दिव्यतारा (भाग-1) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

जय बजरंगबली… जय पीड़ा हारी…. जय कष्ट निवारण……

मम्मी ओ मम्मी.. कहां गई , देखो भाई बाहर कोई तुम्हें बुला रहा है …..बहू ओ बहू  जरा देखना चश्मा कहां रख दिया है मैंने ….मिल नहीं रहा , अरे कंघी करने को उतारा ….यही तो रखा था…. कहां चला गया… जैसे उसका भी पैर हो…

         हे भगवान ….माफ करना एक मिनट शांति से पूजा भी नहीं कर पाती…. इसी समय सबको मेरी जरूरत पड़ेगी…..

  भगवान एक बार…. बस एक बार …मुझे इतना समय अवश्य दीजिएगा , ताकि मैं भी बोर हो सकूं …..मेरा मतलब बोर होने का मतलब तो समझ सकूं ……और मालती खीजते हुए पूजा रूम से बाहर निकल गई…..!

        क्या चिल्ला रहा था तपन…? खुद देख नहीं सकता था बाहर कौन है…?  अरे मम्मी वो सब्जी वाली आई थी और तुम्हें ही पूछ रही थी ..मैं बोला भी …अभी नहीं लेना है तो बोलती है एक बार मम्मी को भेजो तो…. तो मैं क्या करता…।

    मालती का गुस्सा देख अम्मा भी सकते में आ गई वो भी तो बहु बहु आवाज दे रही थी…

   लीजिए अम्मा आपका चश्मा… चश्मा उतारकर चश्मा खोजेगीं तो कहां से मिलेगा …..

हां हां वही तो….  अभी बहू की हां मैं हां मिलाना ही अम्मा ने उचित समझा….

       देखो बच्चों …कुछ व्यक्तिगत कारणों से आज फ्रिज में ताला लगा दिया गया है ….आपकी असुविधा के लिए खेद है …..मालती ने जैसे ही ये कहा …..

        भाग कर फ्रिज के हैंडल को जोर से खींचते हुए तारा ने मुंह बनाया और तपन से कहा ….भैया देख ना लगता है मम्मी ,काला वाला गुलाब जामुन मंगवा कर रखी है फ्रिज में …..पक्का मामी लोग आने वाली होगीं….  कहीं हम चट ना कर जाए , इसलिए फ्रिज में ताला लग गया….!

          हां तारा …मुंह बनाते हुए तपन ने भी हां में हां मिलाया …अब दोनों भाई-बहन बार-बार फ्रिज के पास आते और मायूस होकर लौट जाते…।

    अरे मम्मी …कम से कम ठेकुआ ही तो बना दो ….पानी पीने के लिए…

अभी रुको भाई , अब तो अगले महीने ही बनेगा ….इस बार तो तुम लोगों ने छुट्टियों में 15 दिन में ही पूरे महीने भर का ठेकुआ खत्म कर दिया…..

    महंगाई बढ़ती जा रही है तुम दोनों को तो कोई मतलब है नहीं कि तुम्हारे पापा कितनी मुश्किल से कमाई कर घर चला रहे हैं …..मालती तार में कपड़े सुखाते सूखाते अनजाने में ही काम की अधिकता और व्यस्तता की खीज बच्चों पर निकाल दी…।

     मम्मी ये ना तपन भैया दोनों हाथों में दो-दो ठेकुआ लेकर दिन भर खाते रहते हैं …..और खुद तो खाते ही है अपने पड़ोसी दोस्त दिव्य को भी खिलाते हैं ….इसीलिए जल्दी खत्म हो गया ….तारा ने बड़े भाई की शिकायत की ….।

    पास में ही चारपाई पर लेटी दादी ने सुन लिया …..अरे क्या बकबक कर रही है तारा …..खाएगा नहीं बच्चा है.. अभी तो खाने पीने की उम्र है …और दुल्हन तू भी ना बच्चों को इतना क्यों सुना रही है…!

        ले बेटा तपन …जा तेल और शक्कर पास की दुकान से ले आ…. अपने आंचल में बंधी गांठ खोलकर दादी ने ₹100 निकालना चाहा….. शायद आज ही दादी को पेंशन के पैसे मिले थे…..

अरे अम्मा आप रहने दीजिए ना , मैं शाम को मंगवा लूंगी और बना दूंगी ठेकुआ…

 तू जा लल्ला ….सामान लेकर आ जा….. भला पोते को खाने की इच्छा हो और दादी मान जाए ऐसा कैसे हो सकता है ….

     अरे मेरी दादी पैसे वाली है भाई ….कहकर तपन दादी की गोद में सिर रखकर लेट गया…..!

क्रमशः ……..

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दिव्यतारा (भाग 2) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

   संध्या त्रिपाठी

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