राघव हड़बड़ा कर गाड़ी सड़क किनारे लगा लेता है। राघव को गाड़ी रोकता देख पीछे से आते हुए आनंद भी गाड़ी किनारे ले लेता है।
दिव्या की चीख सुन चंद्रिका जल्दी से आकर दिव्या को अपने आगोश में समेट लेती है। दिव्या चंद्रिका के गले लगी बेहोश हो गई। राघव की गाड़ी में ही चंद्रिका दिव्या को अपनी गोद में लिटा कर बैठ गई।
दिव्या की स्थिति देख माहौल तनावपूर्ण हो गया था।
घर पहुॅंचते पहुॅंचते दिव्या होश में आ गई और सामान्य व्यवहार करने लगी थी।
आज दिव्या की स्थिति से हतप्रभ राघव और रिया आनंद के घर ही रुक गए। उनकी आँखों दिव्या की कमजोरी को देखकर चिंता और दुख भरी हुई थी। वो दोनों दिव्या के चेहरे पर छुपे दर्द को समझने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें इस मुश्किल समय में आनंद और चंद्रिका के लिए एक गहरी सहानुभूति की भावना महसूस हो रही थी।
चंद्रिका दिव्या को उसके कमरे में सुला आई। तब तक रिया सबके लिए पानी और कॉफी बना कर ले आई।
“ये क्या था आनंद? दिव्या को अचानक क्या हो गया?
हमारे यहाँ आए दो महीने होने गए। दिव्या को कभी ऐसे नहीं देखा। पहले भी ऐसा होता रहा है या आज ही हुआ।” राघव दिव्या की हालत देख परेशान होकर आनंद से पूछता है।
“पाँच साल की उम्र से ही ऐसा हो रहा है।” चंद्रिका रोती हुई कहती है।
आनंद.. तूने कभी बताया नहीं। यार डॉक्टर होकर ऐसी स्थिति में कैसे निश्चिंत रह सकता है।” राघव अफसोस करता हुआ कहता है। “आनद, डॉक्टर बनकर इंसानों की मदद करना हमारी पेशेवर जिम्मेदारी है और हमें इसमें खुशी मिलती है। दुखी हालातों में भी हमें आत्मनिर्भर होना हमारी पहली प्राथमिकता होती है। मैं अपने रोगीयों को हर संभावित सहारा और उपचार प्रदान करने के लिए यहाँ हूं। लेकिन घर वालों के लिए बेरुखी, मेरे समझ से परे है।” राघव झुंझलाता हुआ बोलता जा रहा था।
“कई मनोचिकित्सक को दिखाया। किसी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया।” आनंद धीमे से कहता है
“हम सोच ही रहे थे कि अब कहीं बाहर जाकर दिखाए। तब तक तेरे आने की खबर आई, तो हमने सोचा तुझसे ही इस बारे में बात करेंगे।” आनंद दोनों हाथों की उंगलियाॅं एक दूसरे में फॅंसा कर हथेली मसलते हुए कहता है।
“भाभी आजतक बताया क्यूँ नहीं?” रिया चंद्रिका के हाथ को अपने हाथ में लेती हुई पूछती है।
“राघव की मसरूफियत देखकर लगा…हमने सोचा ये सब सुनकर कहीं इसके काम पर असर ना पड़े… इसलिए।” आनंद बात पूरी किए बिना चुप हो गया।
“ओह… तुमने तो एक पल में पराया कर दिया। खुद की बेटी से बढ़कर भी कोई काम है क्या!” राघव की आवाज में आनंद के लिए गुस्सा, नाराजगी, अफसोस सभी का मिला जुला भाव परिलक्षित हो रहा था।
“माते.. आप तो बताती.. बच्ची इतने कष्ट में है।” आनंद की माँ की ओर मुड़ते हुए राघव कहता है।
“जो हुआ सो हुआ। आगे क्या करना है राघव, इस पर ध्यान दो।” रिया शिकायतों का पुलिंदा बंद करने का संकेत देती हुई पति राघव से कहती है।
राघव ने रिया की बात का समर्थन करते हुए हुए कहा, “हाँ, रिया, तुमने सही कहा। मैं कल से ही इस समस्या का उपचार शुरू कर दूँगा। मेरी मरीज की सेहत मेरे लिए पहली प्राथमिकता है और हम इसका मिलकर सामना करेंगे।” रिया से बोलता हुआ राघव आनंद और चंद्रिका की ओर देखता है।
