दिल से बँधी एक डोर… – रश्मि प्रकाश

कुछ रिश्ते हमारे अपने होते हैं जो खून के होते हैं, वो रिश्ता हम बखूबी निभाते रहते हैं ऐसा ही एक रिश्ता भाई बहन का होता है।

बचपन में संग लड़ते झगड़ते बड़े हो जाते, उसके बाद घर गृहस्थी में व्यस्त हो जाते हैं पर ये कहानी ऐसे रिश्ते की है जो ना खून का है ना किसी जान-पहचान का ,बस रिश्ता है दिल का जो एक अटूट बंधन में बँधता गया।

पटना से दिल्ली फिर मुम्बई ये यात्रा नीरा की जिन्दगी में उस अजनबी से मिले अपनेपन का अहसास करवा जाएगी वो कभी सोची ही नही थी।

पटना से दिल्ली तक के सफर में एक छोटा बच्चा और उसकी मम्मी का साथ मिला था। पर दिल्ली से मुम्बई तक की यात्रा के दौरान उसे बाबू मिल गया था। बाबू तो नीरा उसे प्यार से बोलने लगी थी असल में उसका नाम निकुंज था। सफर के दौरान बातचीत करते निकुंज के मुंह से दीदी सुन कर नीरा को बहुत अच्छा लगा।

‘‘ आप मुम्बई क्यों जा रही है?‘‘ निकुंज ने पूछा

‘‘ मेरे पापा की बरसी है कल तो घर जा रही हूं।‘‘ नीरा ने कहा

‘‘ अरे मेरे पापा की भी बरसी है कल ,पर मेरा एक इन्टरव्यू है कल तो आज ही घर से निकलना पड़ा।‘‘ निकुंज ने कहा

‘‘लगता है हम कुंभ मेले में बिछड़े भाई बहन हैं तभी एक ही दिन हम दोनों के पापा की बरसी है।‘‘ कहकर नीरा पापा को याद कर उदास हो गई

‘‘ अरे दीदी उदास क्यों हो गई। वो जहां भी होंगे हमे आशीर्वाद दे रहे होंगे।‘‘ निकुंज ने कहा

नीरा को निकुंज बहुत सीधा सरल स्वभाव का लड़का लगा।

पता नही क्या बात थी उसमें की पहली मुलाकात में ही एक अपनेपन का एहसास हो रहा था।


मुम्बई तक बहुत कुछ घर परिवार की बातें बताई निकुंज ने।

उसके बाद मोबाइल नम्बर देते हुए बोला,‘‘ कभी मेरे लायक कोई जरूरत हो तो मुझे आप बोल सकती हो। सच कह रहा हूं दिल से ये रिश्ता निभाऊंगा।‘‘

नीरा कुछ नहीं बोली पर उसके मन में भी कही ना कही निकुंज अपनी जगह बना चुका था।

घर पहुंच कर माँ को निकुंज के बारे में बताई तो वो बोली,‘‘ ऐसे किसी अजनबी पर ऐतबार करना ठीक नहीं है। पता नहीं कैसा होगा।‘‘

‘‘ माँ कल उसके भी पापा की बरसी है देखो क्या संजोग है…..है ना अजीब इत्तेफाक।‘‘ नीरा ने कहा

पता नही नीरा की बातों का असर था या कुछ और पर माँ ने कहा,‘‘ अगर तुम्हारा दिल कहता है तो एक भाई और हो गया तुम्हारा।‘‘( पहले से उसके अपने दो भाई थे)

कुछ दिन मुम्बई रहकर नीरा पटना आ गई।

नीरा ने जब ये बात पति निलय को बताई तो वो बहुत नाराज़ हुए,‘‘ ये क्या भाई बनाने का शौक चढ़ा है….दो भाई कम थे जो तीसरा भाई भी चाहिए।‘‘

पता नही कहते हैं कुछ रिश्ते को आप चाहे कितना तोड़ने की कोशिश करें चाह कर भी नहीं तोड़ सकते।

वक्त के साथ साथ नीरा निकुंज के बारे में जितना सोचती उसको लगता वो सच में अच्छा इंसान हैं दीदी बोला है मुझे ,तो मै उसका मान भी रखूंगी।

(नीरा अपने छोटे भाईयों और अपने बच्चों को भी प्यार से बाबू कहा करती थी।आदतन निकुंज को भी बाबू कहकर बोल जाती थी)

एक दिन नीरा ने निकुंज को मैसेज किया,‘‘ कैसे हो बाबू….जॉब मिल गई ?”

