( मुहावरा-टका सा मुँह लेकर रह जाना)
राजवीर जी अपने दोस्तों में बहुत ज़्यादा ही चर्चा में रहते थे….आखिर क्यों ना हो उनके बेटा बहू उनका ख़्याल कुछ ज़्यादा ही रखते थे ।
हर दिन वो सोसायटी के पार्क में पोते पोती कृष और कृषा को लेकर जाते वो दोनों सोसायटी के अन्य बच्चों के साथ खेलते और राजवीर जी अपने हमउम्र दोस्तों के साथ टहलते हुए गप्पे मारते।
पहले जब पत्नी कजरी जीवित थी वो अपने शहर में बड़े चैन से रहते थे… बेटे बहू के पास आते कुछ समय गुज़ारने के बाद वापस चले जाते… उस वक्त से ही सोसायटी के लोगों से जान पहचान बन चुकी थी पर जब से कजरी उन्हें अकेले छोड़कर गई वो अपने ही शहर में रहने लगे….सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे तो पेंशन से गुज़ारा आराम से हो रहा था खुद खाना बनाना आता था इसलिए उन्हें अपने लिए खाना बनाना मुश्किल नहीं लगता था पर इन सब के बीच कजरी की कमी की भरपाई नहीं हो सकती थी…
अचानक एक दिन उनकी तबीयत खराब हो गई…घर साफ़ सफ़ाई करने वाली उनके लिए खाना भी बना दिया करती थीं पर राजवीर जी की तबीयत ठीक नहीं हो रही थीं शायद अकेलापन उन्हें खाए जा रहा था… अतिव्यस्त बेटे से सप्ताह में एक दिन ही बात हो पाती थी पर बेटी विन्नी हर दिन कॉल करके हाल समाचार लेती रहती वो कहने लगी ,”विवेक के पास चले जाइए नहीं तो मेरे पास ही आ जाइए कहिए तो लेने आ जाऊँ?”
राजवीर जी को बेटी के घर जाकर रहना पसंद नहीं था इसलिए उससे बोले तुम ही आ जाओ … पर विन्नी के सास ससुर साथ रहते थे फिर उसके बच्चों की पढ़ाई ये सब का बोल कर वो ना आ पाने की असमर्थता जताई।
“ पापा आप विवेक के घर जा रहे हैं मैंने उसे बोल दिया है वो आकर आपको ले जाएगा ।” एक दिन फोन करके विन्नी ने कहा
छुट्टी वाले दिन विवेक आया और राजवीर जी को अपने साथ ले गया तब से राजवीर जी वही रह रहे थे… बेटे बहू भी पूरा ध्यान रखते थे… बुढ़ापे में किसी को और क्या चाहिए होता ।
सारे दोस्त राजवीर जी के परिवार की तारीफ किया करते थे ।
हर दिन की तरह शाम को राजवीर जी अपने पोते पोती के साथ पार्क में पहुँचे उनके दोस्त पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहे थे वो बच्चों को खेलने के लिए छोड़ कर दोस्तों के साथ टहलने निकल गए तभी बच्चों के बीच से बहुत शोर और रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी…सारे लोग लौट कर बच्चों के पास आ गए
देखा तो बच्चे आपस में उलझे हुए थे और पोता कृष किसी के साथ तू तू मैं मैं कर रहा था।
राजवीर जी जल्दी से कृष को हटाने गए तो वो अपने दादा को एक तरफ करते हुए बोला,”आप तो दूर ही रहिए… ख़ामख़ा हमारे साथ रह रहे हैं….मम्मी तो परेशान रहती हैं आपकी सेवा कर वो तो चाहती हैं आप यहाँ से चले जाएँ।”
पोती कृषा ये सब सुनकर जल्दी से कृष के मुँह पर हाथ रखते हुए एक किनारे ले गई और बोली,” तुम्हें ये सब बोलने की क्या ज़रूरत थी?”
“ और नहीं तो क्या जब से दादा जी आए है हम पहले जैसे कहाँ मस्ती कर पाते है…घुमने जाना भी कम हो गया है।” कृष बोलने लगा
ये सब सुन कर तो राजवीर जी टका सा मुँह लेकर रह गए उन्हें तो जरा सा भी आभास नहीं था कि मेरे यहाँ रहने से उन लोगों को तकलीफ़ हो रही है वो दोस्तों के सामने लज्जित हो गए थे जो ये सोचते थे कि राजवीर कितना लकी है ।
राजवीर जी जल्दी से घर की ओर बढ़ गए ये देख दोनों बच्चे भी पीछे पीछे आ गए ।
राजवीर जी घर आकर अपने लिए टिकट बुक किए और सामान पैक कर लिए कल सुबह इस बंद जगह से निकल कर अपने घर खुली जगह जाकर रहने के लिए ।
घर में जब ये बात कृषा से उसके पैरेंट्स को पता चली तो वो राजवीर जी से नज़रें मिलाने में असमर्थ थे पर राजवीर जी ने फ़ैसला कर लिया था कि तुम अपनी ज़िंदगी जियो मैं अपना देख लूँगा पर तुम लोगों की ज़िन्दगी में मुसीबत बन कर नहीं रहूँगा।
रश्मि प्रकाश
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