रिया ने भी उसे प्रेरित करते हुए कहा, “राघव, हम तुम्हारे साथ हैं। तुमने सही निर्णय लिया है और हम इस मुश्किल समय में तुम्हारे साथ हैं।”
इस तय किए गए पथ पर बढ़ते हुए, राघव और रिया ने मिलकर अपनी साझेदारी को मजबूत किया और समस्या का समाधान निकालने के लिए संकल्प बनाया।
“कितने दिनों के बाद ऐसी स्थिति हुई और पहले कितने दिनों पर होता था भाभी।” राघव चंद्रिका से पूछता हुआ मुद्दे पर आता है।
चंद्रिका सारी स्थिति स्पष्ट बताती है और बताती है कि इस बार लगभग तीन महीने बाद ऐसा हुआ।
“कोई बात नहीं… मेरी पूरी कोशिश होगी इसके तह में जाकर दिव्या को पूर्णतः सामान्य कर सकूँ।” राघव सबके लिए उम्मीद का एक दीया जलाते हुए कहता है।
“भाभी दिव्या के डॉक्टर्स की फाइल, सारी केस हिस्ट्री मुझे दे दीजिए। पहले मैं सब कुछ देखना, पढ़ना चाहूॅंगा।” राघव चंद्रिका से कहता है।
अभी तो सब आराम करो। सुबह देखना जो भी देखना हो। बहू दोनों के लिए कमरा तैयार कर दो।” आनंद की माँ रुंधे गले से कहती हैं।
“जी माँ.. चलो रिया कपड़े बदल लो।” चंद्रिका अपनी सासु माॅं की बात का उत्तर देती रिया से भी कहती है।
“भैया आप भी कपड़े बदल कर आराम कीजिए।” आनंद के कपड़े लाकर राघव को देती हुई चंद्रिका कहती है।
“हाँ भाभी.. तब तक आप रिया की सारी फाइल्स भी ले आइए।” राघव चंद्रिका के हाथ से कपड़े लेता हुआ कहता है।
चंद्रिका सारी फाइल्स लाकर देती है और सारे लोग अपने अपने कमरे में सोने चले जाते हैं।
चन्द्रिका अपनी बेटी के पास बैठी उसके बालों को सहलाती देवी माँ से उसके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती दिव्या के कमरे में बैठी थी। दिव्या अपनी आँखें बंद करके गहरी नींद में डूबी हुई थी। उसके चेहरे पर सुकून अंबर बिखरा हुआ था, जैसे कि एक मासूम बच्ची जो माँ की देखभाल में सुरक्षित महसूस कर रही हो। दिव्या की मासूमियत और उसकी सुरक्षा में लिपटी रात की शांति ने चन्द्रिका को माँ के रूप में विशेष भावना महसूस कराई। उसका हर लम्हा दिव्या के साथ जुड़ा हुआ था। चंद्रिका वैसे ही बैठी बैठी दिव्या के कमरे में ही सो गई।
खिड़की से छन कर आती धूप की किरणें चंद्रिका के चेहरे को प्यार से सहलाती हुई उसे नींद से जगाती है।
बगल में सोई दिव्या को देखकर चंद्रिका के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान आ गई थी। उसके कपाल पर प्यार अंकित कर धीरे से बिछावन छोड़ती समय देखती है तो सुबह के छः बजे थे। इसे स्कूल के लिए साढ़े सात निकलना होता है..थोड़ी देर बाद जगा दूँगी…सोचकर चंद्रिका कमरे से बाहर आ गई।
घर के पीछे बने बगीचे से चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ ने मानो पूरे घर में मनभावन सरगम बजा रखा था। चंद्रिका के पग स्वतः ही बगीचे की ओर बढ़ चले।
“आपलोग जगे हुए हैं। अभी चाय लाती हूँ।” चंद्रिका वहाँ दोनों मित्र को बातें करते देख कहती है।
“भाभी रिया चाय बना रही है। आप परेशान ना हो कहता हुआ राघव वही से रिया के मोबाइल पर चंद्रिका के लिए भी चाय लाने को मैसेज कर देता है।”
“बैठिए भाभी, मैंने आपकी चाय के लिए रिया को मैसेज कर दिया है।” चंद्रिका के लिए कुर्सी बढ़ाते हुए राघव कहता है।
माँ से मिल कर आती हूँ। अभी तो रामायण पढ़ रही होंगी। बैठने के बजाए चंद्रिका अपनी सासु माँ के पास जाने के लिए मुड़ गई।
“बहू दिव्या सोई है क्या अभी।” चंद्रिका को देखते ही सासु माँ पूछती हैं।
