दिव्यतारा ( भाग 6 और अंतिम) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा —

           जीजी , आप साड़ी तो बदल लें …  हां हां बदलती हूं ….मेहमानों में से रिश्ते की देवरानी मीना ने कहा …

अरे क्या बताँऊ मीना…तारा मुंह फुला कर पार्लर गई है …

क्यों जीजी …?

वो कह रही थी… मेरी शादी में मम्मी आप भी मेरे साथ पार्लर जाकर तैयार हो… अब तू ही बता , मैं सब कुछ छोड़कर पार्लर में जाकर बैठ जाऊं….

    फिर बड़े प्यार से मैंने गोद में बिठाकर उसे समझाया …

    बेटा आज तुझे सब देखेंगे सिर्फ तुझे और आकाश को …..

फिर मेरे घर का काम है तो जिम्मेदारी भी मेरी है ना ….सारी व्यवस्था देखने की ….तब जाकर समझी है लड़की….!

अब आगे —

        पार्लर के बाहर खड़ा दिव्य ने फोन किया….

हॅलो …..

कितना समय और लगेगा तारा….? आ गए दिव्य मुझे लेने…?

   बस 5 मिनट में बाहार आई …तारा ने जवाब दिया ….

सब इंतजार कर रहे हैं जल्दी आ …कह कर दिव्य कार में बैठ गया…।

          इधर घर में सारे मेहमान आ चुके थे ….गिफ्ट लेकर खड़े हैं ….

दुल्हन कहां है ….?

बस आ रही है , मालती और शर्मा जी सबसे यही कहते …।

      पाँच मिनट , दस मिनट , पंद्रह मिनट….. अब दिव्य भी इंतजार करते-करते परेशान हो रहा था….. बार-बार घर से फोन आ रहा था ….हर बार बस… अभी आया …यही जवाब होता दिव्य का….!

    कुछ देर बाद दोनों हाथों से भारी लहंगे को पकड़े ….सिर हिला कर इशारे से दिव्य को अपनी ओर बुलाती हुई तारा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी….

   शायद लहंगा इतना भारी था कि उसे चलने में भी परेशानी हो रही थी..

 दिव्य को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था …..जिसे वो देख रहा है वो तारा ही है …..बला की खूबसूरत….. ता…..रा….. अचानक दिव्य के होंठ फड़फड़ाए …

      पकड़िए ना दिव्य….क्या सोच रहे हैं गुस्से से तारा ने कहा….

हां …..वो कुछ नहीं…

         अब कैसे बताऊं तारा…. कि मैं क्या सोच रहा हूं….. मैं भी ना कितना बेवकूफ था….. जो संभव नहीं उसे अपना समझने की भूल कर बैठा था….

    हां आया …..गाड़ी से उतरकर दिव्य तारा का हाथ थामे अगली सीट ड्राइविंग सीट के बगल में बैठाया और फुर्ती से गाड़ी आगे बढ़ा दी….!

  रास्ते में तारा ने पूछा …कैसी लग रही हूं दिव्य….? पार्लर वाली ने मेकअप तो ठीक किया है ना….

     बहुत सुंदर तारा ….बहुत ही सुंदर… दिव्य ने इतना बोलकर गाड़ी की रफ्तार और बढ़ा दी….!

    आ गई दुल्हन…. आ गई  दुल्हन.. की आवाज के बीच तारा धीरे से उतर कर अंदर गई ….

     बारात के स्वागत और द्वार पूजा की रस्म शुरू हुई ….द्वार पूजा के बाद कुछ देर पश्चात स्टेज पर दूल्हा दुल्हन को बुलाया गया ….देर काफी हो चुकी थी …..दुल्हन को भाभी , दीदीयों ने स्टेज पर ले आई थीं….।

          दूल्हे को बार-बार स्टेज पर बुलाया जा रहा था ….पर आकाश कहीं नजर नहीं आ रहा था ….उसके कुछ दोस्त भी गायब थे …..।

कहां गया दूल्हा ….कहां गया आकाश… चारों तरफ आकाश को लोग ढूंढ रहे थे …..आकाश के माता-पिता भी चिंतित थे …कहां चला गया…

    फोन भी आकाश के पास नहीं था उसका कोई दोस्त पकड़ा था…. असल में शेरवानी में उसे रखते नहीं बन रहा था ….इसीलिए उसने आनन-फानन में बगल में खड़े दोस्त को मोबाइल पकड़ा दिया था…!

            स्टेज पर खड़ी अब तारा भी परेशान हो रही थी ….लोग तरह-तरह की बातें करने लगे थे ….तब तारा ने धीरे से मालती से कहा… मम्मी मेरा फोन लाकर दो ना….

      जैसे ही मालती ने फोन दिया.. तारा ने आकाश को फौरन फोन लगाया…… पहली बार तो किसी ने फोन उठाया ही नहीं…. फिर तुरंत ही दोबारा कॉल किया ….. लगता है किसी ने स्विच ऑन कर फोन रख दिया था …..वहां की आवाज सुनाई दे रही थी….

