दिल का रिश्ता – तृप्ति शर्मा

“सुरभि,, नाश्ता ले आओ ,मम्मी मेरे कपड़े,मेरा लंच कहाँ है”

रोज  सुबह ऐसा ही शोर होता सुरभि के घर। पति रोहन और बेटा पार्थ रोज अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए ऐसे ही शोर मचाते। सुरभि कभी इधर कभी उधर घूमती हुई उनकी हर जरूरतों को पूरा करती रहती। खुशी के साथ-साथ उसे कभी कभी घमंड भी होता कि यह घर,मेरे पति और मेरा बच्चा मुझे कितन मान देते हैं।

पर कुछ दिन से उसका मन बेचैनी से भरा हुआ था ।उसे एहसास हो रहा था कि उसके पति न तो उसे कही लेकर जाते हैं और न ही किसी से मिलवाते है।

उसके मन में यह बात घर कर गई थी कि जिस पति और बच्चे के लिए मैं दिन-रात एक करती हूं उनके लिए मेरे पास समय ही नहीं है तरस गई थी वह पति के स्नेह और बेटे के साथ समय बिताने के लिए।

पति दिन भर बिजनेस के सिलसिले में ऑफिस रहते या बाहर जाते और संडे के दिन या छुट्टी वाले दिन अपने पुराने दोस्तों के साथ अपना समय व्यतीत करते और बेटा अपने दोस्तों के साथ मस्त हो जाता।

सुरभि की तरह ही बालकनी में पड़ा हुआ अखबार रोज इस बात का इंतजार करता कि कोई उसे अपना समय दे। आज सुरभि को अपने अखबार पर तरस आ ही गया। आज उसने अखबार का वक्त और स्थान दोनों ही बदल दिया ।चाय की चुस्कियों के साथ टेबल पर बैठकर उसने अखबार पढ़ना शुरू किया।

अखबार के पिछले पन्ने पर एक विज्ञापन पर उसकी नजर गई विज्ञापन पर लिखा था अपनी पुरानी ख्वाहिशें पूरी करें ।सुरभि सोच में पड़ गई यह कैसा विज्ञापन है पर उसने सोचा कि चलो कुछ नया किया जाए जिंदगी में कुछ नया रंग भरा जाए । अकेलेपन से जूझती सुरभि ने उस विज्ञापन को अच्छे से पढ़ा और उसमें दिए गए फॉर्म को भर दिया।



अनजानी खुशी से भर गई सुरभि । पता नहीं कितनी ही ख्वाहिशें उसकी डायरी में दफन हो चुकी थी। जो पूरा होने की उम्मीद लिए कब की दम तोड़ चुकी थी।

उसने अपने मन और डायरी के पन्नों को खोल सारी ख्वाहिशों से उस विज्ञापन के फॉर्म को भर दिया l रोज सुबह की भागदौड़ के बीच उसे फोन आया उसकी दबी ख्वाहिशें उसे बुला रही थी।

लॉन्ग ड्राइव पर जाना ,बारिश में रोहन के साथ भीगते हुए पकोड़े खाना। पर मन में खटका भी लगा हुआ था कि अनजान लोग उसकी खुशी और ख्वाहिशें कैसे पूरी करेंगे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था पर फिर भी पता नहीं क्यों उसका मन चाह रहा था कि एक बार जाकर देखें ।रोहन की तारीफ सुनना न जाने ऐसी कितनी ही ख्वाहिशे थी जो पूरी नहीं हो सकी थी ।आज उनके पूरे होने का समय आ गया था ।

मन के झंझावातों से जूझ ही रही थी कि उसे फोन आया बाहर गाड़ी इंतजार कर रही है आपका। वो झटपट तैयार होकर बाहर निकली। गाड़ी के अंदर रोहन बैठे थे ।मुस्कुराकर बोले ,

“चले लॉन्ग ड्राइव पर “

सुरभि हैरान हो गई और गाड़ी में बैठ कर टुकुर टुकुर उनकी तरफ देखने लगी। रोहन बोले,

“मुझे माफ कर दो ,सुरभि , मैं बिजनेस और पैसे के घमंड में चूर हो गया था । तुम्हें लगभग भूल ही गया था कि तुम भी हो,तुम्हारी भी कुछ ख्वाहिशें हैं। मुझे तुम्हें सब से मिलवाने में शर्म आती थी । मुझे यह बताने में शर्म आती थी कि तुम एक हाउसवाइफ हो।

भूल गया था कि जिस घर को तुम इतने प्यार से संभालती हो वह मेरा ही घर है और मैं जिस बेटे को अपनी तरह बनाना चाहता हूँ वो तुम्हारा भी है उसी ने मुझे मेरी गलती का एहसास करवाया है आज।

उसी  ने मुझे समझाया कि आज मैं जो जिंदगी की राह में आगे बड़ा हूंँ उसमें सबसे बड़ी देन तुम्हारी है। तुम मेरे साथ नहीं होती तो मैं इतना बड़ा बिजनेस खड़ा नहीं कर पाता,”

सुरभि आँखों में आँसू लिए अपलक उन्हें निहार रही थी।बहुत खुश थी वो । उसके बेटे ने अपने बेटे होने के फर्ज के साथ साथ अपनी मां को उसके दिल का रिश्ता भी वापस दिलाया था।

तृप्ति शर्मा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!