“हाँ माँ.. थोड़ी देर बाद जगा दूँगी।” चंद्रिका वही बैठती हुई कहती है।
“पहले राघव से विचार कर लेना बहू। क्या कहता है।” सासु माँ अपने विचार प्रकट करती हुई कहती हैं।
“जी माँ”…चंद्रिका उत्तर देती है।
“गुड मॉर्निंग भाभी”..रिया कमरे में चाय लेकर आती हुई कहती है।
“आप तो आज देर तक सोई भाभी। आज आपकी जगह मैं और माँ टहलने चले गए। माँ कह रही थी पाॅंच बजे ही जग जाती है चंद्रिका।” रिया दोनों के साथ बैठती हुई कहती है।
“हाँ.. आज तो सच में टहलने का समय निकल गया।” चाय का प्याला सासु माॅं की ओर बढ़ाती हुई चंद्रिका कहती है।
“कोई बात नहीं भाभी। कल से फिर हो जाएगा।” रिया कहती हुई चाय का प्याला चंद्रिका को देती है।
“नहीं बच्चों.. तुमलोग बगीचे में ही जाओ, चाय पियो। जाओ बहू।” सासु माॅं चंद्रिका से कहती हैं।
चंद्रिका और रिया चाय के साथ बगीचे में आ गईं।
“दिव्या के स्कूल का समय भी होने वाला है। भैया स्कूल भेजूॅं या नहीं।” चंद्रिका राघव से पूछती है।
“बिल्कुल भाभी.. जैसे नॉर्मल रूटीन है, सब कुछ वैसा ही चलेगा। आज यूनिवर्सिटी में एक घंटे का लेक्चर है। उसके बाद दिव्या के साथ ही पूरा समय देना है। दिव्या स्कूल से कब तक आ जाती है भाभी।” राघव चंद्रिका की बात का उत्तर देता हुआ पूछता है।
“भाईसाहब दो बजे तक आ जाती है।” चाय के अंतिम घूंट के साथ चंद्रिका बताती है।
“आपलोग बिल्कुल चिंता ना करें। ठीक हो जाएगी दिव्या।” राघव सांत्वना देते हुए आनंद और चंद्रिका से कहता है।
“मैं अब जगाती हूॅं उसे।” बोलकर चंद्रिका दिव्या के कमरे की ओर चली गई।
चंद्रिका, दिव्या के पसंद की अगरबत्ती जला, दिव्या को जगा कर रसोई में नाश्ता और टिफिन की तैयारी के लिए चली गई। अब तक उसकी गृह सहायिका सुधा आकर रसोई में होने वाले काम शुरू कर चुकी थी।
दिव्या उठकर घर के मंदिर में देवी माँ के सामने नित्य दिन की तरह थोड़ी देर बैठ जाती। उसने नित्य दिन की तरह ध्यान में रहकर देवी माँ के प्रति अपनी श्रद्धाभावना को व्यक्त किया। उसने माँ से आशीर्वाद मांगा और अपने जीवन की मार्गदर्शन के लिए उनसे प्रेरणा प्राप्त करने की कामना की। इस नित्य संबंध के माध्यम से वह अपने जीवन को एक शांति और आत्म-समर्पण के मार्ग पर रखने का संकल्प करती रही। उसने धूप, दीप और पुष्पों की अर्पण करते हुए अपनी आराधना को समाप्त किया और एक क्षण के लिए खुद को चैतन्य और शान्ति में समाहित पाया। इस अद्वितीय समय में वह अपने मन को साकार और निराकार दोनों प्राणियों में समाहित महसूस कर रही थी और अपने जीवन को एक उद्दीपन और मार्गदर्शन से भरा हुआ पा रही थी।
ध्यान के बाद दिव्या दादी से और सब से मिलकर विद्यालय के लिए तैयार होने लगी।
रिया और राघव अपने घर प्रस्थान कर गए। आनंद दिव्या को पहुँचाने स्कूल निकल गए।
सास बहू सबके जाने के बाद साथ बैठती हैं।
“माँ दिव्या की ये समस्या खत्म तो हो जाएगी ना।” चंद्रिका का चेहरा बता रहा था कि दिव्या की चिंता उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है। चंद्रिका का चेहरा बता रहा था कि उसकी प्यारी बेटी दिव्या की चिंता उसे दिलों की गहराईयों में छू रही थी। उसके आंखों में माँ की ममता और चिंता की झलकें थीं, जो चंद्रिका के चेहरे पर बसी हुई थीं। उसकी वाणी में एक छलकती हुई दुखभरी भावना थी, जो माँ के दिल से निकल रही थी।
