“सम्मोहन.. कार्य कैसे करता है भैया?” चंद्रिका पूछती है।
“भाभी.. सम्मोहन रोगी की चेतना को इस तरह से बदलता है कि हमारे दिमाग का दायां भाग निष्क्रिय हो जाता है और बायां भाग अधिक सक्रिय हो जाता है। हमारे दिमाग का दायां हिस्सा विश्लेषणात्मक कार्य करता है जबकि बायां हिस्सा गैर विश्लेषणात्मक कार्य करता है। सम्मोहन प्रक्रिया से रोगी के अवचेतन मन को बदलने की कोशिश की जाती है ताकि परेशानी को जड़ से समाप्त किया जा सके।” राघव समझाने का प्रयास कर रहा था।
“क्या सम्मोहन से बाहर आने के बाद दिव्या अवचेतन मन की सारी बातें भूल जाएगी और आगे बिल्कुल नॉर्मल रहेगी भैया।” चंद्रिका उपचार से पहले सारी बातें जान लेना चाहती थी।
“कई बार रोगी भूल जाते हैं। कई बार बातें याद भी रह जाती हैं। दिव्या मानसिक तौर पर जिस तरह से मजबूत है.. मुझे लगता है.. वो याद रखेगी।” राघव धैर्य से चंद्रिका के सवालों का जवाब दे रहा था।
“तो इससे दिव्या को कोई नुकसान तो नहीं होगा।” चंद्रिका दिव्या के लिए फिक्रमंद होकर पूछती है।
“नहीं भाभी, कोई नुकसान नहीं होगा।” राघव चंद्रिका को पूर्णरूपेण आश्वस्त करता हुआ कहता है।
“चंदू….सब सही होगा.. चिंता मत करो।” आनंद चंद्रिका का हाथ अपने हाथों में लिए उसे विशेष प्यार और समर्थन का संकेत दिया। आनंद का प्यार भरा स्पर्श चंद्रिका के लिए एक सहारा बना, जिससे वह अपनी समस्याओं का सामना कर सकती थी।
“हाँ भाभी ये बिल्कुल सामान्य प्रक्रिया है। दिव्या को कोई भी बात परेशान नहीं करेगी।” रिया चंद्रिका की ऑंखों में प्यार से देखती हुई कहती है।
“यह आप तीनों का कार्यक्षेत्र है। आप तीनों को जो उचित लगे।” चंद्रिका अपनी ठंडी साॅंसों के साथ कहता है।
“भाभी, आप दोनों घर जाकर ठंडे मन से सोच कर निर्णय लें और मुझे अपना निर्णय सुबह बताएं। अगर आप दोनों की स्वीकृति होती है तो कुछ दिनों के लिए स्कूल से छुट्टी के लिए आवेदन दे देना आनंद।” राघव आनंद को निर्देश देता है।
“ठीक है.. सुबह दिव्या को स्कूल पहुँचा कर आवेदन देता आऊ़ॅंगा। चलो चन्द्रिका, माँ और दिव्या इंतजार कर रही होंगी।” आनंद उठता हुआ कहता है।
“आनंद.. दिव्या से छुट्टियों के बारे में तुम लोग बात मत करना, मैं खुद से बताऊँगा।” राघव दरवाजे तक आता हुआ कहता है।
“ठीक है.. कल मिलते हैं फिर।” आनंद कहता है।
“भाभी.. निश्चिंत रहिएगा, हम सब दिव्या के साथ हैं।” रिया चंद्रिका के कंधे पर सहानुभूति का हाथ रखते हुए कहती है।
“दिव्या.. दिव्या.. कहाँ हो?” राघव सुबह की सैर के लिए दिव्या को आवाज देता हुआ अंदर आता है। अब रोजाना राघव दिव्या के साथ ही सुबह और शाम की सैर पर जाता है।
“आ गई चाचा जी।” दिव्या दौड़ती हुई आती है।
“तब दिव्या क्या सोचा है तुमने? अब तुमसे कुछ भी नहीं छुपा है। हालात आगे बिगड़ सकते हैं, उससे पहले सतर्क हो जाया जाए तो अच्छा है।” राघव सैर करते हुए दिव्या से बातें कर रहा था।
“लेकिन चाचा जी.. बचपन से ऐसा हो रहा है.. मुझे कुछ कैसे आभास नहीं हुआ। किसी दूसरे के साथ नहीं, मुझे खुद की बात ही याद नहीं रही। देवी माँ की पूजा करना मुझे सकारात्मकता से भर देता है… देवी माँ से मैं बात करती हूँ… क्यूँ नहीं याद है मुझे? ये प्रश्न दिन रात सोते जागते मुझे परेशान करता रहता है। दिव्या के चेहरे पर खुद को लेकर आश्चर्य और परेशानी दोनों भाव साथ साथ दिख रहे थे। उसकी आँखों में व्यक्त हो रहे भावनात्मकता में, एक तरफ तो उसका आत्मविश्वास कमजोर हो रहा था और दूसरी ओर चिंता की बूंदें उसके चेहरे से टपक रही थी। उसका मन अज्ञानता और असमंजस में था, जिससे उसके चेहरे पर कई भावनाएं साथ साथ आ जा रही थी।
“इन बातों की तह तक पहुँचने का एक ही उपाय है.. सम्मोहन… इसके लिए जब तक तुम हर तरह से तैयार नहीं होगी.. ये असंभव है।” राघव दिव्या से कहता है।
