दिव्यतारा (भाग-4) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा —

             दादी साड़ी के पल्लू की गांठ खोलने लगी…. आज उसमें से मिचूड़े मिचुड़े 20 ,50 , 100 के कई नोट थे …जो दादी ने जमा किए होंगे… उसे निकाल कर तपन को देते हुए बोली …..इसे एकदम अंदर रखना… आखिरी इमरजेंसी के लिए…

और ये सिर्फ पैसे नहीं है… दादी का आशीर्वाद है लल्ला…..और तपन का माता चुमा…!

अब आगे —

      ऑटो में बैठकर अपने छोटे शहर को छोड़ने का दुख तो था  ,पर भावी नई यात्रा की ओर कदम बढ़ाने को आतुर तपन खुशी से झूम उठा….

     एक ऐसा अवसर पाकर जिसमें वो अपने सपने पूरे कर सकता था बेहद खुश था….

        तपन के जाने के बाद माहौल को हल्का बनाने की कोशिश में शर्मा जी ने कहा …..अम्मा ये पैसे तुमने आज के दिन के लिए ही संभाल कर रखे थे क्या….?

     मुझे तो कभी नहीं दिए ..आज शर्मा जी भी अपनी अम्मा के सामने बच्चा बन खुश हो रहे थे …..!

       हां तू तो ऐसे ही बड़ा हो गया है , तुझे तो हमने कुछ किया ही नहीं… तेरे बाबूजी  ने तेरी पढ़ाई लिखाई के लिए कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी ….!

        ऐसे ही पूरे गांव में अकेला तू ही क्लर्क नहीं बन गया था … तेरी नौकरी लगने पर पूरे गांव में बालूशाही बाटी थी हमने…।

        जानता हूं अम्मा …अरे मालती कहां गई…. शर्मा जी ने पूछा …

   मालती फ्रिज के बगल में बैठकर रो रही थी ….बेटे के बाहर जाने के गम में…. अरे बहू , बच्चें के घर से निकलते ही रोना अशुभ होता है ….और फिर वो आगे बढ़ने के लिए ही तो गया है ना ….अम्मा ने भी मालती को ढ़ाढ़स बंधाया …।

       दिव्य तारा को बहलाने की कोशिश कर रहा था ….हालांकि तपन के जाने के बाद वो भी बहुत अकेला महसूस कर रहा था ….एक तपन ही तो था उसका साथी जिसके कारण वो इस घर को अपना घर समझता था …

     दिव्य शहर में अकेला रहता था…  पढ़ाई के सिलसिले में वर्षों से किराए का घर लेकर …..उसके माता-पिता गांव में खेती-बाड़ी करते थे ….दिव्य की इच्छा थी कि वो पोस्ट ग्रेजुएट कर नेट का एग्जाम निकाले और कॉलेज में प्रोफेसर बन अध्यापन का काम करें…!

      देख तारा …अब ना तपन के हिस्से का भी तेरा चिड़चिड़ मुझे ही सहना पड़ेगा …तू सुधरने वाली तो है नहीं…!

       नहीं दिव्य अब तंग नहीं करूंगी आपको ….आना मत छोड़िएगा ….आज पहली बार तारा के बातों में दिव्य के लिए अपनापन व लगाव दिख रहा था…।

    रोज की दिनचर्या से लेकर …कोचिंग पढ़ाई की सारी बातें… तपन से फोन पर होती थी… पढ़ाई के प्रति  सख्त हिदयातों के मध्य एक वर्ष कब बीत गए …. पता ही नहीं चला…।

       घर में बहुत ज्यादा कुछ नहीं बदला था ….बदलाव हुआ तो सिर्फ शर्मा जी के कामों में….. अब शर्मा जी ऑफिस से निकलकर दुकानों में टाइपिंग का काम भी करते थे… एक-दो घंटे के काम से कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी…।

  पापा , आपने मुझे भी कोचिंग भेजा होता ना तो शायद मैं भी नीट का एग्जाम निकाल ही लेती… तारा कुछ सोचते हुए बोली….।

         अरे बेटा , अभी तो तेरे पास और चांस है और तू तैयारी भी कर रही है… देखना तेरा सिलेक्शन हो जाएगा बेटा… शर्मा जी ने तारा को प्रोत्साहित किया….!

       ये सब कहने की बातें हैं पापा…. माना सिलेक्शन होता है ….पर दुख तो तब होता है पापा ….जब हमसे भी कम नंबर वाले विद्यार्थियों को जाति के आधार पर सलेक्ट कर लिया जाता है …..

      अरे कम से कम मेडिकल जैसे जिम्मेदार पदों पर सिर्फ और सिर्फ योग्यता के आधार पर सलेक्शन होना चाहिए … !

       और इससे भी बड़ी बात ….धनवान व्यक्ति पैसे देकर किसी भी प्राइवेट कॉलेज में बच्चों को पढ़ाकर डॉक्टर बना सकता है …अब आप ही बताइए पापा जो बच्चा एग्जाम पास नहीं कर सकता …वो डॉक्टर बन जाता है ….कैसी विडंबना है …. दुखी होते हुए तारा ने अपने दिल में दबे एहसास को जुबा पर ला ही दिया…!

        मजा तो तब है बिटिया रानी… जब इतने टफ कंपटीशन में भी तेरा सिलेक्शन होगा ….शर्मा जी ने तारा की उदासी दूर करना चाही…।

   बत्ती बुझा दे तारा ….मुझे नींद नहीं आ रही है …..अरे दादी मुझे अभी पढ़ना है ….अच्छा तू पढ़ ले ….

आंखों पर साड़ी का पल्लू डालते हुए दादी ने कहा …..