‘‘नहीं दीदी, बहुत दुखी हूँ…….पता नहीं कब नौकरी मिलेगी।अब तो माँ (स्कूल शिक्षिका) से पैसे लेते हुए भी। शर्म आती है।‘‘निकुंज ने उदास हो कहा

नीरा उसको हमेशा प्रोत्साहित करती रहती और मैसेज और बातों से उसका हौसला बढ़ाती रहती जिससे दोनों के बीच रिश्ता और मजबूत होता चला गया।

कुछ दिनों बाद राखी का त्यौहार आने वाला था।


बाबू ने मैसेज किया,‘‘ दीदी आप मुझे राखी भेजो ना! बोलो ना भेजोगी?

नीरा ने हाँ कह दिया।

जब वो तीन राखियां लाई तो पति ने पूछा ,‘‘ ये तीन राखियां क्यों?‘‘

‘‘ मैं निकुंज के लिए भी ले कर आई हूं। राखी में कही जा नहीं पाउंगी तो उसके पास भी भेज रही।‘‘

‘‘मना किया था ना ये नए रिश्ते बनाने से पर तुम सुनती कहा हो……अरे तुम क्यूं नहीं समझती आजकल के लड़के को….।‘‘निलय गुस्से में बोले

नीरा ने फिर भी राखी भेज दी।

माँ को फोन कर के निलय की बातें भी बताई।

‘‘ बेटा मैं माँ के साथ साथ एक बहन भी हूं तेरी भावना समझ रही हूं। निलय की अपनी कोई बहन नहीं है शायद इसीलिए वो समझ नहीं पा रहे पर तुम चाहती हो भाई बहन का रिश्ता बना रहे तो मैं तुम्हारे साथ हूँ।‘‘

माँ के भरोसे पर नीरा को हिम्मत मिली।

राखी के दिन बाबू का फोन आया,‘‘ थैंक्यू दीदी, पता नहीं क्यों जब आप मिली थी तभी मैंने आपको दीदी मान लिया। मेरी भी एक बड़ी बहन है पर आपके साथ मुझे बहुत अपनापन लगा था इसलिए मैं आपके साथ रिश्ता रखना चाहता था। देखो आप दोनों की राखी।(बाबू राखी दिखाते हुए बोला) दीदी अभी तो मैं आपको कुछ नहीं दे सकता आप ही से माँग रहा हूं अपना आशीर्वाद दे दो ताकि जल्दी मेरी जॉब लग जाए….जॉब लगते आपको अच्छा सा गिफ्ट दूंगा।‘‘

‘‘चल मुझे कोई गिफ्ट नहीं चाहिए बस तुम खुश रहो और अच्छी नौकरी कर के माँ की मदद करो।‘‘ नीरा ने कहा

कभी कभी बातें हो जाती कभी मैसेज एक दिन बाबू ने फोन करके बताया ,“उसकी नौकरी लग गई…..इस बार की राखी पर अपनी दीदी के लिए तोहफा ले कर आऊंगा। “

सच में उस साल की राखी पर एक सुन्दर सी साड़ी तोहफे में मिली नीरा को।

आज भी नीरा और बाबू अपना रिश्ता निभा रहे। बिना किसी लालच के क्योंकि दोनों को एक दूसरे को देने के लिए बस प्यार और अपनापन है।

आज इस राखी फिर से बाबू के लिए एक राखी नीरा भेजेगी , प्यार के बंधन को और मजबूत करने के लिये ताकि दिल का रिश्ता यूँ ही जुड़ा रहे।

 
दोस्तों समाज में बहुत तरह के लोग मिलते हैं पर सब के साथ हम रिश्ते नहीं जोड़ते। पर अगर किसी से मिलकर ऐसा लगता है कि ये रिश्ता दिल का है तो उसे निभाने में हर्ज नहीं होना चाहिए। मन में भाव अच्छे हो तो सब अच्छा नजर आता।

आप मेरी बात से कितने सहमत होंगे पता नहीं।

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#दिल_का_रिश्ता

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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