“आप लोगों ने जो भी निर्णय लिया है, मेरे हित में ही लिया है ना। मेरी ना का कोई सवाल ही नहीं उठता है, आप जब से चाहे प्रारंभ कर सकते हैं।” दिव्या राघव की ओर आशा भरी दृष्टि से देख कर कहती है।
“आओ वहाँ बेंच पर बैठते हैं। तुमसे और भी कई बातें करनी हैं।” राघव बेंच की ओर इशारा करते हुए कहता है।
“देखो बेटा… सम्मोहन जितना सुनने में आसान लगता है.. उतना होता नहीं है.. ना एक चिकित्सक के लिए और ना ही रोगी के लिए।” राघव बेंच पर दिव्या की ओर घूम कर बैठता हुआ कहता है।
“मैं समझी नहीं चाचा जी।” दिव्या भी राघव की ओर मुड़ कर कहती है।
“ऐसा समझो ये एक परीक्षा है। अगर हम पूरी तैयारी और मजबूत मनोबल के साथ बैठेंगे तो हर प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। नहीं तो सवाल ही सवाल बन कर परेशान करने लगता है और ये एक चिकित्सक और उसके मरीज़ दोनों पर लागू होता है। लाजिमी भी है.. दोनों एक टीम की तरह काम करेंगे.. तभी कोई प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहेगा, है ना।” राघव दिव्या सारी स्थिति समझाते हुए कहता है।
वैसे कितने दिनों तक चलता है ये।” दिव्या जिज्ञासा प्रकट करती है।
“कुछ कह नहीं सकते। तुम क्या क्या बता रही हो और क्या क्या बताना चाहती हो। कौन कौन सी बातें तुम्हारे मन के अंदर दबी हैं। सब कुछ मुझे बारीकी से समझना होगा। कभी कभी तो सेशन एक दिन में ही खत्म हो जाता है.. कभी कभी लंबा भी खिंच जाता है।” राघव अपनी उंगलियों को फॅंसाए हुए दिव्या से कहता है।
“वहाँ भी करते हैं ऐसा… कितने लोगों का किया है।” दिव्या की जिज्ञासा शांत नहीं हो रही थी।
“हाँ.. जैसी जरूरत लगती है..उस तरह करते हैं.. वहाँ साधारण उपचार है ये।” राघव दिव्या को बताता है।
“कब से शुरू करेंगे.. मुझे भी सब कुछ जानना है.. देखना है।” दिव्या अब खुद को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी।
“आज तुम पूरी तरह आराम करो। सब सही रहा तो कल से ही शुरुआत कर देंगे।” राघव उसकी उत्सुकता पर मुस्कुराता है।
“आपको क्या लगता है चाचा जी, मेरे केस में कितने दिन का सेशन होगा।” दिव्या के चेहरे पर शांति सी बनी हुई थी।
“इस पर कोई भविष्यवाणी नहीं बेटा। बस तुम्हारा चित्त बिल्कुल स्थिर होना चाहिए।” राघव दिव्या का हाथ थपथपाता हुआ कहता है।
“ठीक है चाचा जी।” दिव्या कहती है और दोनों घर की ओर चल पड़ते हैं।
“मैं चाय बना लाती हूँ। आनंद भी आपका ही इंतजार कर रहे थे।” चंद्रिका राघव और दिव्या को देख राघव से कहती है। दिव्या अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
“माते नहीं दिख रही हैं।” राघव आनंद की माॅं के लिए इधर उधर देखता हुआ कहता है।
“माॅं पूजा कर रही हैं।” आनंद बताता है।
“दिव्या थेरेपी के लिए तैयार है आनंद। हो सकता है हमलोग कल से ही सेशन स्टार्ट कर देंगे ।” राघव आनंद से दिव्या की थेरेपी के लिए बताता है।
“प्रसाद ले लो तुम लोग.. चाय पिया तुम लोगों ने।” आनंद की माँ दोनों के करीब आती हुई पूछती हैं।
“चंद्रिका बना रही है माँ।” आनंद प्रसाद के लिए हाथ बढ़ाता हुआ कहता है।
“ठीक है.. बातें करो तुम दोनों, मैं दिव्या को प्रसाद दे आऊँ।” आनंद की माँ कहती हैं।
“माते.. दिव्या की थेरेपी कल से शुरू हो जाएगी। मुझे पहली बार घबराहट सी हो रही है।” राघव असहज सा होता हुआ कहता है।
“अपने घर की बच्ची है ना इसलिए। देवी माँ सब ठीक करेंगी। दिव्या के चाचा की तरह नहीं, डॉ राघव की तरह रहो।” राघव की बात सुनकर आनंद की माँ के कदम थम गए थे और उन्होंने राघव का हौसला बढ़ाते हुए कहा।
“कोशिश तो पूरी तरह करूँगा।” राघव कहता है।
“चाय ले लीजिए आप लोग। माँ आपके लिए नाश्ता लगाऊँ।” चंद्रिका मेज पर ट्रे रखते हुए सासु माँ से मुखातिब होती है।
“दिव्या को प्रसाद देकर आती हूँ। देखती हूँ दिव्या का स्नान हो गया होगा तो दादी पोती साथ ही नाश्ता कर लेंगे।” दिव्या की दादी कहती हुई पोती के कमरे की ओर बढ़ गईं।
राघव – क्या बनाया गया है नाश्ता में..
