दिल का बंटवारा कभी न हो••••• – अमिता कुचया

एक  गांव के पंच परिवार की बात है। उस परिवार के मुखिया रामेश्वर प्रसाद  बहुत अच्छे नेक दिल इंसान है। उन्हें कोई भी ग़लत  बात करें तो वो सहन नहीं कर सकते हैं।

उनके परिवार में उनके  तीन  बेटे और एक बेटी है।वो घर में जो बात कर दे तो पत्थर की लकीर बन जाती है। उनका गांव में भी मान सम्मान है। समाज में उनकी बहुत इज्जत है।उनकी बेटी का ब्याह भी हो गया है। तीनों बेटों की शादी भी अच्छे घरानों में हो गई।

पर कहते हैं कि समय सबसे ज्यादा बलवान होता  अब परिवार में एक साथ खाना बनता, एक साथ सब त्योहार भी साथ में मनाये जाते ,सब साथ में रहने से काम तो बढ़ता ही है।  कुछ समय  तक ठीक चलता रहा •••

धीरे-धीरे समय के साथ  नाती पोते हुए अब कोई

काम समय पर नहीं हो पा रहा है ,यह सब देखते हुए भी रामेश्वर प्रसाद जी चुप रहने लगे। उन्हें लगा कि बहूओं पर बच्चों की  जिम्मेदारी के कारण देर  हो जाती है। एक दिन बहुत देर में रामेश्वर जी  को खाना परोसा गया । अब बात बहुत बढ़ती हुई लगने लगी। वे काफी देर तक सोच विचार करते रहे। उन्होंने सोचा कि क्या किया जाए। कुछ दिनों के बाद____

बड़ी बहू से रामेश्वर जी कहने लगे बेटा  हम चाहते हैं कि सब अपनी – अपनी गृहस्थी संभालो, और सुखी रहो।

इतना सुनते ही बड़ी बहू जानकी कहने लगी

क्या!

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ऐसा कैसे हो सकता है। मेरे होते हुए ऐसा नहीं होगा बाबू जी,आपको कोई बात बुरी लगे तो तुंरत बोले ,सब साथ में  है।सब सुनेंगे।

समाज में सब क्या सोचेंगे। अभी भी समाज में हमारी परिवार की मिसाल दी जाती है। हमारे घर में कितनी एकता है।




मैंने  इस परिवार को सदैव ही जोड़कर रखने की कोशिश की है। बहू किसी को कुछ ग़लत नहीं कह रहा हूं।

इतना सुनते ही दूसरी और तीसरी बहू भी अपने- अपने कमरे से निकल आई।

आज मौसम भी भारी हो रहा है  ऐसा लग रहा हैं कि भारी चेतावनी दे रहा हो  बादल जोर शोर से गरज रहे हैं। अभी बड़े पुत्र राजन को बुलाया  , और कहा -दोनों

भाइयों को भी बुला लाओ।  कुछ बात करनी है।

इतने में तेज – तेज बारिश भी होने लगी। घर में माहौल देखकर ऐसा लगने लगा कि जैसे भारी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। क्योंकि बच्चों की जिम्मेदारी के बीच  नियम,  कायदे को मानना मुश्किल हो रहा था।

अब क्या, दोनों भाई और उनकी पत्नी भी सब बैठे  ।

फिर रामेश्वर प्रसाद जी ने कहा तुम्हारा अपना -अपना काम है। तो गृहस्थी भी अलग अलग कर लो । मेरे जीते जी  ताकि कभी मुसीबत आये तो एकजुट हो जाओ। मन में कोई मैल न रहे इस तरह बाबूजी का कहना था कि दोनों भाई एकदम से राजी हो गए तभी बड़े ने कहा -तुम लोग इसी दिन का इंतजार कर रहे थे। क्या?

दोनों भाइयों ने कहा कि अपना कमाते हैं तो जोड़े भी नहीं क्या ?

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उनकी पत्नियों ने भी सुर में सुर मिलाया।कहा कि इसमें कोई बुराई नहीं है। बाबूजी सही कह रहे हैं। कम से कम उनका काम भी समय पर हुआ करेगा।  जिसके साथ रहेंगे  वो उनके समय के अनुसार  उनका ख्याल रखेगा।

अब तो रामेश्वर प्रसाद जी को

पैरों तले जमीन खिसकने का आभास हुआ।

उनको लगने लगा मैं भी कितनी बड़ी गलतफहमी जी रहा था कि मेरे परिवार में कितनी एकता है।

अब तो उन्होंने ठान लिया था कि  परिवार को बिखरने नहीं देंगे। चाहे जितने भी आंधी तूफान क्यों न आ जाए।

तीनों बेटों से पूछा कि  हवेली  तीन हिस्सों में कर दूं ठीक रहेगा। तुम लोग क्या चाहते हो बताओं।

तुम लोग के पास तो अपना अपना काम है ही,

इतना सुनते ही  बड़ी बहू-  बेटा कहने लगे कि हवेली नहीं बंटेगी अगर बंटेगी तो  हम लोगों में तेरे मेरे की भावना आने लगेगी।

फिर दोनों भाइयों को भी एहसास होने लगा कि हममें अभी भी अपनापन है। यदि घर बंट गए तो कहीं मन भी न बंट जाए। दोनों भाइयों ने भी घर के बंटवारे के लिए मना किया।

इस तरह घर बंटने से बच गया। और तीनों भाई रामेश्वर प्रसाद जी का ख्याल रखने लगे।

आज रामेश्वर प्रसाद जी को लगने लगा कि यदि आदमी औरतों के कहने में न चले , साथ ही जिम्मेदारी को निभाने की कोशिश करें।  तो परिवार में एकता बनीं रह सकती है।

इस तरह आज बड़ी बहू रामेश्वर जी का और अच्छे से खाने पीने से लेकर छोटे बड़े सभी कामों को सही समय पर करने लगी। क्योंकि उसके दोनों बेटे बड़े हो गये थे। इस तरह उन्होंने परिवार को बिखरने से बचा लिया। और उनमें  एकता और अपनापन भी बना रहा।

सखियों  -परिवार  में बड़े बुजुर्ग हो तो उनका सम्मान किया जाना चाहिए।  क्योंकि वो ही परिवार जोड़ कर रख सकते है।एक साथ रहकर भी जिम्मेदारी निभाई जा सकती है।

 

आपकी सखी

 

अमिता कुचया

 

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