Moral stories in hindi :
वे दो बेटों वाली माँ हैं। उसका नाम , ‘सुप्रिया’ और बेटों के नाम क्रम से ‘निखिल’ एवं ‘अखिल’ है।
सुप्रिया को एक हद तक हम स्वाभिमानी या आत्मसम्मानी कह सकते हैं। पति फैक्ट्री में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत हैं।
पैसे थोड़े ही मिलते हैं पर उसी पैसों में बेहद संतोष पूर्ण मितव्ययिता के साथ उसने घर को सजाया है।
जिंदगी की कड़ी धूप में जब कभी थकी भी तो थोड़ा रुकी, फिर खुद ही संभल कर बड़े होते दोनों बेटों के दम पर आगे निकल गयी।
एक बिटिया की कमी शिद्दत से महसूस करती सुप्रिया यह सोच कर खुद को दिलासा देती थी,
” मेरी तो दो-दो बेटियां आएंगी “।
बड़ा बेटा निखिल प्रशासनिक अधिकारी, जब कि छोटा अखिल उसी शहर के स्कूल में बतौर शिक्षक के पद पर काम कर रहा है।
यूँ तो सुप्रिया दोनों को समान रूप से मानती है। छोटा बेटा अखिल , साधारण कद काठी का साफदिल और माँ-पापा पर जान छिड़कने वाला है।
लेकिन निखिल जिस पर सुप्रिया अपनी जान छिड़कती है। वह गौरवर्ण मजबूत कद-काठी का स्मार्ट पर थोड़ा तंगदिल और जु़वान से रुक्ष भी है।
दिन बीतने के लिए होते हैं। बीतते चले जा रहे।
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सुप्रिया निखिल के ब्याह का, जो हर माँ के जीवन का सुनहरा सपना होता है , संजोने में लगी है।
इसे भांप कर निखिल एक शुभ संध्या में जब परिवार के सारे बैठ कर साथ में चाय पी रहे थे,
” मुझे लगता है… अब आपलोगों को सच्चाई बता देनी चाहिए “
“सच्चाई … कैसी ,क्या सच्चाई ?”।
” मैंने अपनी शादी साथ पढ़ने वाली आशिया से फिक्स कर ली है “
हैरत भरे अंदाज में सुप्रिया,
“क्या… क्या कह रहे हो बेटा? कहाँ की है लड़की ?”
” यहीं यमुना पार की ! “
“ओहृ ! लेकिन मैंने सुना है, वहाँ की लड़कियां बहुत तेज होती हैं। “
पहली फांस तो यहीं चुभी, दोनों माँ-बेटे के दिल में,
” जगह… जगह से क्या होता है माँ ? , आप भी ना बस कुछ भी इधर-उधर से सुन लेती हैं” ।
“मुख्य होता है लड़की का नेचर तो आशिया भले स्वभाव की है , सबसे बड़ी बात मुझको पसंद हैं बस … “।
” वो तो हम देख ही रहे हैं ” मन ही मन यह सोच,
” अब जैसी इसकी किस्मत होगी वैसी मिल ही जाएगी “।
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सुप्रिया सहज ,शांतचित्त हो फ्रिज में से मिठाई प्लेट में निकाल कर ले आई ,
” ठीक है, जो तुम्हें पसंद तो हमें भी पसंद , लो मुंह तो मीठा कर लो “।
फिर आनन- फानन में अगले ही महीने शादी भी हो गई।
अंदर हीअंदर विचित्र सी घबराहट और बेचैनी महसूस करती सुप्रिया ने दुल्हन बनी आशिया का स्वागत तो आरती की सजी हुई थाली से किया।
पर मन में एक हूक सी उठी थी ,
” बहु तो विदा होकर अपने पति के साथ उनके घर आ गई , लेकिन उनकी आंखों का तारा उनका बेटा कंही से भी वापस लौटा नहीं दिखता है “।
शादी के बाद से माँ-पापा से तो उसका रिश्ता बस नाम का रह गया। हर समय आशिया के साथ चुम्बक की तरह लगा रहता है।
थोड़े दिनों बाद ही बहु आशिया को घर छोटा ,और भीड़ अधिक दिखने लगा।
तब निखिल ने एक दिन सब लिहाज छोड़ कर घर से अलग सरकारी क्वार्टर में रहने का ऐलान कर दिया।
सुप्रिया भावशून्य हो गई। जिस बेटे से उसे ज्यादा उम्मीद थी उसी बेटे ने इस तरह एक झटके से दरकिनार कर दिया है।
सुप्रिया पर तो जैसे गाज गिर गई हो। अपने दोनों बेटों को पढ़ा-लिखा कर इंसान बनाने में कोई कसर नही छोड़ रखी है।
निखिल का इस तरह घर छोड़ देना, माँ के रूप में सुप्रिया के लिए असह्यनीय हो गया है।
अखिल अपने माँ-पापा पर जान छिड़कता है। उसने उनके संघर्ष देखे हैं।
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जब वे घर में बैठ कर आराम से जिंदगी के इस दौर को जी सकती थीं।
बच्चों की खुशहाली के लिए उन्होंने हर कुछ झोंक दिया।
खैर…फिर पहले ही की तरह, वक्त रहते सुप्रिया खुद को मजबूत बना कर आगे बढ़ गई।
उसने अखिल की शादी अपनी पसंद से करने की सोच बेवसाइट पर इश्तेहार दे दिया। इस बार वो कोई भूल नहीं करना चाहती है।
बहुत ढ़ूंढ और खोज-बीन कर उसके बेटे अखिल को मैथिली पसंद आई। जिसकी खूबसूरती का कोई सानी नहीं। पित्तृ विहीन मैथिली स्वभाव की मीठी और खुशदिल है।
जबकि अखिल उसके ठीक श्याम वर्ण , दुबला-पतला है। यहाँ विपरीत कहने का अर्थ है , दोनों में से एक पूरब है तो दूसरा पश्चिम। फिर भी विधि का विधान।
निखिल की शादी में उसके ससुराल पक्ष द्वारा किए गये , उपेक्षा से सुप्रिया के दिल में भर गई कड़वाहट अभी तक गयी नहीं है।
बहरहाल…
इस बार सुप्रिया ने अपने बचे हुए सारे शौक और अधूरे पड़े अरमान गिन-गिन कर पूरे किए। शादी में निमंत्रित सभी मेहमानों की बधाइयों से उसकी झोली भर-भर गयी।
मैथिली बहु भी अपने नाम के अनुरूप ही घर को खुशियों से भर देने वाली निकली है।
निखिल के चले जाने के बाद से जो विरानी घर में छाई रहती है। वह मैथिली के आने से छंटने लगी है। फिर से विधाता ने मानों घर में चाँद-सितारे टांक दिए हैं।
मैथिली घर के लिए वरदान बन कर आई है। अब वो विचित्र सा खालीपन जो सुप्रिया के मन में घर कर गया है, मैथिली उन्हें एक-एक कर भरने में लगी है।
सीमा वर्मा