“भैया आलू पूरी और हरी चटनी बनी है। ले आती हूॅं, चाय के साथ अच्छी लगेगी।” चंद्रिका राघव की ओर देखकर कहती है।
“नेकी और पूछ पूछ.. चाय के साथ तो मज़ा आ जाएगा भाभी।” राघव खुश होकर कहता है।
“बिना स्नान के”..आनंद अपनी ऑंखें बड़ी कर पूछता है।
“अरे मेरे दोस्त.. खाना थोड़े ना खा रहे हैं। चाय के साथ स्नैक्स की तरह लेंगे, जैसे अभी बिस्किट उठाया तूने.. वैसे ही आलू पूरी उठाएंगे और चाय के साथ खाएंगे। फिर स्नान ध्यान कर नाश्ता कर लेना। सिम्पल सी बात है ये। क्यों भाभी?” राघव हॅंसते हुए कहता है।
“तू और तेरे विश्लेषण। सुन रही हो इसकी बातें।” चंद्रिका की ओर देखकर मुस्कुराता आनंद कहता है।
ये सब आप दोनों जानें। मैं ले आती हूँ। गर्म गर्म खाने में स्वाद भी आएगा।” चंद्रिका हँस कर कहती है।
“बहू दादी पोती का भी नाश्ता लगा देना और तू भी स्नान ध्यान कर नाश्ता कर लेना। सुधा से भी कहना नाश्ता कर लेगी।” आनंद की माँ पोती दिव्या के साथ कमरे से बाहर आती हुई कहती हैं।
राघव जाने से पहले दिव्या के कमरे में मिलने जाता है। दिव्या कोई पेंटिंग बना रही थी।
“क्या बना रही हो बेटा?” राघव दिव्या के करीब आ खड़ा हुआ।
“कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या बनाऊँ। फिर ये सब बनाने लगी।” दिव्या कैनवास की ओर देखती हुई कहती है।
“दिखाना… वर्णन करोगी.. क्या क्या चित्रण कर रही हो इसमें?” राघव उत्सुकता से दिव्या के कैनवास की ओर नजर टिकाए हुए कहता है।
“ये एक औरत है, जो श्रृंगार कर रही है। ये इसकी बेटी है, जो माँ को तैयार होते देख रही है।”
“श्रृंगार करते समय इसके चेहरे पर इतनी उदासी क्यूँ? बच्ची का चेहरा भी तुमने रुआँसी बनाया.. क्यूँ?” राघव दिव्या को बीच में रोकते हुए पूछता है।
मैं तो मुस्कुराता चेहरा बनाना चाहती थी। कोशिश के बाद भी नहीं बना सकी।” दिव्या मायूसी से कहती है।
“कोई बात नहीं… फिर कभी कोशिश करेंगे। आज.तुम सिर्फ आराम करोगी। बेटा ये जान लो सम्मोहन एक विज्ञान है, जो कि हमारे मन और शरीर दोनों से जुड़ा है। इससे पहले हम मन और शरीर को आराम की मुद्रा में रखकर ही इसके लिए तैयार कर सकते हैं। इसलिए अब कुछ नहीं सोचना है और ना करना है। अगर थोड़ी भी दिक्कत लगे तो मुझे कॉल कर देना। अब जल्दी जल्दी मुझे आज के आराम के लिए ऑल द बेस्ट बोलो। हम दोनों को ही ये जंग जीतनी है। ऑल द बेस्ट बेटा। कल सुबह दस बजे तक तैयार हो जाना। तुम्हारे कमरे में ही थेरेपी शुरू करेंगे।” राघव मुस्कुरा कर दिव्या के गाल थपथपा कर कहता है।
“जी चाचा जी”.. दिव्या कहती है।
“आनंद..दिव्या की पेंटिंग देखकर ऐसा लगता है जैसे सम्मोहन से पहले ही दिव्या की चेतना उससे कुछ कहना चाह रही है। उसके कमरे में ही थेरेपी होगी, जिससे वो फ्रेंडली फील करे। भाभी से कहना उसके साथ ही रहे और पूरी तरह आराम दें उसे। मैं चलता हूं, कल के लिए मुझे भी कुछ तैयारियाँ करनी होगी। तुझे भी तो क्लिनिक जाना होगा।” राघव दरवाजे से बाहर निकलता हुआ रुक कर कहता है।
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दिव्या(भाग–7) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
दिव्या(भाग–5) : Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
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