दो तीन महिला वकील के विषय में जानकारी प्राप्त करने के पश्चात उसने जिसकी उम्र में जिसको अपनी मां की उम्र से मिलता जुलता पाया। उनका पता जुटाकर वो रविवार के दिन उनसे मिलने पहुंच गया। 

आज की तकनीकी ने वैसे भी किसी पते पर पहुंचना बहुत आसान कर दिया है। अब वैभव ने अपनी संभावित मां के घर में पहुंचते ही हिचकते हुए घंटी की तरफ हाथ बढ़ाया। घंटी बजते ही घर के नौकर ने दरवाजा खोला। वैभव के आने के प्रयोजन पूछा तो उसने कहा कि कोई केस के सिलसिले में वो देवयानी जी से मिलने आया है। पहले तो नौकर ने कहा कि इसके लिए वो कचहरी में ही उनसे मिले पर वैभव भी ज़िद पर अटक गया।

दोनों की आवाज़ें सुनकर देवयानी ही बाहर आ गई। वैभव को देखकर देवयानी ही धोखा खा गई क्योंकि चेहरे मोहरे में वैभव अपने पिता राघव की प्रतिमूर्ति था। वैसे भी राघव देवयानी का पहला और आखिरी प्यार थे जिनसे परिस्थितिवश उन्हें अलग होना पड़ा था। वैभव के चेहरे ने उसका परिचय खुद दे दिया था।

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वैभव देवयानी को देखते ही चरण स्पर्श किए बिना नहीं रह पाया। देवयानी की आंखों में भी आंसू झलक आए पर वो फिर भी संयंत बनी हुई पूछती हैं कि वो कौन है और यहां क्या करने आया है? तब वैभव कहता है कि आज वो भी उनके पास अपना मुकदमा सुलझाने आया है। आज वो अपनी मां की ममता वापस पाने आया है जिससे वो बचपन से ही वंचित रहा है। 

अब देवयानी अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाई और फूट फूट कर रोने लगी। अब घर के अन्य सदस्य उसके नानाजी,नानीजी, मामा मामी भी बाहर आ गए। उसके मामा ने बाहर आकर सब भांपते हुए वैभव को कहा कि सबकी सलामती इसी में है कि वो वापस चला जाए। वैभव ने कहा कि आज कुछ भी हो जाए वो सब सच जाने बिना यहां से नहीं जायेगा।

वो जानना चाहता है कि ऐसी क्या बात थी जिसकी वजह से उसको एक अनाथ की तरह जीवन बिताना पड़ा। नानाजी वैभव की मनोदशा समझ रहे थे। उन्हें वैसे भी उस पर बहुत प्यार आ रहा था। उन्होंने स्नेह से उसको बैठाते हुए कहा पहले आराम से बैठो फिर बात करते हैं।

मामाजी को प्रयाग का पूड़ी आलू का मनपसंद नाश्ता लाने के लिए कहा और वैभव की मां देवयानी से सारी बातें सच सच वैभव के सामने रखने के लिए कहा। देवयानी ने बताया कि वैभव के पिता राघव और देवयानी का प्रेम विवाह था। दोनों का साथ हंसों के जोड़े की तरह था।दोनों के घरवाले इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे पर दोनों की जिद्द के आगे उन्हें झुकना पड़ा था।

दोनों एक मित्र की शादी के अवसर पर एक दूसरे से टकराए थे। थोड़ी उथल पुथल के बाद सब ठीक ही चल रहा था। देवयानी वकील थी और उनकी वकालत शादी के बाद भी चल रही थी। अचानक से एक बलात्कार से पीड़ित लड़की का केस उनके पास आया। लड़की और उसके परिवार ने जिस पर आरोप लगाया था वो और कोई नहीं बल्कि देवयानी के नंदोई मतलब वैभव के फूफाजी थे। 

देवयानी इस बात पर भरोसा तो नहीं करना चाहती थी पर नंदोई की अय्याशियों से वो परिचित थी। वैसे भी लड़की की निर्दोष आंखे और परिवार वालों की कही बातें नंदोई को दोषी करार कर रही थी। वो लड़की नंदोई की फैक्ट्री में ही काम करती थी। एक दिन उसकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए नंदोई ने अपने आवारा दोस्तों के साथ मिलकर उसकी इज़्ज़त लूट ली थी।

वो लड़की ज़िंदा लाश बन गई थी।सारे सबूत उस लड़की के पक्ष में ही थे पर ननद के ससुराल वाले अपने पैसे के बल पर उस लड़की के परिवार वालों का मुंह बंद करना चाहते थे जिसके लिए वो तैयार नहीं थे। वैसे भी ननद की ससुराल की पहुंच ऊपर तक थी कि कोई भी उसका केस लड़ने को तैयार नहीं था।

ऐसे में देवयानी ने सच का साथ देने का फैसला किया। जब देवयानी की ससुराल में ये पता चला तो कोहराम ही मच गया। सबने देवयानी को केस से दूर रहने की सलाह दी। उस समय देवयानी गर्भवती थी। देवयानी से बच्चे और उस केस में से एक को चुनने के लिए कहा गया।