नहीं दादी , तू सो जा ….मैं पापा के कमरे में चली जाती हूं ….अभी लाइट जल रही है वो लोग जागे हैं….!

      तारा हाथ में कॉपी , पेन , पुस्तक लेकर जैसे ही पापा मम्मी के कमरे तक पहुंची ….अंदर मम्मी पापा चिंतित हो बातें कर रहे थे ….तारा भी कोचिंग न जाने का दुख मनाती रहती है ….. मुझे भी दुख होता है कि मैं बच्चों की इच्छा पूरी नहीं कर पा रहा हूं ….एक का तो मैं इधर-उधर दुकानों में काम करके खर्च वहन कर लेता हूं अब दोनों को बाहर भेज कर पढ़ाना… फिर अम्मा की दवाइयां , घर खर्च… देखते हैं भगवान कुछ ना कुछ तो जुगाड़ करेंगे ही ….. हो सकेगा तो इस वर्ष तारा को भी कोचिंग के लिए बाहर भेज देंगे …..

     तुम चिंता मत करो सो जाओ मालती ….और कमरे की लाइट बंद हो गई….।

    तारा हाथ में कॉपी पेन पकड़े मम्मी पापा की बातें सुन चुपचाप वहां से लौट कर आ गई ….और सोचती रही ….

     एक तो पढ़ने की जगह नहीं है…. ऊपर से पैसे नहीं है ….मेडिकल में सीट भी बहुत कम है …..ऊपर से आरक्षण हम गैर आरक्षण वालों को कितना पढ़ना पड़ेगा भगवान….

    वो चुपचाप रसोई में गई , चटाई बिछाई और पढ़ते-पढ़ते , सोचते सोचते न जाने कब सो गई पता ही नहीं चला….!

       तू रसोई में क्यों सो रही है तारा…?  मालती ने सुबह देखते ही पूछा ….वो पढ़ रही थी ना ….मुझे इसी वर्ष मेडिकल में सलेक्शन करवाना है ना माँ….

     ये कोचिंग वोचिंग का चक्कर ही नहीं रखना है मुझे…. आज तारा के स्वर थोड़ा बदले हुए थे …..वो रात में तुझे ऐसा कौन सा ज्ञान प्राप्त हो गया जो तू इतनी सुधर गई…..!

          क्या बताऊं माँ… कभी-कभी हम बच्चे ना …कई चीजें देखते हुए भी अनदेखा कर अंजान बने रहते हैं… मैं समझ गई हूं माँ….. मन ही मन तारा बुदबुदाई….।

     दिव्य इतने दिनों तक कहां था…. आज आया है… तारा तुझे कुछ पूछना है तो पूछ ले दिव्य से…. तेरे से ऊंची कक्षा में पढ़ता है बता देगा ….दादी ने कहा ….!

अरे दादी वो कॉमर्स का …छोड़ ना दादी …तू नहीं समझेगी …

      क्या बात है तारा , क्या पूछना है… कुछ परेशान लग रही है …?दिव्य ने तारा के पास जाकर पूछा….

मुझे फिजिक्स में थोड़ी परेशानी हो रही है दिव्य….तारा ने अपनी समस्या बताई……रुक जा मेरा एक दोस्त है , बायो का ….वो तुझे फिजिक्स पढ़ा देगा… तारा ने दिव्य का हाथ पड़कर थैंक यू दिव्य बोला ….धीरे-धीरे दिव्य जितना बन पड़ता तारा की मदद करता….।

     तारा और दिव्य घंटो , पढ़ाई की बातें  ,कॅरियर की बातें , घर की समस्याएं , एक दूसरे से करते थे ….यहां तक की राजनीति की बातें , तर्क वितर्क सभी कुछ दिव्य से हो जाती थी …..दिव्य को समझ में आ गया था अब तारा काफी समझदार हो गई है …..तारा भी दिव्य से बातें करके मन हल्का करती थी…।

         समय भी ना पंख लगाकर कैसे उड़ जाता है , पता ही नहीं चलता…. साल बीतते देर ना लगी ….

एक दिन तपन का फोन आया मम्मी एसएससी का रिजल्ट आ गया…  नहीं हुआ … कहकर तपन भावुक हो गया….

      अरे कोई बात नहीं बेटा …पहली बारी थी ना …हो जाता है ,अगले वर्ष देखना तू जरूर निकाल लेगा…. प्रतियोगिता है बेटा , कठिन तो होगा ही…. ऐसे ना जाने कितनी बातें कह कर शर्मा जी और मालती तपन का ढ़ाढ़स बंधाते रहे…।

   तारा का भी फाइनल ईयर का परीक्षा हो गया ….साल बीत गए ,इस वर्ष तपन के पिछले दफे से कुछ ज्यादा नंबर तो अवश्य आए पर वह सेलेक्ट होने के लिए  वो काफी नहीं थे….।

  इधर घर में तारा की शादी को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई थी…

     बस अब तारा की शादी हो जाए… तपन की नौकरी लग जाए ….तो शर्मा जी और मालती गंगा नहा ले …..ऐसा सोचकर जगह-जगह रिश्तेदारों से तारा के लिए योग्य वर ढूंढने को कहा गया था …इसकी कुछ जिम्मेदारी दिव्य को भी दी गई थी….!

  एक दिन मजाक मजाक में दिव्य ने पूछा ….तारा तुझे कैसा लड़का चाहिए…?

   तारा ने भी बड़े भोलेपन से जवाब दिया …..आपके जैसा दिव्य….जो मुझे समझ सके …..तारा का ये जवाब न जाने क्यों दिव्य को बहुत अच्छा लगा …..शायद यही तो सुनना भी चाहता था दिव्य….!

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दिव्यतारा (भाग-5) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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