   नशे में धुत आकाश का दोस्त बोल रहा था …..भाभी का फोन है शायद… उसने गलती से उठा तो ली थी….

    फिर आकाश की आवाज आई ….वो भी नशे में धुत्त था…

मैंने कहा था ना ….तुम दोस्तों से शर्त भी लगाया था….. कि तारा को मैं पाकर ही रहूंगा ……उससे शादी करके तुम लोगों को दिखाऊंगा…. कि मैं जो कहता हूं वो कर के ही रहता हूं…  आखिर मैंने शर्त जीत ली ना…  इसके लिए मैंने कितना त्याग किया…. तुम लोग क्या जानो ….

    जब उससे मिलना होता , शराब को हाथ भी नहीं लगता था …आखिर मैं जीत गया …..जीत गया…..

…..   तारा स्तब्ध…… 

वो कुछ समझ पाती ….इससे पहले किसी बच्चे ने आकर कहा ….जीजा जी और उनके दोस्त बगल वाले पार्क में बैठे हैं …… !

हम अभी आए …कुछ अनहोनी की आशंका लिए दिव्य और तपन पार्क की ओर भागे….

           तारा स्टेट से उतरकर कमरे में आ चुकी थी ….चारों ओर थु – थु होने लगी थी …..पार्क में पहुंचकर तपन और दिव्य ने देखा ….

बेहोश पड़ा था आकाश …..शराब के नशे में कुछ दोस्त भी वही ऐसे लेटे हुए थे …..अत्यधिक शराब पी ली थी….. तपन ने जोर से पुकारा …आकाश…. हां आ रहा हूं ….लड़खड़ाते हुए बोलने में असमर्थ आकाश ने कहा…।

लाख कोशिश के बाद भी आकाश उठने में सफल नहीं हो पा रहा था…

   अब क्या होगा …..?

सिर पर हाथ रख तपन ने दिव्य से कहा ……

बड़ी बदनामी हो गई हमारी…. पापा कर्ज लेकर वो तो मर ही जाएंगे…..

तारा भी……

       कुछ नहीं होगा तारा को…. किसी को कुछ नहीं होगा तपन …..

मैं हूं ना …..चल देखते हैं कह कर दिव्य और तपन पार्क से निकल घर की ओर बढ़े…।

   इधर कमरे में दुल्हन बनी तारा झट रुमाल से आंसू पोछी और बाहर निकल कर स्टेज पर गई और बड़ी दृढ़ता से बोली….

मैं आकाश से शादी करने से इंकार करती हूं …..

मम्मी पापा मुझसे भूल हुई , माफी चाहूंगी….!

      तभी आकाश के पापा स्टेज पर गए और तारा से बोले …..बेटा एक मौका आकाश को दे दो ……वो क्या है ना …..दोस्तों ने पिला दी होगी ….शादी का मौका था ना …मना नहीं कर पाया होगा….।

      बस करिए अंकल जी ….मैंने सब कुछ सुन लिया है …..सब कुछ….

दोस्तों ने पिला दी होगी…..व्यंगात्मक हंसी के साथ थोड़ा मजबूत बनते हुए तारा ने आगे कहा …..

     सारे मेहमानों से क्षमा चाहूंगी अब यहां कोई शादी नहीं होगी , आप लोग खाना खा ले फिर अपने-अपने घर जा सकते हैं….।

        भीड़ में कानाफूंसी खुशी शुरू हो गई ….तभी तपन और दिव्य पहुंच गए ……

   तपन तारा को बाहों में लेकर रो रहा था ……दिव्य भी इस स्टेज में गया और हाथ से इशारा करते हुए बोला….

रुकिए….रुकिए…..कोई कहीं नहीं जाएगा….. सब यही रहेंगे …..शादी होगी ……वो भी इसी मंडप में….. पर आकाश की नहीं ……

     दिव्य की…. दिव्य और तारा की….. दिव्य तारा की शादी ….

     रोती हुई तारा ने आश्चर्य से दिव्य की ओर देखा …मानो कह रही हो… नहीं दिव्य…. कहीं आप  मुझ पर तरस  खाकर…..

नहीं तारा ….शायद तुमने मेरी आंखों को कभी पढ़ा ही नहीं…

दिव्य की आंखों में अपने लिए प्यार देख तारा को लगा ….ये मुझे पहले क्यों नहीं दिखाई दिया था…..

    चलिए पंडित जी….. कार्यक्रम आगे बढ़ाइये …….पूरे शादी के हाल में तालिया की गड़गड़ाहट ने सब की जुबान बंद कर दी …..!

  दिव्य और तारा दो आत्माओं का मिलन हो ….एक हो रहे थे  ” दिव्यतारा ” के रूप में….!

…….समाप्त………

( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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