राघव ने भी उसको अपने प्यार और परिवार की इज़्ज़त का वास्ता दिया पर देवयानी ने ये कहकर कि अगर वो सच का साथ नहीं देगी तब वैसे भी अपनी संतान को क्या शिक्षा देगी और रही बात प्यार की तो ऐसे प्यार और परिवार का क्या फायदा जहां किसी स्त्री के सम्मान से ज्यादा पैसे और गलत कामों को सहयोग दिया जाता हो।

इस तरह देवयानी को बोला गया कि बच्चे के पैदा होते ही उसे ससुराल छोड़नी होगी। ऐसे समय में राघव ने भी मौन रहकर अपने परिवार का ही साथ दिया। राघव किसी भी हालत में अपने परिवार की साख बचाना चाहता था। उसने देवयानी को अपना फैसला बदलने के लिए कहा पर देवयानी ने कहा कि वो इस तरह रीढ़ विहिन होकर नहीं रह सकती। उसके बाद देवयानी ने मुकदमा लड़ा और परिणाम लड़की के पक्ष में आया।

वैभव के फूफाजी को सज़ा भी हुई। बुआ के ससुराल वालों ने राघव के घरवालों को भी बहुत खरी खोटी सुनाई। इन सबके बाद वैभव के पैदा होते ही देवयानी को भी अपने नवजात शिशु को छोड़कर मायके आना पड़ा क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करती तो वैभव के लिए भी खतरा हो सकता था।

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थोड़े समय के बाद वैभव के फूफा जी की जेल में ही दिल के दौरे से मृत्यु भी हो गई पर बुआ और दादी की कड़वाहट देवयानी के लिए कम नहीं हुई थी और तो और बुआ की ससुराल वाले भी काफ़ी दबंग लोग थे अगर उस समय वो वैभव को नहीं छोड़ कर नहीं आती तो वो लोग वैभव के जीवन से भी खिलवाड़ कर सकते थे। राघव तो वैसे भी ऐसे मौके पर कायर ही साबित हुआ था। 

आज भी वैभव को सामने देखकर देवयानी को अपने लिए नहीं पर उसके लिए चिंता का भाव था। देवयानी की मनोदशा समझते हुए वैभव ने कहा कि अब उन लोगों को किसी से डरने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब उसका पुलिस आयुक्त का पद इन सब हालात का सामना करने में सक्षम है।

वैभव के इतने बड़े पद पर चयनित होने पर देवयानी की आंखों में अपने बेटे के लिए गर्व के भाव उमड़ आए। अपने ननिहाल में वैभव को बहुत प्यार मिला। देवयानी जब उसके लिए तरह तरह के पकवान लाने रसोई में गई तब वैभव ने अपने नानाजी को कहा कि अब उसका अगला काम मां और पापा को मिलाना होगा क्योंकि दोनों के मन में एक दूसरे के लिए अगाध प्रेम होने के बाद भी एक दूसरे से अलगाव झेलते रहे। सबसे मिलने के बाद वैभव ने रात को सबसे विदा ली और अपने विभाग द्वारा मिले घर पर पहुंच गया।

यही सोचकर योजना बनाकर उसने एक दिन अपने पापा को अपने पास बुला लिया और देवयानी को भी कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं है, क्या वो उसकी देखभाल के लिए आ सकती है। वैभव की बात सुनकर देवयानी थोड़ी देर में ही उसके पास पहुंच गई। जब वो वैभव के घर पहुंची तब वहां राघव पहले से ही उपस्थित था।

उसको देखते ही देवयानी के चेहरे पर नफरत के भाव आ गए और वो वापस लौटने लगी। तब वैभव ने कहा कि मां मेरी खातिर पापा को क्षमा कर दीजिए। पापा आपका साथ भले ही नहीं दे पाए पर आपका स्थान उन्होंने कभी किसी को नहीं दिया। हमेशा आप उनके हृदय में बहुत पवित्र स्थान पर थी।

वैसे भी हमारा समाज कहने के लिए पुरुष प्रधान है पर एक नारी जैसी हिम्मत और दृढ़ता पुरुष नहीं दिखा पाता। राघव के हाथ देवयानी के सामने क्षमा मांगने के लिए जुड़े ही थे कि देवयानी ने आगे बढ़कर उन्हें थाम लिया। वैभव ने भी अब हंसते हुए कहा कि दो हंसों का जोड़ा फिर से एक हो गया। आज पूरा परिवार एक साथ था। दुख भरी बदरी छंट गई थी। 

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। सच का साथ देना हर युग में ही मुश्किल रहा है पर कई बार अपना कर्तव्य निभाने के लिए बलिदान करना ही पड़ता है तभी शायद ये दुनिया चल रही है।

नोट: ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। इसको कहानी के अनुसार ही देखें। वास्तविकता के आधार पर तोलने की कोशिश ना करें।

#बेटियां ६ जन्मोत्सव

प्रथम कहानी

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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