दिव्या(भाग–2) : Moral stories in hindi

राघव के घर को फूलों से इस तरह से सजाया गया था, जैसे नई नवेली दुल्हन विदा होकर आ रही हो। दरवाजा फूलों की बेहद सुंदर माला और रंग बिरंगे आलोकों से सजा हुआ था। गहरे गुलाबी, लाल और हरा फूल भी एक नई नवेली दुल्हन की तरह उत्साहित थे।

कमरे में फूलों की रंगीन सजावट भरी हुई थी, अंदर जाते ही, नए जीवन की शुरुआत को चिन्हित करने वाले फूलों का संगम नजर आता था, जैसे कि राघव और उसकी नई दुल्हन एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हों। सोफे पर बिछी गुलाबी और सफेद गुलाबों की चादर उनके प्यार और संबंधों में मिठास से भरी भावना भरने के लिए तैयार थी। कमरे का प्रत्येक कोना चमकीले फूलों से चमक रहा था, जैसे कि रोमांटिक सफर की शुरुआत करने के लिए संगीतमय चित्र उकेरे जा रहा हो।

साथ ही “फूलों की रानी.. बहारों की मल्लिका” पूरे जोर शोर से बजाया जा रहा था। खाने की खुशबू से पूरा घर सराबोर हो रहा था। गाने की मिठास और खाने की खुशबू ने घर को एक सफल और संवादपूर्ण जगह में बदल दिया, जैसे कि एक स्वादिष्ट बातचीत का अवसर आया  हो। सांगीत के सुरों ने एक रंगीन वातावरण बनाया, जिसने सभी को मिलकर आनंद लेने के लिए प्रेरित किया। 

शाम के छः बजे राघव के घर के दरवाजे पर एक गाड़ी आकर रुकी, जो आनंद की थी। उसमें से आनंद के साथ राघव उतरता है। घर की सजावट ने राघव को मंत्रमुग्ध बना दिया। सुंदर फूलों से सजीव हुए घर का माहौल उसका मन मोह रहा था। छोटे छोटे बल्बों की रौशनी ने हर कोने को मिठास और चमक से भर दिया था। राघव थमे हुए समय को महसूस कर रहा था, जैसे कि हर चीज इस खास मौके की महत्वपूर्णता को दर्शा रही थी। आनंद ने राघव के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी, जब वह अपने नए जीवन के साथ घर की सुंदरता का आनंद लेते हुए बरसों बाद घर को एक अलग दृष्टि से देख रहा था।

आनंद और राघव के उतरते ही रिया भी उतरने लगती है।

“नहीं नहीं भाभी, आप अभी नहीं थोड़ी देर बाद उतरेंगी।” आनंद रिया को उतरते देख कहता है।

सुनकर रिया गाड़ी के अंदर ही बैठी रहती है।

“इतनी सुन्दर सजावट”.. राघव मुग्ध सा खुद के घर को देखता हुआ आश्चर्यमिश्रित आवाज में कहता है।

“तू हमेशा कहा करता था ना कि जब अपनी दुल्हन लाऊँगा तो पूरा घर सिर्फ फूलों से सजेगा और एक ही गाना बजेगा… फूलों की रानी.. बहारों की मल्लिका।” आनंद राघव से कहता है।

“तुझे ये सब याद था!” राघव  प्रसन्नता से पूछता है।

“दिन में कम से कम दस बार तो तू ये बोलता था। मैं क्या कोई नहीं भूल सकता था।” आनंद राघव को छेड़ता हुआ मुस्कुरा कर कहता है।

इस बात पर दोनों दोस्त हँसने लगते हैं। तभी आनंद की माँ, चंद्रिका और दिव्या दीपों से सजी थाल लेकर आती हैं। राघव, चंद्रिका और दिव्या को हैलो बोलता हुआ आनंद की माँ के चरण स्पर्श के लिए झुक गया।

चंद्रिका बहुत प्यार से रिया को गाड़ी से उतारती है और आनंद की माँ, राघव और रिया की आरती कर टीका लगाती हैं। फिर दोनों को घर के अंदर आने कहती हैं।

“रिया, “इनसे मिलो.. ये हैं तुम्हारी गृह सहायिका विमला। बहुत साफ़ सफाई से सारा काम करती हैं और खाना तो बहुत स्वाद का बनाती हैं।” चंद्रिका वही खड़ी विमला का परिचय रिया से कराती हुई कहती है।

