‘रजनी जल्दी उठो मुझे बहुत तकलीफ हो रही है’ शेखर बाबू ने कराहते हुए कहा। सुबह की ५ बजी थी। रजनी ने उठकर देखा शेखर से बैठा भी नहीं जा रहा था। उसने उसे तकिये का सहारा लेकर बिठाया और बेटे को आवाज दी ‘रानू ! देखो तुम्हारे पापा को क्या हो रहा है?’रानू उनका छोटा बेटा उठकर आया और बोला -‘पापा आपको क्या हो रहा है? ‘बेटा डॉक्टर को फोन लगा, कमर में असहनीय दर्द हो रहा है।’ शेखर बाबू की उम्र ६८ साल थी और उन्हें स्लिप डिस्क की शिकायत थी। रानू ने डॉक्टर को फोन लगाया और तुरन्त पापा को अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ी निकाली।
रजनी भी साथ जाना चाहती थी, मगर शेखर बाबू ने मना कर दिया, कहा कि अस्पताल बहुत दूर हैं, तुम घर पर रहो। वे जानते थे कि भूखे रहने से रजनी की तबियत बिगड़ जाएगी। रानू ने भी कहा माँ अगर घर से कुछ मंगवाना हुआ तो कौन पहुँचाएगा? आप घर पर रहें, तो जरूरत पढ़ने पर किसी के हाथ भिजवा देना। बड़ा बेटा और बहू किसी मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे। शाम को जब वे जा रहै थे, शेखर बाबू की तबियत बिल्कुल ठीक थी। और सुबह अचानक तबियत खराब हो गई। रजनी को मन मारकर घर पर रूकना पड़ा। उसका घर पर किसी काम में मन नहीं लग रहा था।
खाली घर खाने को दौड़ रहा था। उसकी बैचेनी इतनी बढ़ गई थी, कि समझ नही पा रही थी क्या करे, वह भावुक और दिल की बहुत कमजोर थी। तभी घर में काम करने वाली बाई आई। रजनी का मुख देखते ही समझ गई कि वह परेशान है। वे उम्र में रजनी से बहुत बड़ी थी, मगर रजनी को आण्टी जी कहती थी। वो बोली ‘ का बात है आण्टी जी! काहे परेशान है?’ रजनी बाई का सम्मान करती थी, उन दोनों का रिश्ता प्रेम से परिपूर्ण था।
रजनी झुक गई, उनके चरणों में और बोली ‘ बाई आशीर्वाद दो, उनकी तबियत जल्दी अच्छी हो जाए।’ रजनी की रूलाई फूट पढ़ी। बाई ने काम छोड़ कर कहा-‘रोओ नहीं, अंकल जी जल्दी अच्छे हो जाएं हैं, का हो गया, कल तो हमसे बात किए थे? ‘रजनी ने कहा सुबह से कमर में बहुत दर्द हो रहा,रानू अस्पताल ले गया है, मुझे साथ नहीं ले गए। वह अकेला कैसे सम्हालेगा सब कुछ।’ ‘अंकल जी अकेले नहीं हैं आण्टी जी अच्छे लोगन के साथ हमेशा भगवान होत है। तुम चिन्ता न करो, और हमारी मानो रोटी जरूर खाइयो, अंकल जी के कछु नहीं होगा। देखियो शाम तलक घर आ जाइ है। रजनी का मन कुछ शांत हुआ। बाई ने काम पूरा करने के बाद घर में जो भगवान का मंदिर है, वहाँ भगवान के हाथ जोड़े, मन ही मन कुछ प्रार्थना की। जाते समय रजनी के सिर पर हाथ रखकर कहा तुम चिन्ता न करो। हम हैं ना तुम्हारे साथ। आधी रात को बुलाओगे तो भी आ जाऐंगे।
रजनी को लगा जैसे मॉं ने सिर पर हाथ रखा हो। उसने मन को समझाया अस्पताल में चाय नाश्ता पहुँचाना था। रानू का फोन आया था। नाश्ता चाय तैयार कर वह सोच रही थी कि किसके साथ पहुँचाए, तभी उसके जेठजी का बालक जो बाहर गाँव में नौकरी करता है, एक वरदान की तरह आया, और अस्पताल में चाय नाश्ता लेकर चला गया। बेटा बहू भी घबर मिलते ही वापस घर के लिए निकल गए, ५ घंटे का रास्ता था।
रानू फोन लगाकर बार-बार कह रहा था कि माँ पापा की तबियत ठीक है, आप परेशान मत होना। मगर मन तो आखिर मन है। कितनी आशंकाए मन में आती है, कहीं रानू मुझे समझाने के के लिए तो नहीं कह रहा? पता नहीं उनकी क्या हालत है? न चाहते हुए भी एक अन्जाना डर दिल में पसरने लगता है। ज्यादा तनाव और भूखे रहना दोनों रजनी के लिए घातक थे, उसे माइग्रेन था और एक बार सिर चढ़ने के बाद उतरने का नाम ही नहीं लेता था। रजनी की घबराहट बढ़ती जा रही थी, अकेले में पता नहीं कैसे -कैसे विचार मन में आ रहै थे। दो घर काम करने के बाद बाई फिर आई, बोली- ‘ आंटी जी कछु खाए के नहीं?’ रजनी की सूरत देखकर वो समझ गई, कि रजनी ने कुछ नहीं खाया है। दौपहर की १२ बज गई थी और रजनी को ९ बजे नाश्ता करना जरूरी था। वह बोली- ‘आण्टी जी चाय बनाओ हम भी पिऐंगे। ‘ रजनी ने दोनों के लिए चाय बनाई। बाई बोली- ‘अब जल्दी से दो रोटी खा लेओ बेटा, नहीं तो हम अंकल जी के दे हैं कि तुम हमारी बात नहीं मानत हो।’ बाई का इस तरह बेटा कहना, रजनी को अच्छा लगा। उसने बाई का मन रखने के लिए दो पराठें खाए। बाई कुछ देर बैठी बातें करती रही, पर उसे दूसरे घरों में भी काम करना था। उस दिन वह तीन -चार बार रजनी के घर आई और यही कहती रही तुम चिन्ता न करो, अंकल जी संजा बत्ती के समय आ जै है।’ और वास्तव में शाम को शेखर की अस्पताल से छुट्टी हो गई और वो घर आ गया। शेखर का इलाज तो डॉक्टर ने किया, मगर रजनी को सम्हाला बाई के दो मीठे बोलों ने, वरना रजनी की तबियत बिगड़ जाती।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
बेटियॉं_मासिक_ कहानी_ प्रतियोगिता
अप्रैल २०२३
कहानी नंबर ४