…”देखो रवि सारी हमारी पसंद की चीजें हैं… मां हमसे कितना प्यार करती है…
मैंने उससे तुम्हारी पसंद के बारे में… एक बार जिक्र भर किया था.… उसने तो लगता है सबका सब रट डाला…!”
रवि ने पैकेट में से एक सोंठ का लड्डू उठाकर… अपने मुंह में रखा और अनमने ढंग से चलते हुए बोला…
” इसमें कोई खास बात है क्या… मां का तो काम ही होता है… बच्चों की पसंद को याद रखना… और उनका ख्याल रखना… !”
रेवती चिढ गई…” यह कैसी बात हुई… तुम अपनी मम्मी की मेहनत का भी ऐसे ही मजाक उड़ाते हो…!”
” इसमें मेरी मम्मी तुम्हारी मम्मी की कोई बात ही नहीं है… तुम्हें आए हुए अभी दिन ही कितने हुए हैं…मुझे झूठा दिखावा पसंद नहीं… धीरे-धीरे जान जाओगी…!”
सचमुच रेवती हैरान थी… ऐसा जीवनसाथी पा कर… जो कभी भी… किसी की मेहनत की सराहना नहीं करता था…
किसी के भी प्यार की कद्र नहीं थी उसे…
सासू मां हर महीने दो महीने पर… किसी न किसी के हाथों… सारी खाने पीने की चीजें… जो उनके बेटे बहु को पसंद थी… भेजती रहती…
रेवती की मां भी कुछ ना कुछ भिजवाती… और रवि बेगैरत सा… किसी की एक बार प्रशंसा तक नहीं करता… धन्यवाद करना तो दूर की बात है…
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रेवती भी कितनी ही मेहनत करके कोई खाना सामने रख दे… या फिर घर ही सजा ले… कभी भी रवि के मुंह से… दो तारीफ के बोल नहीं निकलते थे…
उल्टे…” यह तो तुम्हारा काम है… इसमें कौन सी बड़ी बात है… यह तो कोई भी कर लेगा…!”
देखते देखते रेवती को छह महीने हो गए… रवि के साथ रहते…
उसकी नैराश्य छवि देख-देख कर वह बहुत दुखी रहने लगी थी…
अब उसका ना कुछ बढ़िया बनाने का मन होता था… ना घर ही सजाने का…
रवि को कुछ फिक्र आखिर हो भी क्यों…
घर में मां का बनाया रेडीमेड खाना हरदम मिल ही जाता… और नहीं तो होटल है ना… नहीं तो ऑर्डर कर लेता…
आखिर रेवती ने रवि को सबक सिखाने की ठानी… उसने सासू मां और अपनी मां दोनों को बारी-बारी से फोन किया… और कुछ भी नहीं भेजने की सख्त हिदायत दे डाली…
सासू मां तो बिफर गईं…
” क्यों रेवती.… ऐसा क्यों कह रही हो… इतने दिनों से मैंने अपने बेटे को कभी कोई कमी नहीं होने दी… अब तुम कहती हो…!”
“प्लीज मां… कुछ महीनों की खातिर…!’
थोड़ा समझाने बुझाने पर वह मान ही गईं…
रेवती ने घर में भी कुछ भी बढ़िया बनाना… करना… बिल्कुल बंद कर दिया..…
कुछ दिन तो होटल से लाकर चला.… लेकिन उसके बाद रवि को छटपटाहट होने लगी…
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” क्या हुआ.… आखिर मां इतना दिन तो कभी नहीं लगाती… सासू मां ने भी कुछ नहीं भेजा…
रेवती तुम्हें कुछ पता है क्या…!”
” नहीं… मुझे क्या पता होगा… बात तो तुम्हारी होती ही है मां से खुद पूछ लो…!”
” मैं क्यों पूछूं… उनका काम है भिजवाना… भिजवाएंगी ही…!”
इसी तरह इंतजार में कुछ दिन और निकल गए… अब रवि परेशान हो गया…
” यह क्या नौटंकी है… कभी कुछ खाने लायक भी बना दिया करो ना…
घर में कुछ बनाती नहीं हो… मां से कुछ आ नहीं रहा है… आदमी करे तो क्या करे…
बाहर का ला ला कर कहां तक खाए… हद हो गई…!”
” इसमें हद क्या है… जब तक किसी को पता ना चले कि तुम्हें यह सब पसंद है… तुम कुछ तारीफ ना करो… तब तक कोई क्यों बेकार मेहनत करे…!”
“आदमी खा रहा है… इसका मतलब है कि उसे पसंद है…
अच्छा तो यह सब तुम्हारा ही किया है…!”
” हां… माएं बूढी हो रही हैं… इस उम्र में इतनी मेहनत से… बच्चों की खुशी के लिए सब बनाकर भेजती हैं… और बच्चे के मुंह से एक शब्द कृतज्ञता के भी नहीं पातीं… तो वे आखिर इतनी मेहनत क्यों करें…
तुम जैसा भाग्यहीन तो बिरला ही होगा… जो दो-दो मांओं के प्यार की चाशनी में डूबा हुआ है… पर उसमें थोड़ी सी भी मिठास नहीं है…!”
“मुझे यह सब दिखावा लगता है… तुम तो जानती हो…!”
” मगर रवि यह दिखावा जरूरी है… आखिर भगवान को भी प्रसन्न करने के लिए उनके गुण गाए जाते हैं…
हम तो इंसान हैं… हमें भी थोड़ा प्यार… थोड़ा दिखावा दूसरों को खुश रखने की खातिर …करना पड़ता है…!”
” अच्छा भई… ठीक है समझ गया… शुरुआत तुमसे ही करता हूं ना…
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अपना नाम तो बोला नहीं तुमने…तारीफ तो तुम्हें करवानी है अपने लिए…
अब तुम्हें कभी भी प्रशंसा का अभाव नहीं होगा…!”
“झूठी प्रशंसा नहीं चाहिए मुझे…!”
” झूठी नहीं यार… सच्ची वाली प्रशंसा… ठीक है अब तो…मैं तुम्हारी कर देता हूं… तुम बाकी सब की कर देना… इसमें मांओं को क्यों ला रही हो बीच में…!”
रेवती एक लंबी सांस भरकर हंस पड़ी…
आखिर किसी की इतनी पुरानी आदत… चाहे अच्छी हो या बुरी… बदल पाना इतना आसान थोड़ी ही होता है…
रश्मि झा मिश्रा
#भाग्यहीन