रिया विमला को देखकर मुस्कुराती है।

“ओह.. हो.. खाने की इतनी सुन्दर खुशबू…कहीं भी रह ले यार.. अपने देश की.. अपनी मिट्टी की.. अपने घर की बात ही निराली होती है।” राघव घर के अंदर से आती पकवानों की सुगंध के नथुनों में जाते ही कहता है।

“फिर भी तेरा मन यहाँ लगता नहीं। लौटना तो तुझे वही है।” ये कहते हुए आनंद के चेहरे पर उदासी तैर गई।

“वो मेरी कर्मभूमि है यार। रिया का भी सारा काम वही है।” आनंद की उदासी देखकर राघव उसके हाथ पर अपना हाथ रखके सांत्वना देते हुए कहते हैं।

इतने में चंद्रिका सबके लिए चाय ले आती है और रिया दिव्या के साथ ही बैठकर बातें करने लगती है।

“लगता है तुमलोग सारी बातें आज ही कर लोगे। राघव और रिया थक गए होंगे।” आंनद की माँ आनंद और राघव को बिन इधर उधर ध्यान दिए बातें करते देख कहती हैं।

“जाओ बच्चों तुम दोनों फ्रेश हो जाओ। तब तक मैं और चन्द्रिका खाना लगा देते हैं। दिव्या जा चाची को गुसलखाना दिखा दे।” राघव और रिया से कहती हुई आनंद की माॅं दिव्या को भी निर्देश देती हैं।

“जी दादी”.. कहकर दिव्या रिया को साथ लेकर चली गई।

“भैया आप भी स्नान कर लीजिए।” कहकर चंद्रिका रसोई का काम देखने उठ गई।

“आनंद दिव्या किस क्लास में है। बहुत प्यारी बच्ची है।” राघव आनंद से पूछता है।

“बारहवीं में है।” आनंद थोड़ा असहज होते हुए कहते हैं।

“कोई प्रॉब्लम है क्या? तेरे माथे पर अचानक चिंता की रेखाएँ झलकने लगी।” राघव आनंद के चेहरे पर आने वाली तनाव की रेखाओं को देखकर पूछता है।

“नहीं कुछ नहीं.. चल फ्रेश हो ले.. फिर खाना खाते हैं।” आनंद कुर्सी खिसका कर खड़े होते हुए कहते हैं।

“तेरे इंतजार में मैंने भी सुबह से ठीक से नहीं खाया है।” आनंद राघव से कहता है।

“ठीक है” का संक्षिप्त उत्तर देकर रघव अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ गया।

रिया स्नान ध्यान करके दिव्या के साथ रसोई की तरफ बढ़ गई। दोनों की बातें करने और खिलखिलाने की आवाज़ से आनंद की माँ रसोई से बाहर आ गईं।

“रिया बिटिया.. कल तुम्हारी पहली रसोई की रस्म करेंगे। फिर अपना घर अपने हाथों से संभालना।” आनंद की माँ रिया को रसोई के दरवाजे पर देख कर कहती हैं।

रिया अब तो तुम भी सासु माँ की लाडली बहू हो गई हो “और मेरी प्यारी देवरानी भी।” चन्द्रिका अपनी सासु माँ की गलबहियाँ करते हुए हॅंस कर कहती है।

“मुझे तो पूरा परिवार मिल गया है।” रिया सारा संकोच छोड़ आकर दोनों के गले लग गई।

“अरे, अरे मैं भी तो हूँ।”.. बोल कर दिव्या तीनों के गले लग गई।

“तू तो हमारी परी है।” दादी पोती संग लाड़ करती हुई कहती हैं।

“आपलोगों के लाड़ प्यार में नौ बजने को आ गए। हम गरीबों को खाना खिला दो माते।” राघव रसाई में खड़ा सभी को एक साथ गले लगे देख कर चुटकी लेता हुआ कहता है।

“तू बिल्कुल ही नहीं बदला।” आनंद की माँ प्यार और ममता भरी नजरों से आनंद की ओर देख कर कहती हैं।

“रिया, राघव भाईसाहब वहाँ भी ऐसे ही करते हैं या अपने देश की मिट्टी का असर है।” चन्द्रिका हॅंसते हुए रिया से पूछती है।

