दिव्यतारा (भाग-2) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा —

         अरे जा लल्ला तू लेकर आ जा…. भला पोते को खाने की इच्छा हो और दादी मान जाए , ऐसा कैसे हो सकता है …अरे मेरी दादी पैसे वाली है भाई ….कहकर तपन दादी की गोद में सिर रखकर लेट गया…।

अब आगे —

 तपन ओ तपन ….बाहर से दिव्य की आवाज आई ….चुटकी लेते हुए तारा ने कहा ….

ठेकुआ का नाम लिया नहीं और आ गए दिव्य

चुप ….जब देखो तब चपड़ चपड़ करती रहती है… तपन ने मजाक में डांटते हुए तारा को चुप कराया …

तारा देख बेटा …तेरे से बड़ा है दिव्य तपन का दोस्त है तू उसे भैया क्यों नहीं बोलती …उसका नाम लेती है अच्छा लगता है क्या ….दादी ने तारा को समझाना चाहा…!

अरे दादी मेरा तो बस एक ही भैया है और वो है तपन …..और तपन को भी मैं भैया बोल देता हूं वही कम है क्या… बस साल भर ही तो बड़ा है मुझसे …..अक्ल में तो मैं ही बड़ी हूं भैया से…. कह कर तारा हंसने लगी ..मैं और किसी को भैया वैया नहीं बोलने वाली…।

     इन सबकी बातें आपस में चल ही रही थी , तब तक दिव्य अंदर आ चुका था ……

 मेरा नाम लेकर क्या चुगली कर रही है तारा…. तारा की चोटी पकड़ते हुए दिव्य ने कहा ….

मैं आपको भैया नहीं बोलने वाली बस… हां तो मुझे भी तुझ जैसी नकचढ़ी लड़की को बहन नहीं बनाना है बस

आपस में प्यारी नोकझोंक चल ही रही थी तभी मालती ने आकर कहा… तपन जा बेटा सामान लेकर जल्दी वापस लौटना… पापा के ऑफिस से आने से पहले ….कल तू देर से आया था ,पापा नाराज हो रहे थे ….!

हां मां आ जाऊंगा जल्दी …. चल दिव्य कहकर तपन और दिव्य बाजार के लिए निकल गए..।

     दरअसल तपन का इस बार ग्रेजुएशन पूरा होने वाला था और वो एसएससी की परीक्षा की तैयारी के लिए बाहर जाने वाला था …शर्मा जी को चिंता थी ,एक सीमित आय में बच्चों को बाहर भेज कर पढ़ाना थोड़ी मुश्किल होने वाली थी ….उस पर बिटिया तारा भी बड़ी हो रही थी …शादी ब्याह को लेकर भी थोड़े शर्मा जी और मालती चिंतित रहते थे हालांकि सीमित आय में भी बड़े ही प्लानिंग से सभी खर्च सुचारू रूप से चल रहे थे…।

   पानी …..शर्मा जी के ऑफिस से आते ही मालती ने पानी से भरा गिलास ट्रे में रखकर शर्मा जी के सामने रखा …..।

शर्मा जी गिलास उठाते हुए माँ से घुटने के दर्द के बारे में पूछ रहे थे …..इसी बीच तेज बारिश और बादल गरजने की आवाज आई….

अरे ये बिन मौसम बरसात होने लगी.. अच्छा है गर्मी में बीच-बीच में बारिश हो जाती है जिससे गर्मी से राहत मिलती है ….

अच्छा ये तो बताओ तुम्हारे शहजादे इस मौसम में कहां घूम रहे हैं , आज तो रिजल्ट आने वाला था ….!

मालती ने तपाक से जवाब दिया… अरे अभी 10 मिनट पहले ही गया है , आता ही होगा …..हो सकता है रिजल्ट आ गया हो उसी में व्यस्त हो..

आधे घंटे तो मुझे आए हो गया और तुम बोल रही हो 10 मिनट पहले गया है… व्यंगात्मक हंसी के साथ शर्मा जी ने कहा…।

      हां मुन्ना अभी ही तो गया है मैंने ही भेजा है आता होगा …दादी ने भी मालती के बातों का समर्थन किया…।

    दादी ओ दादी ..  मैं पास हो गया लगभग चिल्लाने वाले अंदाज में खुश होते हुए तपन घर में घुसा …..

पापा को देखते ही थोड़ी आवाज़  थोड़ी धीमी हुई ….फिर भी खुश होते हुए बोला ….पापा मैं पास हो गया हूं… और दादी ,मम्मी ,पापा सभी के पैर छुए …..

तारा ने भी अपना पैर बढ़ाते हुए कहा भैया मेरा भी पैर छु…. बहने भी लक्ष्मी का रूप होती है …..धत्  पगली कहकर तपन ने तारा को गले से लगा लिया….।

        हमेशा लड़ने झगड़ने वाली तारा आज थोड़ी भावुक होती हुई बोली…

भैया अब तू बाहर चला जाएगा पढ़ने… हां तारा तब ना मैं एसएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर बड़ा ऑफिसर बनूँगा…..

अब तो पूरे घर में तेरा अकेले का राज रहेगा…

    तभी मालती एक प्लेट में रसगुल्ला लेकर आई… आते ही बोली …सब मुंह मीठा करो …..आज हमारा तपन ग्रेजुएट हो गया है ….अरे दिव्य कहां गया …..मालती ने इधर-उधर देखते हुए पूछा …।

   अच्छा तो ये बात थी तभी फ्रिज में ताला लगा हुआ था….. मम्मी आप ना बहुत पक्षपात करती हैं ….

भैया पास हुआ तो रसगुल्ला मंगवाया और मैं पास हुई थी तो बेसन के लड्डू…. मुंह बनाते हुए तारा ने कहा….. तू ये बता …रसगुल्ला तो तू भी खाएगी ना और बेटा उसने ग्रेजुएशन पूरा किया है… अब नए मंजिल की तरफ बढ़ने वाला है …जब तेरा ग्रेजुएशन कंप्लीट होगा ना तो तेरे लिए रसमलाई मंगवाऊंगी …मालती ने सफाई देनी चाही….!

     पर अल्हड़ चुलबुली तारा मानने वाली कहां थी …उसने तपाक से कहा वो तो ठीक है मम्मी ….पर ये बात तो सच है ना …आप भैया को मुझसे ज्यादा प्यार करती हो….!

    तू बोलती है भैया को और भैया बोलता है तारा को ज्यादा प्यार करती हूं …..तुम ही लोग आपस में डिसाइड कर लो ….जब तुम लोग मां-बाप बनोगे ना तब पता चलेगा की मां बच्चों में अंतर नहीं करती है….।

 तभी हांफता हुआ दिव्य बोला… आ गया …मैं भी आ गया …मेरी मिठाई…?  कहते हुए उसने भी सबके पैर छुए और आशीर्वाद लिया ….

तारा ऐसे देख रही थी जैसे अभी दिव्य नहीं आता तो उसे एक रसगुल्ला और खाने को मिल जाता..।

  अम्मा आज आप भी ले ही लो ना ….आज आपका पोता पास हुआ है… रसगुल्ला के रस को निचोड़ते हुए मालती ने कहा …..

    अरे अब पूरा ही रस निचोड़ कर देगी क्या बहू ….तो क्या मैं रूई के समान बेस्वाद सीठा सीठा रसगुल्ला खाऊंगी…

मां अभी शुगर बढ़ा आया था ना आपका…. शर्मा जी ने कुछ कहना चाहा… बीच में ही तू चुप कर मुन्ना… बोलकर अम्मा ने चुप करा दिया…!

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दिव्यतारा (भाग 3) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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