दिखावे की जिंदगी – दिव्या चाँदवानी : Moral Stories in Hindi

सीमा  मेरी बचपन की सहेली हमेशा से ही दिखावे में बहुत विश्वास करती थी l हर तीज त्योहार से लेकर छोटे-छोटे मौके पर नए कपड़े और नए सामान लेना उसकी आदत में शामिल था उसकी आदत से उसके माता-पिता भी परेशान रहते थे लेकिन फिर भी यह सोचते की धीरे-धीरे वक्त के साथ उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाएगा किंतु उसके इस व्यवहार में तनिक भी बदलाव न आ सका l

माता-पिता ने सोचा की विवाह उपरांत जिम्मेदारियां के आने से उसकी यह आदत तो अवश्य बदल जाएगी l संयोग से मेरा और उसका विवाह एक ही शहर में हुआ इस कारण हम लोगों का मिलना जुलना होता रहता था उसके पति एक अच्छे व्यवसाय में थे जिसके कारण उसे किसी तरीके की आर्थिक परेशान तो न थी पर दूसरों की देखा देखी में अनावश्यक सामान लेने के कारण बचत भी ना हो पाती थी l

               समय गुजरता गया और हम दोनों अपने अपने गृहस्थ जीवन में व्यस्त होते चले गए और हम लोगों का मिलना भी बहुत कम हो गया l  खास  मौका पर ही हम लोगों का मिलन।   

हो पाता लेकिन उन मौकों पर भी उसकी और उसके बच्चों की दिखावटी दुनिया मुझे और मेरे परिवार को पसंद ना आ पाता जिसके कारण मेरे पति और बच्चे उनके परिवार से दूर होने लगे और मेरी भी मुलाकात फोन तक ही सीमित रहने लगी फिर कोरोना कॉल में एक दिन सीमा का फोन आया वह काफी घबराई हुई थी उसने रोते हुए बताएं कि उसके पति और बेटा दोनों अस्पताल में भर्ती है और उसके पास उनके इलाज के लिए भी पैसा

नहीं है और वह अपने मायके और ससुराल वालों से भी मदद नहीं मांग सकती क्योंकि उन सब की नजर में तो वह करोड़पति है ऐसी स्थिति में उसकी पूरी उम्मीदें मुझ से ही थी|मैंने अपने पति को सारी परिस्थितियों से अवगत किया और उसकी मदद की lधीरे-धीरे दोनों की तबीयत में सुधार होने लगा और कुछ ही दिनों में वह दोनों अस्पताल से घर लौट आए और मेरी सहेली बार-बार हम लोगों का शुक्रिया अदा कर रही थी l

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कुछ  दोनों के बाद वह अपने पति और दोनों बच्चों को लेकर मेरे घर आई और हम सबको इन विकट परिस्थितियों में साथ देने के लिए धन्यवाद देने लगीlइन विकट परिस्थितियों ने उसे काफी समझदार बना दिया था इतना ही नहीं उसके साथ साथ उसके बच्चों का व्यवहार भी काफी बदल गया था l अब हम दोनों परिवारों की बनी हुई दूरियां नजदीकियों में बदल गई l अब हमारे दोनों घरों के बच्चे आपस में मिलजुल कर रहने लगे l

कुछ समय पहले जब सीमा के बेटे का विवाह तय हुआ तब उसने और उसके बेटे ने यह कसम खा ली कि हमइस विवाह में बिल्कुल भी फिजूल खर्ची नहीं करेंगे और सादगी से विवाह संपन्न करेंगे उसके इस निर्णय से मैं समझ गई कि अब मेरी सहेली बहुत समझदार हो चुकी है । इतना ही नहीं उसके द्वारा किया गया विवाह निसंदेही एक मिसाल बन गया क्योंकि उसने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से सभी संस्कारों को निभाते हुए

और अनावश्यक नई परंपराओं जैसे प्री वेडिंग, पूल पार्टी और हर मौके पर थीम कपड़ों को न रखकर यह बता दिया था कि उन सब के बिना भी शादी कोई यादगार शादी में बदला जा सकता है और उसने अपने इलाके में यह एक नई परंपरा की शुरुआत की।  मेरी सहेली जो हमेशा दिखावे की दुनिया की सरताज थी वह अब लोगों को सलाह देती है जितनी चादर हो उतने ही पांव पसारने चाहिए l

 

नाम – दिव्या चाँदवानी

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