दिव्यात्मा – कमलेश राणा

उससे मेरी मुलाकात हॉस्पिटल की लिफ्ट में हुई जहाँ मैं अपने एक रिश्तेदार से मिलने गई थी। उसने हॉस्पिटल स्टाफ की ड्रेस पहनी हुई थी मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी सी बच्ची यहाँ काम करती है, मन में उठते हुए भावों ने आखिर शब्दों का रूप इख़्तियार कर ही लिया …

इतनी छोटी सी उम्र में काम करती हो तुम.. मैंने पूछा।

अरे मैडम छोटी नहीं हूँ मैं ये देखिये .. कहते हुए उसने मुझे अपने गले में लटका आई- कार्ड दिखाया।

अब चौँकने की बारी मेरी थी .. अरे इसके हिसाब से तो तुम चौबीस साल की हो पर देखकर तो लगता है जैसे 9 वीं या 10वीं की छात्रा हो।

वो क्या है न मैडम मेरी माँ मुझे तीन महीने का छोड़ कर मर गई उसका दूध पीने को नहीं मिला न.. तो मेरा सही विकास नहीं हो पाया।

और तुम्हारे पिता???

उसने दूसरी शादी कर ली।

तब तक मेरी मंजिल आ गई थी मैंने उसे कमरा नम्बर बताते हुए मिलने के लिए कहा उसने सहमति में सर हिला दिया। मेरे मन में न जाने कितने सवाल थे जो अपने जवाब ढूंढ़ रहे थे और उनका जवाब केवल उसी के पास था। न जाने क्यों मन उसके लिए करुणा से भर गया जिंदगी सच में ही एक पहेली है जिसे सुलझाना इंसान के वश की बात नहीं वह तो बस कठपुतली की तरह परिस्थितियों की धुरी पर नाचता रहता है बेबस और किंकर्तव्य विमूढ़ सा।

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नज़रें बार बार दरवाज़े की ओर उठ जातीं उसके इंतज़ार में फिर वह आई साफ सफाई करने के बहाने या शायद वह यही काम करती थी मेरी नज़रों में सब कुछ जान लेने की आकुलता थी पर उसके चेहरे पर एक ठहराव था जो शायद समय के भँवर के थपेडों ने उसको पुरस्कार में दिया था। वह यंत्रवत अपने काम में लग गई बिना इसकी परवाह किये कि उसके लिए मेरी सहानुभूति के शब्द दिखावा नहीं थे पर शायद वह इसकी अभ्यस्त हो गई थी।

मैंने उससे कहा.. इधर मेरे पास आकर बैठो मुझे तुम्हारे बारे में जानना है।

जल्दी बोलिये मैडम हमें किसी पेशेंट के कमरे में अधिक समय तक रुकने की इज़ाज़त नहीं है।

फिर तुम्हें किसने पाला?? क्या नई माँ के साथ रहती हो तुम??

नहीं.. मेरा बाप मुझे छोड़कर नई माँ के साथ रहने चला गया क्योंकि उसने कह दिया था कि वह किसी के बच्चे पालने नहीं आई है वो तो मेरी दादी बहुत अच्छी हैं उन्होंने मुझे पाला बहुत प्यार करती हैं वो मुझे फिर जब मैं दस साल की हो गई तो मैं भी काम करने लगी।

ओह!!! इतनी कम उम्र में.. और लोग करवा भी लेते थे तुमसे बहुत दुःखद है यह तो.. क्या काम करती थी तुम??

मैडम मेरी दादी बहुत लंबे समय से एक हॉस्पिटल में काम करती थी वहीं मैं भी करने लगी अपनी दादी के साथ फिर जब बड़ी हुई तो यहाँ करने लगी।

और तुम्हारी शादी??

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हो गई मैडम 20 साल की उमर में और 5 महीने बाद टूट भी गई क्योंकि वह लड़का किसी और को चाहता था तो मुझसे सिर्फ काम करवाने और दिखावे के लिए शादी की थी उसने.. इतनी छोटी उमर से दुनियां देखी थी मैंने.. समझ गई कि अगर मैंने इसे नहीं छोड़ा तो यह मुझे इस देह से मुक्त करके खुद भी मुक्त हो जायेगा तो एक बार फिर दादी की शरण में आ गई।

नाम क्या है तुम्हारा??

हिना है मैडम जो खुशियों और प्यार का प्रतीक है पर मेरी किस्मत मेरे नाम के बिल्कुल विपरीत निकली जाने क्या सोचकर मेरी माँ ने मेरा यह नाम रखा था.. पर मैं उन्हें क्यों दोष दूँ अगर वो जीवित होती तो शायद मेरी किस्मत कुछ और ही होती।




अब तो मरीजों की सेवा में ही खुद को समर्पित कर दिया है मैंने जब भी किसी मरीज को डिस्चार्ज होकर अपने परिजनों के साथ जाता देखती हूँ तो उन परिजनों के चेहरे की खुशी मेरे मन में भी खुशियों के रंग भर देती है और जब कोई सहृदय परिवार जाते समय मुझे प्यार से देखते हुए बाय करता है न तो सारे जहां की खुशियाँ मिल जाती हैं मुझे फिर मैं उस खाली कमरे को झाड़ पोंछ कर तैयार करने में जुट जाती हूँ जिससे फिर कोई पीड़ित इसी तरह खुश हो कर विदा हो।

मैं अवाक् हो कर उस दिव्यात्मा को देख रही थी सबको साफ रखने वाली का मन भी कितना साफ सुथरा था।

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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