“मत पूछिए भाभी… कभी कभी तो राघव की बातें मेरे सिर पर से निकल जाती हैं। तब कहते हैं आनंद होता तो झट से समझ जाता। आपलोगों को बहुत याद करते हैं।”  रिया मुस्कुरा कर चंद्रिका से कहती है।

“फिर भी इतना समय ले लिया यहाॅं आने में।” चंद्रिका शिकायती लहजे में कहती है।

“क्या करें भाभी… काम छोड़कर कभी आना नहीं हो सका। जानती हैं भाभी, अभी शोध पत्र से ज्यादा हमलोगों को भारत आने और आपलोगों से मिलने का आकर्षण खींच लाया।” रिया चंद्रिका से कहती है।

“पापा और चाचा को बुला लाओ। तुम सब अब खाना प्रारंभ करो। माँ आप भी आ जाइए।” चन्द्रिका दिव्या को निर्देश देती हुई सासु माॅं से कहती है।

“भाभी आप दोनों भी हमारे साथ बैठ कर खाइए।” राघव चंद्रिका और रिया से कहता है।

“आप लोग के बाद मैं और भाभी आराम से बातें करते हुए खाएंगे।” रिया इत्मीनान से कहती है।

“जी मैडम.. आपकी आज्ञा सिर माथे पर।” राघव मजाकिया लहजे में कहता है।

“कौन बेलन खाए.. कल से रसोई तो यही सम्भालेगी।” आनंद की ओर देखकर एक आँख दबाता हुआ राघव कहता है

राघव की बात पर सभी हँसते हुए खाने के लिए बैठ गए।

“पर एक बात सुन लीजिए माते, अगर आपकी बहू ने खाना स्वादिष्ट नहीं बनाया तो आपके हाथ का बना ही खाऊँगा।” हाथ जोड़कर झुकते हुए राघव ने कहा।

“कोई बात नहीं भैया। रसोई में कमाल आप भी दिखा सकते हैं।” चंद्रिका मुस्कुरा कर राघव से कहती है।

“एक दूसरे की टाँग खिंचाई हो गई हो तो खाना खा लिया जाए।” आनंद की माँ प्यार से सबको देखती हुई कहती है।

दिव्या राघव और रिया से मिलकर बहुत खुश थी। जब तक सो नहीं गई, उनकी ही बातें करती रही।

सब अपने अपने काम में लग गए थे। इस बीच मिलना मिलाना भी होता रहता था।

दिव्या के स्कूल में वार्षिकोत्सव था। जिसके लिए दिव्या अपने मम्मी, पापा और दादी के साथ राघव और रिया को भी आमंत्रित करती है।

रविवार होने के कारण सब फ्री थे। सबके हामी भरने से रिया बहुत खुश थी।

वार्षिकोत्सव में राधा कृष्ण की रास लीला दिव्या को अकेले करते देख साथ ही उसके चेहरे पर उभरते भाव देख राघव और रिया बहुत प्रभावित होते हैं।

सब वार्षिकोत्सव के बाद शहर के प्रसिद्ध रेस्तरां में डिनर लेने चले गए।

“दिव्या बेटा तो अद्भुत नृत्य करती है। लगा ही नहीं कि अकेला कोई इंसान रासलीला कर रहा हो। हाव भाव भी बहुत मनमोहक थे। तुम लोगों ने इतने दिनों से बताया क्यूँ नहीं था कि हमारी बिटिया इतनी प्रतिभाशाली है।” राघव आनंद और चंद्रिका से शब्दों में नाराजगी भर कर कहता है।

“कैसे पूरा मंच तुम्हारे अकेले थिरकते कदमों ने सम्भाल लिया.. वो भी रासलीला, वाह।” रिया एकदम खुश होकर कहती है।

“चाची पता नहीं कैसे खुद ही हो जाता है।” दिव्या शर्माते हुए कहती है।

बातें करते करते खाना खाया गया। सब डिनर कर अपनी अपनी गाड़ी में बैठ गए। दिव्या राघव और रिया के साथ उनकी गाड़ी में बैठती है।

रिया और दिव्या पीछे बैठती हैं और दोनों के बीच ढ़ेर सारी बातों का सिलसिला निकल जाता है।

“पसंद है ये सब मुझे..पर अपनी इच्छा से करुँगी… ज़बरदस्ती मत करो.. मत करो।”  गाड़ी में दिव्या अचानक चीखने लगी थी।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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आरती झा आद्या

दिल्ली

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