“चिंता मत करो.. देवी माँ पर भरोसा रखो.. सब ठीक हो जाएगा।” माँ चंद्रिका को भरोसा देती हुई कहती हैं।
शाम में राघव ने अपने घर की छत पर दिव्या को बुलाया, जहां वे बैठकर दिलचस्प बातें कर रहे थे। स्कूल की ताजगी, सहेलियों की दिलचस्प कहानियाँ, फाइनल एग्जाम की तैयारियाँ – इन सभी मुद्दों पर वार्ता हो रही थी। राघव ने दिव्या की मेहनत और उत्साह को समझा और उसकी बातों में उसका साथ देकर उन्हें प्रेरित करता रहा।
दिव्या भी अपनी स्कूल की यात्रा, विद्यार्थी जीवन और दोस्तों के साथ बिताए लम्हों का विस्तार से विवरण दे रही थी। राघव ने भी अपने स्कूल और दोस्तों के साथ अनुभवों को साझा किया। वे एक दूसरे के सपनों और लक्ष्यों के प्रति समर्थन और समर्पण का महत्व समझ रहे थे, जिससे उनकी दोस्ती का संबंध मजबूत हो रहा था।
चंदनी रात की सुकून भरी महक, राघव और दिव्या की बातचीत को और भी असरदार बना रही थी। छत पर बैठकर, सितारों की रौशनी में, वे अपने आत्म-विकास, सपनों, जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बातें कर रहे थे। उनकी बातचीत ने एक दूसरे की जीवन दृष्टि को विस्तार से समझने में मदद की और उनके बीच एक गहरा संबंध बना दिया, ऐसी जाने कितनी बातें दिव्या में उत्साह का संचार कर रही थी।
“सबसे ज्यादा किस काम में मज़ा आता है बेटा तुम्हें।” राघव दिव्या से पूछता है।
“नृत्य और देवी माँ से बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है।” दिव्या के चेहरे पर ये कहते हुए खुशी और दिव्यता छा गई थी।
“वाह.. देवी माँ तुमसे बातें करती हैं।” राघव भी दिव्या की बात पर उसी तरह से उत्साह दिखाता हुआ पूछता है।
“हाँ अंकल.. बचपन से ही”… बोलती दिव्या का चेहरा आभामय हो उठा था।
“ये तो बहुत अच्छी बात है और क्या क्या करती हो तुम। कुछ ऐसा जो तुम करना चाहती हो। जो तुम्हारे जीवन का ध्येय हो।” राघव दिव्या की हर बात में रुचि दिखाता हुआ पूछता है।
“नहीं चाचा जी, अभी कुछ सोचा नहीं है।” दिव्या बोलते हुए असहज हो गई थी।
राघव दिव्या की असहजता समझता हुआ बिना आगे कुछ और पूछे रिया को आवाज देता है।
“बेगम आज हम दोनों को भूखा रहने की सजा मिली है क्या?” राघव मस्ती भरी आवाज में रिया से जोर से पूछता है।
“खफ़ा खफ़ा से मेरे सनम लगते हैं”…
राघव ने गाना शुरू ही किया था कि रिया वेज मंचूरियन और कॉफी लेकर आ गई।
“बच्ची के सामने तो लिहाज रख लिया करो।” रिया थोड़ी खफा होती हुई कहती है।
“मेरी बच्ची खिलखिला रही है और क्या चाहिए।” राघव दिव्या को हॅंसते देखकर कहता है।
चाची बहुत ही स्वादिष्ट बने थे। मेरा स्टडी टाइम हो गया है। मैं चलती हूँ चाचा जी।” दिव्या दोनों से कहती हुई उठ खड़ी होती है।
“ओके बेटा.. फिर मिलते हैं”… राघव दिव्या से कहता है।
दिव्या अपने घर जाने जाने के लिए सीढ़ियां उतरने लगी और रिया राघव के पहलू में कुर्सी खींचकर बैठती हुई पूछती है, “राघव, दिव्या से क्या बात हुई?” “ज्यादा कुछ नहीं, लेकिन कुछ तो है जो उसे असहज कर गया और दूसरी बात देवी माँ उससे बात करती हैं। देखते हैं, आगे क्या क्या किया जा सकता है।” राघव एक गहरी साॅंस लेता हुआ कहता है।
अगला भाग
दिव्या(भाग–4) : Moral stories in hindi
दिव्या(भाग–2) : Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली